बेंगलुरु। श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मंदिर में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी ने शुक्रवार के प्रवचन में कहा की हमेशा बहिर्भावो में रमण करने वाला जीव पर्यूषन पर्व के आते ही आत्माभिमुख होकर जीव, जगत और परमात्मा के बारे में सोचने लगता है।
उन्होंने कहा कि पर्युषन पर्व आत्मा के आरोहण का पर्व है। मोह के वशिभूत होकर जीव पूरा जीवन तो संसार चक्र में फँसा रहता है पर पर्युषन पर्व के निमित्त से जागृत हो कर धर्म आराधना करता है ।
आचार्यश्री आगे बोले, पर्युषन पर्व आत्मा की आराधना का अपूर्व अवसर है, इसका आयोजन भी सोच समझ कर किया गया है। आचार्य श्री ने कहा कि पर्यूषन पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस पर्वानुसार- ‘संपिक्खए अप्पगमप्पएणं’ अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो।
पर्युषण पर्व अंर्तआत्मा की आराधना का पर्व माना जाता है। यह आत्मशोधन का पर्व है, निद्रा त्यागने का पर्व है। सचमुच में पर्युषण पर्व एक ऐसा सवेरा है जो निद्रा से उठाकर जागृत अवस्था में ले जाता है। अज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाता है।
तो जरूरी है प्रमादरूपी नींद को हटाकर इन आठ दिनों विशेष तप, जप, स्वाध्याय की आराधना करते हुए अपने आपको सुवासित करते हुए अंर्तआत्मा में लीन हो जाएं जिससे हमारा जीवन सार्थक व सफल हो पाएगा।