चेन्नई. अयनावरम विराजित साध्वी नेहाश्री ने कहा सुख पुदगलों का नहीं आत्मा का है। कभी खुशी-कभी गम ये दोनों जिंदगी रूपी सिक्के के पहलू हंैं। हमें दोनों के लिए तैयार रहना चाहिए।
व्यक्ति को यदि मन के अनुसार कपड़ा, खाना, गहना आदि मिलता है तो वह खुश रहता है नहीं तो मन दुखी रहता है। पुदगलों से प्राप्त सुख व दुख वास्तविक नहीं है। दोनों ही परिस्थितियों में सम रहना चाहिए।
जीवन सुख-दुख से भरा है। कर्म के उदय के अनुसार सभी प्रसंग हमारे सामने उपस्थित होते हैं। जब दुख आए तो धर्म और करना चाहिए। चिंता आर्तध्यान है और यह कर्मबंधन का कारण है। व्यक्ति को चिंता छोड़ चिंतन करना चाहिए। चिंता दो प्रकार की होती है सार्थक व निरर्र्थक चिंता।
आत्मा की चिंता सार्थक है और संसार की चिंता निरर्थक। आपके जैसे कर्म होंगे वैसा ही फल आपके सामने आएगा। जीवन में धर्म नहीं करें और सूख की अपेक्षा करें यह सम्भव नहीं।
जो हो रहा है वह ठीक है और जो होगा वह भी ठीक होगा इसलिए हमें सांसारिक माया से दूर अपने जीवन को सादगी से जीना चाहिए। आडम्बर हमें सांसारिक मोहपाश में बांधता है इससे बचना चाहिए।