बेंगलुरु। अक्किपेट जैन संघ के तत्वावधान में चातुर्मासार्थ विराजमान आचार्य श्री देवेंद्रसागरजी की निश्रा में रविवारीय शिविर का आयोजन हुआ। इस का लाभ श्रीमती नेमीबाई सरदारमल संकलेचा परिवार ने बड़े उत्साह के साथ लिया। प्रारंभ में आचार्यश्री ने श्री श्रूतदेवी सरस्वती की प्रार्थना करवाई, पश्चात दीप प्रागट्य का आयोजन हुआ।
आचार्यश्री ने शिविरार्थियो को संबोधित करते हुए कहा कि भारत पर्वों और त्योहारों का देश है। उनमें न केवल भौतिक आकर्षण के पर्व है, बल्कि आत्म साधना और त्याग से जुड़े पर्व भी हैं। एक ऐसा ही अनूठा पर्व है पर्युषण महापर्व। यह मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है, मानव मात्र का पर्व है।
पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि संपूर्ण जैन समाज का यह महाकुंभ पर्व है। यह जैन एकता का प्रतीक पर्व है। जैन लोग इसे सर्वाधिक महत्व देते हैं। संपूर्ण जैन समाज इस पर्व के अवसर पर जागृत एवं साधनारत हो जाता है। पर्युषण महापर्व-कषाय शमन का पर्व है।
यह पर्व 8 दिन तक मनाया जाता है जिसमें किसी के भीतर में ताप, उत्ताप पैदा हो गया हो, किसी के प्रति द्वेष की भावना पैदा हो गई हो तो उसको शांत करने का यह पर्व है।
देवेंद्रसागरजी ने कहा कि धर्म के 10 द्वार बताए हैं उसमें पहला द्वार है- क्षमा। क्षमा यानी समता। क्षमा को जीवन के लिए बहुत जरूरी बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि जब तक जीवन में क्षमा नहीं, तब तक व्यक्ति अध्यात्म के पथ पर नहीं बढ़ सकता है।इसलिये ये पर्व क्षमापर्व के नाम से भी जाना जाता है
पर्युषण का एक अर्थ है- कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी अत: यह पर्युषण-पर्व आत्मा का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है।