उन्होंने बताया कि असली तपस्या वह जो मन और पेट की भूख को सीमित करे
Sagevaani.com @चेन्नई। जैन दर्शन में जन्मो-जन्मो के कर्मों की निर्जरा का सबसे आसान और सरल उपाय तपस्या को बताया गया है। 12 प्रकार की तपस्या में सबसे पहला तप अनशन या उपवास है। शरीर के स्वास्थ्य के लिए हर 7 दिन या 15 दिन में हमें एक उपवास अवश्य करना चाहिए। उपवास का अर्थ सिर्फ पेट की भूख को लगाम लगाना ही नहीं है, बल्कि पेट के साथ-साथ मन की भूख को भी सीमित करना उपवास का लक्ष्य होना चाहिए।
यह कहना है प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी का जो आज सोमवार को स्थानीय पोषद भवन में एक धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि जीवन में तपस्या चलती रहनी चाहिए। धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने बताया कि भगवान के दर्शन और उनकी वाणी श्रवण से कहीं अधिक लाभ उनके आचरण को अपने जीवन में उतारने से मिलता है। धर्मसभा में सिद्धि तप कर रहीं साध्वी पूनमश्री जी की जय-जयकार के नारों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा।
साध्वी पूनमश्री जी की सिद्धि तप आराधना की अनुमोदना में 61 श्रावक व श्राविका 1 दिन से लेकर 5 दिन का उपवास कर रही हैं। साध्वी जी का सिद्धि तप और उनकी आराधना में किए जा रहे उपवास की पूर्णाहूति 3 अगस्त को होगी।
इस कारण पोषद भवन में धर्म और तप का माहौल बना हुआ है। धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने तप की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शुद्ध मन से तपस्या करने वाला व्यक्ति अपनी आत्मा के साथ-साथ शरीर को भी स्वस्थ रखता है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में जाकर देखिए वहां उपवास करने वाले अधिक भर्ती हैं या ज्यादा खाने वाले। उन्होंने बताया कि भूख, नींद और तृष्णा जितनी बढ़ाओ उतनी बढ़ती है। उपवास में भूख के साथ-साथ तृष्णा पर भी नियंत्रण रखा जाता है। तप में मन की भूख और इच्छाओं पर नियंत्रण लगाना भी अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि भगवान महावीर ने कहा था कि इच्छाएं आकाश के समान अनंत होती हैं।
उन्होंने कहा कि तप रात्रि भोजन से लेकर नवकारसी, एकासना, व्यासना, आयंबिल और 1 उपवास से लेकर 6 माह तक के किए जा सकते हैं। भगवान महावीर ने 6 माह तक उपवास किया था आज भी कई जैन संत और साध्वी तथा श्रावक श्राविकाएं 6 माह से अधिक के उपवास कर रही हैं। उपवास करना आत्मा की मांग है। उपवास से कर्मों की निर्जरा होती है। दूसरे तप उणोदरी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है भूख से कम खाना। उणोदरी सिर्फ खाने तक ही सीमित नहीं है। इसका एक अर्थ यह भी है कि अपनी वासना, तृष्णा और लालसा को कम करना। उन्होंने कहा कि शरीर तपेगा तब आत्मा का मक्खन हमें प्राप्त होगा।
वर्षी तप और 30 उपवास की तपस्या कर चुकी हैं साध्वी पूनमश्री
44 दिनों से सिद्धि तप कर रहीं साध्वी पूनमश्री जी घोर तपस्वी हैं। अपने 30 वर्ष के साधना काल में वह अभी तक 2 वर्षी तप कर चुकी हैं। वर्षी तप में तपस्वी 400 दिन में 1 दिन उपवास और 1 दिन दो समय का भोजन करते हैं। इसके अलावा वह 30 उपवास की तपस्या जिसे मासखमण कहते हैं वह भी कर चुकी हैं।
साध्वी पूनमश्री जी ओली तप की आराधना भी कर चुकी हैं। ओली तप में साधक लगातार 9 दिन तक वर्ष में 2 बार उबला हुआ, बिना घी, तेल, मक्खन, नमक, मिर्च, हल्दी, मसाले, फल, ड्राईफ्रूट रहित भोजन करते हैं। उनका सिद्धि तप 3 अगस्त को पूर्ण होगा। 44 दिन की तपस्या में उन्होंने सिर्फ 8 दिन आहार लिया और 36 दिन निराहार रहीं हैं।
सिद्धि तप की अनुमोदना में नवकार महामंत्र की तप आराधना भी
साध्वी पूनमश्री जी के सिद्धि तप की आराधना में जैन धर्मावलंबियों की तपस्या भी 30 जुलाई से प्रारंभ हो गई है। 30 जुलाई को 5 श्रावक श्राविका 5-5 दिन का उपवास करेंगी। 31 जुलाई को 5 श्रावक श्राविका 4-4 दिन का उपवास, 1 अगस्त को 5 श्रावक श्राविका 3-3 दिन का उपवास, 2 अगस्त को 5 श्रावक श्राविका 2-2 दिन का उपवास और 3 अगस्त को 5 श्रावक श्राविका 1-1 दिन का उपवास करेंगी।
इसके साथ ही 30 जुलाई से 5-5 श्रावक श्राविकाओं की एकासना (एक समय भोजन) की चेन भी प्रारंभ हो गई है जिसकी भी पूर्णाहूति 3 अगस्त को होगी। 3 अगस्त को पोषद भवन में तपस्वी साध्वी पूनमश्री जी के सम्मान में गुणानुवाद सभा होगी और उन्हें जैन श्रावक श्रीसंघ द्वारा तपस्वी रत्ना की उपाधि दी जाएगी। इस आयोजन में भाग लेने के लिए देशभर से धर्मावलंबी शिवपुरी पधारेंगे और 4 अगस्त को साध्वी पूनमश्री जी का पारणा होगा।