महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी से मिला मिला मंगल सम्बोधन
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जब से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का बेंगलुरु में चतुर्मासकाल आरम्भ हुआ है, पूरा बेंलगुरु मानों महाश्रमणमय बना हुआ है। देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचने वाले हजारों श्रद्धालु चतुर्मास प्रवास परिसर में रहकर अपने आराध्य की आराधना का लाभ ले रहे हैं तो बेंगलुरुवासी भी अपने आराध्य की दर्शन, सेवा उपासना में निरंतर जुटे हुए हैं।
रविवार को तो ऐसे लगता है मानों श्रद्धालुओं का ज्वार उमड़ आया हो। बेंगलुरुवासियों की विराट उपस्थिति से पूरा चतुर्मास परिसर जनाकीर्ण नजर आता है। आचार्यश्री के एक जयकारे की ललक, आचार्यश्री के की अमृतवाणी के रसपान करने की अभिलाषा और आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित होने का उत्साह श्रद्धालुओं को शहर से कुछ दूरी और जाम की स्थितियों को भी दरकिनार कर आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र तक खींच लाती है।
रविवार को प्रातः से ही चतुर्मास प्रवास स्थल में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ने लगा था और नौ बजते-बजते तो आज विशाल प्रवचन पंडाल, आचार्यश्री का प्रवास कक्ष सहित आसपास सारे स्थान जनसमूहों से आप्लावित नजर आ रहे थे। उपस्थित श्रद्धालुओं को महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी की वाणी का श्रवण करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इसके उपरान्त मंचस्थ आचार्यश्री ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में दो तत्त्वों का योग है-आत्मा और शरीर। जहां केवल आत्मा वहां कोई जीवन नहीं होता और जहां केवल कोरी शरीर हो वहां भी जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। आत्मा और शरीर का योग होता ही जीवन है। आत्मा और शरीर का वियोग मृत्यु और आत्मा का शरीर से सदैव के लिए मुक्त हो जाना मोक्ष है।
‘सम्बोधि’ में मुनि मेघ ने भगवान महावीर से प्रश्न किया-इन्द्रियां कौन-सी हैं, उनके विषय क्या हैं और इनका निरोध कैसे हो सकता है। भगवान महावीर ने पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि पांच विषय होते हैं-स्पर्श, रस, गंध, रूप और शब्द इसी प्रकार के प्रत्येक विषयों की इन्द्रियां होती हैं क्रमशः स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और स्रोत्र। एक विषय को एक इन्द्रिय ग्रहण करती है, किन्तु मन सभी विषयों का ग्राहक होता है। विषयों के सम्पर्क रोकना कठिन हो सकता है, किन्तु विषयों की आसक्ति से बचने का प्रयास किया जा सकता है।
अनासक्ति की साधना का प्रयास किया जा सकता है। जीवन में इन्द्रियों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इनके बिना जीवन कठिन होता है। आदमी को अपने इन्द्रियों का संयम करना चाहिए। आदमी को अपने कानों को अनावश्यक बातों सुनने में नहीं, बल्कि प्रवचन श्रवण और जीवनोपयोगी बातों के श्रवण में लगाने का प्रयास करना चाहिए। आंखों का सदुपयोग करना, अनावश्यक दृश्यों न देखना, गंध में ज्यादा आसक्त नहीं होना, जिह्वा द्वारा स्वाद ही नहीं भगवान का नाम जपने आदि में उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
इन्द्रियों और मन का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। मन की चंचलता को रोकने और उसे एकाग्र करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ ग्रन्थ का श्रवण कराया। मुनि अनेकांतकुमारजी व साध्वी सरलप्रभाजी ने लोगों को तपस्या के संदर्भ में उत्प्रेरित किया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में रविवार को भी अनेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। श्री दीपक टांटीया द्वारा ‘महाप्रज्ञ की कहानियां’ पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई।
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*