आज विजयनगर स्थानक भवन में विराजित साध्वीश्री प्रतिभाश्री जी ने तपस्या पर विवेचन फरमाते हुए कहा कि आत्मा आठ कर्मो के बन्धन से जकड़ी हुई है। जब अंतराय कर्म नहीं होवें तो आत्मा वोदान अवस्था को। प्राप्तनकार्ति हैं जिसमे पूर्वबद्ध कर्मो के क्षय से जीव अक्रिय हो जाता है ठीक उसी प्रकार जैसे बीज के जल जाने के बाद वह उगता नहीं है, निष्क्रिय हो जाता है वैसे ही जीव के अक्रिय हो जाने पर वह सारे दुःखो का अंत कर देता है और जीव सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाता है। व्यवदान से जीव अन्तराय कर्मो को तोड़ता हुआ मन में क्षमा भावों का वास, सरलमना, विनयशील होना, सहानुभूतिशील होना, अनासक्त होना इत्यादि की ओर गतिशील होजाता है।और इन्ही व्यवदान क्रियाओं से जीवात्मा मोक्ष को प्राप्त होती है।
साध्वी प्रेरणाश्री ने व्यक्ति को सकारात्मक सौच रखने के बारे मे बताते हुए कहा कि व्यक्ति की जैसी सौच होती है,उसका जीवन निर्माण भी उसी अनुरूप होता है।अतः व्यक्ति को सदैव सकारात्मक सौच ही रखनी चाहिए।जिससे वह अपने परिवार को बांधे रखता है तथा सकारात्मक सौच के तहत व्यक्ति सौम्य, सरल, त्याग, तपस्या, अणुव्रत, महाव्रत, इत्यादि का जीवन मे आचरण करता है। जिससे सौच के अनुरूप ही परिणाम प्राप्त होते हैं। अतः व्यक्ति जब भी सौचें अच्छा सौचें।
आज जैन कांफ्रेंस युवा शाखा द्ववारा गुड़ लक योजना के तहत बच्चों द्ववारा पालित दैनिक नियम प्रत्याख्यान करने वालों को कूपन के आधार पर पुरुष्कार विजयनगर क्षेत्र से प्रायोजक वसंतकुमार, अविनाश कुमार रांका की। तरफ से अपने कर कमलों द्ववारा महासती श्रीप्रतिभा श्री जी के मांगलिक प्रदान करने के पश्चात प्रदान किये। इस अवसर पर संघ के मंत्री कन्हैयालाल सुराणा, ज्ञानशाला की अध्यापिका समता बोहरा, अनिता गुगलिया, युवा सदस्य सुरेन्द्र गुंदेचा, राजेश बोहरा उपस्थित हुए।