अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत ‘अनुशासन दिवस’ के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान करते हुए अपने पावन प्रवचन में कहा-जीवन में अनुशासन का महत्वपूर्ण स्थान है। अनुशासन के दो प्रकार है – आत्मानुशासन और परानुशासन।
अपने आप पर अनुशासन करना आत्मानुशासन है और दूसरों पर अनुशासन करना परानुशासन होता है। दूसरों पर अनुशासन करने के इच्छुक व्यक्ति पहले स्वयं पर अनुशासन का अभ्यास करना चाहिए।
आत्मानुशासन के चार प्रकार हैं- मनोनुशासन, वचोनुशासन, कायानुशासन और इंद्रियानुशासन। अपने मन को वश में रखना मनोनुशासन होता है। अपनी वाणी पर अनुशासन रखना वचोनुशासन होता है। आदमी को यह ध्यान देना चाहिए कि वह अनावश्यक कितनी बार बोलता है और आवश्यक कितनी बार बोलता है।
सत्य कितनी बार बोलता है और असत्य कितनी बार बोलता है। कटु वचन कितनी बार बोलता है और मधुर वचन कितनी बार बोलता है। अनावश्यक, असत्य और कटु नहीं बोलना वचोनुशासन होता है। शरीर पर अनुशासन कायानुशासन है। आदमी को अपने शरीर के अनावश्यक संचालन से बचना चाहिए। इंद्रियों पर अनुशासन करना इंद्रियानुशासन है।
आचार्यश्री ने आगे कहा-दूसरों पर अनुशासन करने का मौका मिले अथवा नहीं, आदमी को स्वानुशासन का अभ्यास तो करना ही चाहिए। स्वानुशासन के बिना परानुशासन का भी कितना क्या मूल्य रह जाता है।
आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का छठा दिन है और यह दिन अनुशासन के दिवस के रूप में स्थापित है। अनुशासन की आवश्यकता कहा नहीं होती। लोकतन्त्र में, संस्थानो में, परिवारों में, सेना में, सब जगह अनुशासन आवश्यक होता है। जहां अनुशासन नहीं होता, वहाँ कठिनाई हो सकती है। अनुशासन दिवस से स्वानुशासन और परानुशासन की प्रेरणा प्राप्त हो, शुभाशंसा।
आज से आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर का शुभारंभ हुआ। आचार्यश्री ने उपस्थित बालक-बालिकाओं से विभिन्न प्रश्न पूछे और उन प्रश्नों के माध्यम से जीवनोपयोगी प्रेरणाएं प्रदान कीं। शिविर का प्रथम प्रशिक्षण आचार्यश्री से प्राप्त कर शिविरार्थी बालक-बालिकाएं ही नहीं, उनके प्रशिक्षक, व्यवस्थापक और अभिभावक भी प्रफुल्लित थे। उपस्थित जनमेदिनी भी यह दृश्य देख कर। आह्लादित थी।