चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा द्वारका में विनाश होने की सूचना के बाद भगवान कृष्ण ने द्वारिका नगरी में घोषणा कराई थी की जिसको दीक्षा लेनी है वे ले सकते हैं। उसके बाद उनकी पटरानी पद्मावती ने सब सुख को त्याग कर दीक्षा के लिए तैयार हो गई थी।
पद्मावती जन्म और मरण के इस संसार से मुक्त हो गई थी। संसार मे जन्म और मरण दुखो का रूप है। सही समय में जो इससे दूर हो जाते हैं उनका इससे पीछा छूट जाता है। थोड़ा सा सुख पाने के लिए मनुष्य पूरा जीवन लगा देता है। अंत मे उसे दुख ही हाथ आता है। संसार के सुखों के पीछे भागने से दुख ही आना है। भौतिक सुख के लिए मनुष्य जीवन को व्यर्थ गंवा देता है।
जब तक मनुष्य आत्मा की ओर नहीं बढ़ेगा उसके जीवन से सांसारिक दुख कभी दूर नहीं होंगे। पद्मावती ने तो अपने जीवन को सफल बना लिया था। अब हमें तय करना है कि किस मार्ग पर बढऩा है। जीवन में गुरु के सानिध्य में रह कर उत्कृष्ट संयम का पालन कर लेना चाहिए। पर्यूषण का पर्व आत्म चिंतन के लिए आता है।
अभी चिंतन कर बदलाव की ओर अग्रसर नहीं हुए तो यह मौका हाथ से छूट जाएगा। मौका का आना बड़ी बात नहीं होती बल्कि उसका लाभ लेना बड़ा होता है। उन्होंने कहा कि चिंता नहीं चिंतन करो।
चिंता कर चिता समान बनने से अच्छा चिंतन कर महान बन जाये। जो इन मार्गो पर चलेंगे उनके जीवन का कल्याण हो जाएगा। बुढ़ापा आने पर शरीर काम नहीं करेगा। उस समय तप और साधना नहीं हो पाएगी। इसलिए ताकत रहते ही तप कर बुढ़ापे से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए।