भिक्षु चरमोत्सव पर हुआ भिक्षु मंत्रों का दिव्य अनुष्ठान
माधावरम्, चेन्नई ; आचार्य श्री भिक्षु का जीवन आदर्श परायण था। वे अहिंसा, संयम और तपस्या की त्रिवेणी में हर समय पूरी जागरूकता से स्नान करते थे। आत्मबल और पुरुषार्थ के सजीव उदाहरण थे। उपरोक्त विचार श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट, चेन्नई द्वारा आयोजित 220वे भिक्षु चरमोत्सव के अवसर पर जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर, माधावरम् में मुनि सुधाकरकुमारजी ने कहे।
महापुरुषों के आदर्शो का अनुसरण करें
अपने आराध्य की अभिवन्दना करते हुए मुनि श्री ने आगे कहा कि हमें आचार्य श्री भिक्षु जैसे महापुरुषों के आदर्शो का श्रद्वा से अनुसरण करना चाहिये। तभी हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली अर्पित कर सकते है। आचार्य श्री भिक्षु आत्मार्थी और सत्य शोधक थे। वे परम्परा से अधिक सत्य के उपासक थे। वे आध्यात्मिक दार्शनिक थे। उनका अध्यात्म-दर्शन वीतरागता की साधना पर केन्द्रित है। किसी सम्प्रदाय का प्रवर्तन करना उनका लक्ष्य नहीं था। उनके तपः पूत चरण आगे बढते गये और मार्ग बनता गया।
मुनिश्री ने मंत्र अनुष्ठान में समागत श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि “भिक्खु स्वाम” नाम एक तंत्र है, मंत्र है, यंत्र है। यह नाम नौ अंकों का अखण्डित मंत्र है। यह निर्भरता, निडरता भरा है। भिक्खु स्वाम का जप आनन्ददायक है, प्रसन्नदायक है, उन्नति प्रदायक हैं। आपने विशिष्ट रुपों से मंत्र साधना करवाई।
मुनि श्री ने कहा कि आज समाज में भक्तिवाद बहुत बढ़ रहा है। उसके साथ जीवन शैली में सुधार होना जरूरी है। धार्मिक पर्वो और त्योहारों से सबको चरित्र-निर्माण की प्रेरणा लेना चाहिये।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती
मीडिया प्रभारी : श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट, चेन्नई