कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आठवें व्रत में भगवान ने अनर्थदण्ड के विषय में बताया है। बिना कारण जमीन खोदना, पानी गिराना, अग्नि जलाना, पंखा वगैरा तथा वनस्पति का छेदन भेदन करना।
जानबूझकर दूसरों को खोटी ( गलत ) सलाह ( मशविरा ) देना दूसरों को अन्याय अत्याचार पर चलने के लिये उपदेश देना और विवाह आदि प्रसंगों पर आतिशबाजी पटाखे फोड़ना और दूसरों को प्रेरित करना फोड़ने के लिये दूसरों को खुश करने के लिये भांड कुचेष्टा करना और दूसरों की नकल करके हंसाना ये सब अनर्थदण्ड में आता है।
बिना कारण बोल-बोल करना ऊखल मुसल तलवार आदि हथियार या औजार बनाने की फैक्ट्री खोलना और उपभोग और परिभोग में आने वाले खाने पीने पहनने-ओढ़ने आदि वस्तुओं का अधिक से अधिक संग्रह करना ये सब अनर्थदंड विरमणव्रत कहलाता है। बिना कारण किसी से लड़ना झगड़ना अपशब्दों का उच्चारण करके हम बिना वजह कर्म बांधते हैं। पूर्व जन्म की पुण्याई से मानव शरीर मिला है इसका अवश्य शुभ कर्मों के द्वारा लाभ उठाना चाहिये। अनंत काल से 84 के चक्कर लगा रहे हैं इसका एक ही कारण कर्म बंधन का काम ज्यादा करते हैं। कर्मों की निर्जरा का कार्य कम करते आ रहे है इसीसे भव भ्रमण हो रहा है।