नवपद के छठे दिन बिन्नी के नोर्थटाउन जैन मूर्तिपूजक संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने सम्यग्दर्शन पद पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा की भगवान महावीर ने सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र को मोक्ष का मार्ग बताया है। दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होगा व ज्ञान के बिना चारित्र नहीं होगा। लेकिन हम मात्र चारित्र को महत्व दे रहे हैं। मोक्ष मार्ग की साधना में यदि सम्यक दर्शन होगा तो चारित्र शृंगार बन जाएगा।
उन्होंने कहा कि जिसे सम्यक दर्शन हो जाता है वह जड़-चेतन के भेद को भलीभाँति जान जाता है। उसे शरीर और शरीर के साथ जुड़े हुए सम्बन्धों की नश्वरता का सदैव भान रहता है। संसार की वास्तविकता को समझने के लिए हमें परमात्मा के वचनों से प्रेम करना होगा।
जो सुख में लीन और दुख में दीन नहीं बनता वही सम्यक्त्वी है। आज जो हमारा पुण्य चमक रहा है वह कल अस्त भी हो जाएगा। सम्यक दर्शन ही मोक्ष का मार्ग है, सम्यक द्रष्टा व्यक्ति की अपने देव, गुरु और धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा होती है। देव और गुरु के प्रति हमारी श्रद्धा, भक्ति और समर्पण हो तो उनका एक वचन भी हमारे जीवन को तारने में सक्षम हो जाता है। गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण ने एकलव्य ने गुरु प्रतिमा के समक्ष धनुर्विद्या में निपुण बना दिया। आज सम्यक दर्शन पद की आराधना करते हुए हम देव, गुरु और धर्म पर सच्ची श्रद्धा रखकर यह प्रार्थना करें कि हमारी श्रद्धा सदैव अटूट बनी रहे।
धर्म पर हमारी दृढ़ श्रद्धा-आस्था टिकी रहे। ऐसा सम्यक दर्शन हम में स्थिर रूप सदैव विद्यमान रहे, प्रभु और गुरु के प्रति श्रद्धा जिसकी होती है, उसके जीवन में अनेक सद्गुण स्वतः आ जाते हैं। अज्ञानता चली जाती है। जड़-चेतन के भेद ज्ञान को जानने वाला सम्यक द्रष्टा संसार में रहकर भी संसार से सदा अलिप्त रहता है। वह जहां भी जाता है, पापों को जलाने, नष्ट करने का कार्य करता है, हिंसा और दुर्गुणों में वह कभी लिप्त नहीं रहता। हमें सम्यक दर्शन की प्राप्ति के लिए अपना पुरुषार्थ, परिश्रम करना चाहिए। यह तभी प्राप्त होगा, जब हमारी श्रद्धा देव, गुरु और धर्म के प्रति सच्ची होगी। जो भगवान ने कहा, जो पर्यूपणा की, वही पूर्णतः सत्य है, ऐसी आस्था-श्रद्धा हम सबकी बनी रहे।