चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा अध्यात्म जीवन के दो शब्द हैं आचार और विचार, दोनों की शुद्धि होना जरूरी है।
साधक आचार की साधना में जप, तप, सामायिक करते हैं लेकिन विचार भूल जाते हैं। चिंतन करें कि विचार शुद्ध है या नहीं। साधना में विचार शुद्ध नहीं तो फल उतना नहीं मिलता। कई साधक उत्कृष्ट भाव से साधना करते हैं फिर भी विचलित हो जाते हैं, क्योंकि आत्मा जागरूक नहीं है। नाविक प्रवीण नहीं है तो नाव डूब जाएगी।
दान, शील, तप और भाव मोक्ष का मार्ग है। विचार शुद्ध होंगे तो आचार भी शुद्ध होंगे। दान देते समय भाव शुद्ध नहीं तो नरक में जाना पड़ता है। जहां विचार शुद्ध हो वहां वातावरण भी शुद्ध होता है। भगवान के समवशरण में जन्मजात वैर के जीव-जन्तु भी शुद्ध भावों से देशना सुनते हैं।
साध्वी उदितप्रभा ने कहा यह संसार दो वादों में विभक्त है- भौतिकवाद और अध्यात्मवाद। भौतिकवाद में सर्वथा खुलापन है जबकि अध्यात्मवाद में कुछ आवरण होता है, जो घर के खिडक़ी, दरवाजे और छत की तरह अवांछित को भीतर प्रवेश से रोकता है। इस जगत में निरंतर मलिनता, राग, द्वेष की विकिरणों की बरसात हो रही है।
हमारी संस्कृति में इसलिए व्रत का विधान है, किसी चीज को ढक़ देना व्रत है। संत-महर्षि कहते हैं कि कुछ न कुछ नियम जरूर लें इससे भीतर में संस्कार पड़ते हैं और आगे जाकर जीवन अनुशासित और महान बनता है। जीवन को खुला न छोड़ें, सदा व्रत, प्रत्याखानों से ढंका जीवन महान बनता है। चंचल मन सदा अनियंत्रित दौड़ता रहता है।
इसी स्वभाव में यह अनादिकाल से संसार में रचा-बसा है तो दूर कैसे हटे। गिरता हर व्यक्ति है, पर पुन: उठकर न गिरने का संकल्प और सचेत होकर आगे बढऩा है। एक डुबकी से सागर में मोती नहीं मिलते।
डर से नियम न लेना सबसे बड़ी भूल है। व्रत-नियम टूट जाए तो प्रायश्चित कर, सजग होकर पुन: अपनाएं। साध्वी उन्नतिप्रभा ने प्रभु भजन पेश किया। धर्मसभा में पुणे से आए संघ के प्रतिनिधिमंडल ने साध्वीवंृद के दर्शन किए।