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आचार्य स्वयं बनते हैं अरिहंत-सिद्ध: साध्वी कंचनकंवर

आचार्य स्वयं बनते हैं अरिहंत-सिद्ध: साध्वी कंचनकंवर

गुणानुवाद सभा का आयोजन

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में आचार्य आनन्दऋषि की जन्म जयंती और साध्वी उम्मेदकंवर की पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा हुई। इस अवसर सामूहिक एकासन समेत अनेक कार्यक्रम हुए।

साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा सूर्य, चंद्र जहां हमें प्रकाश नहीं दे सकते वहां हमें दीपक का प्रकाश राह दिखाता है, उसी प्रकार आचार्य आनन्दऋषि का जीवन रूपी दीपक हमारे जीवन को अपने ज्ञान, तप, और आदर्शों से सदैव प्रकाशित कर रहे हैं। आचार्य के तीन प्रकार कहे गए हैं- शिल्पाचार्य, कलाचार्य, धर्माचार्य।

आचार्य पांच व्रतों का पालन कर इंद्रियों को जीतते हैं, पांच गुप्ति का पालन करते हैं तथा स्वयं के समान दूसरों को भी धर्ममार्ग पर अग्रसर करते हैं। आ.आनन्दऋषि का जीवन धर्माचार्य है। उन्होंने साध्वी समुदाय के लिए अनेक ऐतिहासिक प्रस्ताव पास किए और श्रमण संघ के संगठन को सुदृढ़ और मजबूत बनाने में सदैव स्मरणीय योगदान दिया। महान बनने के लिए महानता हासिल करना पड़ता है।

महासती उम्मेदकंवर का जीवन त्याग, तप, ज्ञान, दर्शन और चारित्र का उत्कृट उदाहरण है। त्याग का जीवन में इतना चमत्कार होता है यह हम उनके जीवन से जानकर श्रद्धा से सिर झुक जाता है।

साध्वी डॉ.हेमप्रभा ने महापुरुषों के गुणों का स्मरण वर्षों बाद भी किया जाता है क्योंकि वे क्रोध, मान, माया रूपी दुर्गुणों को विजयकर संतोष, श्रद्धा, प्रेम में बदलते हैं। आचार्य घर की देहली के दीपक के समान स्वयं के साथ दूसरों का जीवन भी तप, त्याग, अहिंसा और संयम से महकाते हैं। उनकी दृष्टि अपने लक्ष्य और आनेवाली पीढ़ी पर रहती है। आचार्य स्वयं अरिहंत-सिद्ध बनते हैं लेकिन श्रावकों को भी अरिहंत-सिद्ध बनने के मार्ग पर अग्रसर करते हैं।

साध्वी उम्मेदकंवर के जन्म, विवाह, पति से वियोग के बाद अनेक कष्ट समता से सहने, वैरागी जीवन तथा दीक्षा सहित अंतिम समय में साथ बिताए पलों को याद करते हुए कहा इतने कष्ट सहकर भी उन्होंने धर्म मार्ग की प्रीति को दृढ़ बनाए रखा और सारी प्रतिकूल परिस्थितियां और यातनाओं के बाद भी विचलित नहीं हुईं। ३३ वर्ष अन्नत्याग, रसेन्द्रियों को वश में कर अनेकों प्रकार की कठिन तपस्याएं करते हुए अंतिम समय में भी उन्होंने आत्मबल से संथारे सहित नशवर देह त्याग कर देवलोकगमन किया।

साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा महापुरुषों का जन्म, दीक्षा, पुण्यतिथि सभी शुभ ही शुभ है। आज महान तपस्वी आचार्य आनन्दऋषिजी का जन्म और महातपस्वी, त्यागी साध्वी उम्मेदकंवर का देवलोकगमन दिवस है। आ. आनन्दऋषि का स्वभाव सुख, शांति, मधुर, आनन्ददायक तथा संघ की एकता और संघठन में उनका विश्वास था। श्रमण संघ को उन्होंने नई दिशा प्रदान की।

इस अवसर पर श्री मधुकर उमराव चातुर्मास समिति के चेयरमैन दुलीचंद चोरडिय़ा, सरदारमल चोरडिय़ा, अध्यक्ष नवरतनमल चोरडिय़ा, पारसमल सुराणा, जेठमल सुराणा, हीराचंद पींचा, गौतमचंद गुगलिया, शांतिलाल सिंघवी उपस्थित थे। प्रकाश गुलेछा, पुष्पा बोहरा, चेतन पटवा ने भी विचार व्यक्त किए। इस मौके पर नेत्र जांच शिविर भी लगाया गया।

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