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आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनंद ऋषि जी म सा की जन्म जयंती तीन तीन सामायिक से मनाई गई

आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनंद ऋषि जी म सा की जन्म जयंती तीन तीन सामायिक से मनाई गई

श्री एस एस जैन संघ नार्थ टाउन के तत्वावधान में पुज्य गुरुदेव जयतिलक मुनिजी म सा के सान्निध्य में आचार्य सम्राट राष्ट्र संत परम पूज्य श्री आनंद ऋषि जी म सा की जन्म जयंती मनाई गई।

इस अवसर पर आचार्यदेवेश श्री देवेन्द्रसागर सु.म.सा ठाणा 2 ने पधार कर जिनवाणी व मंगल पाठ सुनाया । आनंद ऋषि जी म सा के जन्मोत्सव पर महिला मण्डल द्वारा स्तवन प्रस्तुत किया गया। बंशीलाल डोसी ने आचार्य प्रवर के जीवन पर प्रकाश डाला। महिला मण्डल अध्यक्षा ललिता सबदडा ने आनंदऋषिजी के बारे में गुणगान किया। सचिव ममता कोठारी ने स्वरचित कविता गाई। महावीर लुणावत, इंद्राबाई संचेती ने भजन गाया। अध्यक्ष अशोक कोठारी ने बताया कि आनंदऋषि जी म सा का 123 वा जन्म दिवस आज हम नार्थ टाउन में तीन तीन सामायिक से मना रहे हैं

 सुरेश इंद्राबाई संचेती ने आजीवन ब्रह्मचार्य चौथे व्रत के प्रत्याख्यान गुरुदेव जयतिलक मुनिजी से ग्रहण किया। साथ ही आज के जन्म दिवस के मुख्य सहयोगी सुरेश जी संचेती परिवार का सम्मान माला साल व स्मृति चिन्ह से किया गया। तत्पश्चात जयतिलक मुनिजी ने बताया कि प्रमाद की निर्वृत्ति का उपदेश जिनेश्वर भगवान ने दिया भगवान कहते है एक क्षण भी बहुत बड़ा होता है जो क्षण को जानता है क्षण के महत्व को मानता है वही अपने जीवन को जान सकेगा। क्षण-2 यह शरीर नष्ट हो रहा है पर जीव बेभान हो प्रमाद में समय व्यतीत कर रहा है। यह शरीर ही आठ कर्मों के बन्ध व तोड़ने दोनों में सहयोगी है। यदि शरीर का सदुपयोग किया जाये तो ये वरदान और इसी शरीर का दुरुपयोग किया तो ये अभिशाप बन जाता है। शरीर का सदुपयोग किया जाये तो जन्म-मरण की वेदना, कर्म बन्ध से मुक्ति मिल जायेगी। जिनवाणी सदैव मानव को जगाने का, चार गति से मुक्ति पाने के लिए प्रेरणा देती है ।

जब तक शरीर स्वस्थ है तब तक यह शरीर आपका परम मित्र है ये आपका आत्म कल्याण करा सकता है और अस्वस्थ या रोगी होने पर यह शरीर आपका वैरी या शत्रु बन जायेगा। शरीर का सदूपयोग करने वाले का सहज में ही मंगल हो जाता है। क्योंकि भगवान कहते है कि मंगल और अमंगल दोनो आपके शरीर में ही वास करते है। कहा जाता है शरीर में 10 प्रकार की असाधारण शक्ति है ये 10 प्रकार के बल प्राण अति पुण्यवाण जीव को मिलते हैं। भगवान कहते हैं ये बल स्वयं का व दूसरों का भला करने में लगाओ। कान जिनवाणी श्रवण के लिए है ना कि साज सज्जा और कुवाणी सुनने के लिए। जीवन क्षण -2 व्यतीत हो अन्तिम पड़ाव के निकट आ रहा है।

इसलिए इस जीवन को भोग विलास में ना लगाकर आत्म कल्याण में लगाओ। भगवान कहते है जिनवानी मात्र कान से नही अपने प्राणो से सुनो जिससे आप अपनी मंजिल को पा सकोगे। इसलिए अपना लक्ष्य धारण करें अपने नेत्रो को सदैव लक्ष्य पर रखो यानि जीवन के मुल्य को न भुलो। कितने ही उपदेश, कितनी ही जिनवाणी सुन ली पर दीक्षा लेने का भाव उत्पन्न नहीं होता। मन तो प्रभावना पाने में लगा रहता है। जिस भवी जीव के कानो मे जिनवाणी चली जाती है वह इस भव सागर से तिर जाता है। प्रवचन सुनते हुए भी आपका मन संसार में घर में, लगा रहता है जबकि सिनेमा में 4 घंटे भी हो जाये तब भी घर, दुकान याद नहीं आते। मोक्ष घर के चुल्हे चौके दुकान, मोबाइल, फेस बुक में वास नहीं करता मात्र 25 बोल को घोट कर पीने से यह ऊर्जा नहीं देगा यदि 25 बोल को सही ढंगे से जान कर आचरण में धारण कर लिया तो ये आठ कर्मो के बन्धन को तोड़ने में सहायक बन जायेंगे।

संसार में सबसे, मुल्यवान माँ होती है। माँ के लिए कितना भी कर लो अपने शरीर की चमड़ी की पादुका बना माँ को पहना दो फिर भी माँ का उपकार नही चुकाया जा सकता। जो माँ वास्तव में अपने बेटे का उद्धार करना चाहती है वो उसे गीटार, स्वीमिंग क्लास भेजने की बजाय धर्म स्थान में भेजती है। सबसे पहली अपनी वाणी, पहला आशीर्वाद, पहला आहार संतान अपनी माँ से प्राप्त करता है। धन्य है आनंदऋषिजी की माँ उन्होंने अपने पुत्र को गुरु के समझ प्रतिक्रमण कंठस्थ करने बैठा दिया सोचा कि प्रतिक्रमण याद करेगा। पर उस महान विभूति ने बाल्यकाल में ही अपने जीवन को गुरु चरणों में समर्पित कर दिया।

यदि माँ अपने बच्चे को अच्छे गुण देगी तो वह सतान अच्छा मानव बनेगा। संसार में गुणों का महत्व है शरीर का नही। इसलिए गुणवान बनो।

आचार्य देवेन्द्रसूरीजी ने फरमाया, प्रश्न पूछा आपको साधु के दर्शन परिचय, उनकी सेवा, उन्हें गोच्छरी वोहराने में आनंद है क्या आप कहेंगे हॉ पर आपको साधु बनने में आनंद नहीं क्योंकि आप घर से निकलते समय ही निश्चय कर लेते हो कि मात्र प्रवचन सुनना पर जीवन में उतारना नहीं। आपक पर्युषण पर्व का सम्बन्ध सीधे आत्मा से है इसलिए इसे आध्यात्मिक पर्व कहते हैं। इस पर्व में मात्र धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान होना चाहिए। पर एक उपवास में भी शाम तक आप पारणे की लिस्ट दे देते हो पर भोजन करते समय उपवास का ख्याल नही आता ।

नवकार महामंत्र के लिए आज हमारा समर्पण कितना। समर्पण ना होने से हम अपना लक्ष्य भटक गये हो व्याख्यान छुट गया तो चलेगा पर कामवाली का मोह नहीं छूटता। सामायिक में घड़ी पचास बार देखोगे पर घर के काम करते समय आप को घड़ी का ख्याल नहीं आता।

बच्चे को देख के स्कूल, व्यापारी को देख साहुकारपेट, डॉक्टर को देख के हास्पिटल याद आ जाता है पर साधू को देख कभी ये विचार आया कि ये मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ रहे है पर मै सांसारिक मार्ग पर भटक रहा हूँ बिना लक्ष्य के। यदि आप दिखावे के लिए धर्म करते हो तब भी वह कल्याण कारी होता है तो विचार करो यदि वास्तव की आत्मा के लिए धर्म करोगे तो धर्म आपको भव सागर से तार देगा। कर्म निर्जरा के भाव से, नवकार मिले इस भाव से, परमात्मा का शासन मिले इस भाव से धर्म करो। इसलिए इस पर्युषण पर्व को आनंद से मनाओ खूब धर्म ध्यान करो। आनंदऋषि जी को 36 कौम के लोग जानते है और अहमदनगर मे उनके प्रभाव का क्या कहना। ऐसे ऋषि मुनियों को याद करने का आनंद ही अलग होता है। उनके गुणों को जीवन में धारण करो, मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करने के लिए पर्व मनाओ। अपने अन्तरमन से क्षमायाचना करें पर्युषण पर्व मनाओ। यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी।

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