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आचार्य सम्राट जयमलजी म सा के जीवन के दृष्टांत पर भाषण प्रतियोगिता

आचार्य सम्राट जयमलजी म सा के जीवन के दृष्टांत पर भाषण प्रतियोगिता

आचार्य सम्राट जयमल जी म सा की 316 वीं जयंती के उपलक्ष्य में नौ दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत दिनांक 30 सितंबर, शनिवार को प्रथम दिवस में पुज्य जयमल जी म सा के जीवन के दृष्टांत पर भाषण प्रतियोगिता नार्थ टाउन में AMKM स्थानक, विला 7 में आयोजन किया गया।

अनेक वक्ताओं ने जयमल जी महाराज साहब के बारे में वर्णन किया। ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि आचार्यश्री जयमलजी म. धर्मोद्धारक वीर पुरुष श्री धर्मदासजी म० की परम्परा के ज्योतिर्धर सन्तरत्न थे। वे माता जिनवाणी की जीवनपर्यन्त त्याग, तपस्या, वैराग्य आदि के द्वारा उपासना करते रहे। आपका जन्म मरु-प्रदेश के लांबिया ग्राम में हुआ था। माता पिता का नाम क्रमशः महिमाबाई और मोहनदासजी था। एक संभ्रांत परिवार की कन्या (श्री लक्ष्मी बाई) के साथ इनका विवाह 22 वर्ष की अवस्था में हुआ था।

मेड़ता में आपको पूज्य श्रीभूधरजी म. का वैराग्यमूलक उपदेश श्रवण करने का स्वर्ण-अवसर मिला। मुनिश्री के मुख से सुदर्शन सेठ के ब्रह्मचर्य व्रत की महिमा का संगीत सुना। विचार बदले, जीवन बदला।

पूज्य श्री भूधरजी म. से दीक्षा प्रदान करने की विनती की। भूधर जी म. ने कहा–‘जीवन के महान् निर्णय को इस प्रकार सहसा कैसे कर रहे हो ?’ जयमलजी ने कहा : ‘निर्णय तो सहसा और एक साथ ही होते हैं. प्यास लगी हो तब पानी पीने के लिए सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं होती। अन्ततः मेड़ता में ही रहकर परिवार की अनुमति प्राप्त की, और सं० 1787 की मगसिर कृष्णा द्वितीया को मुनि-दीक्षा ग्रहण की। नवदीक्षित जयमल जी ने मुनिजीवन की साधना के साथ-साथ ही ज्ञानोपासना भी प्रारम्भ की। आचार्य श्री जयमलजी ने संघ-व्यवस्था का दायित्व प्राचार्य श्रीरायचन्द्रजी जी को सं०1846 में युवाचार्य घोषित करके प्रदान कर दिया था।

भाषण प्रतियोगिता में निम्नलिखित भक्तों ने जयमलजी के जीवन पर प्रकाश डाला:-रीनाजी कुकडा, ज्ञानचंद कोठारी, पलक डूंगरवाल, कोमल खटोड़, कांता पोकरणा, कल्पना बैद, चन्द्रप्रकाश गोडावत, स्वीटी चोरडिया, ऋषभ चोरड़िया, बंसीलाल दोशी, हर्षल डूंगरवाल, प्रेमाबाई गादिया, रेखा मेहता, मंजू कोठारी आदि ने अपने विचार रखें।

वडपलनी से पधारें रिखबचंद जी बोहरा व संघ के सचिव ललित बेताला ने निर्णायक की भूमिका निभाई व विजेताओं को पुरस्कृत किया:- प्रथम – रेखाजी मेहता, द्वितीय – चन्द्रप्रकाशजी गोडावत, पलकजी डूंगरवाल, तीसरा- ऋषभजी चोरडिया। एवं अन्य सभी को सांत्वना पुरस्कार दिए।

तत्पश्चात गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्मबंधुओ श्रावक के 12 व्रतों का निरुपण किया। धर्म दो प्रकार के आगार धर्म, अणगार धर्म।

आगार धर्म जो संसार मे रहते हुए भी इन व्रतो का पालन कर सकते है पहले व्रत के 5 अतिचार है। बन्ध – तीव्र कोध और मनोरंजन के लिए गाढ़ा बन्धन बांध देते है वेदना होती है वेदना होने से कभी कभी व्यक्ति मर जाता है । बन्ध दो प्रकार के दुष्य बन्ध, भाव बन्ध । दुष्य बन्ध जो किसी को बन्धनो बान्धते है। भाव बन्धन यानि वचन से बान्धना । चन्दना बाला को बन्धन में बांध कर तलघर में डाल दिया। अध्यक्ष अशोक कोठारी ने सुचना दी कि रविवार को आचार्य सम्राट जयमलजी के बारे में संगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा।

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