आचार्य पुज्य श्री शुभचन्द्रजी म सा की 84 वी जन्म जयंती के उपलक्ष्य में पुज्य जयतिलक जी म सा के सान्निध्य में जैन भवन रायपुरम में दो दो सामायिक तथा एकासन दिवस के रूप में मनायी गयी। करिब 108 लोगों ने एकासन किया। इस अवसर पर सुनीता कांकरिया, मधु बोहरा, गौतमचंद खटोड, चिरंजीलाल दुगड ने गीत व स्तवन गया। सेलम से पधारे नवरतनमल बोकडीया, शीखरचंद बेताला ने आचार्य जी का गुणगान किया। जयमल संघ के पुर्वाध्यक्ष पारसमलजी गादिया ने शुभचन्द्रजी म सा के जीवन पर प्रकाश डाला। मधुर गायक राकेश परमार ने गुरु की महिमा पर सुन्दर भजन द्वारा सबका मन मोह लिया। चंदनबाला महिला मण्डल,रायपुरम तथा ब्रह्मि महिला मण्डल, तंडियारपेट की सदस्याओ ने भक्ति गीत प्रस्तुत किया ।
पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि अनंत अनंत करुणा के सागर भगवान महावीर ने भव्य जीवों पर करुणा कर जिनवाणी प्ररूपित की और गृहस्थों के लिए 12 व्रत का निरूपण किया। जन्म और मरण एक चक्र है। किंतु बीच का समय एक जीवन है किंतु जीवन जीवन में अंतर है। आचार्य जी का जीवन बहुत सरल, सहज था। किसीसे कोई अपेक्षा नहीं। उनका आभामण्डल ऐसा प्रभावी था कि आगुन्तुक अपने दुःख दर्द भूल जाता था, एवं परम शांती का अनुभव करता। कोई नव परिचित या अपरिचित भी आ जाता तो घंटो सेवा में बैठ जाता ऐसा उनका अतिशय था! जब उनके असाता वेदनीय का उदय था तो शरीर में भंयकर वेदना हो गई। यादाश्त चली गई किन्तु पुण्यवाणी प्रबल होने से, फिर से यादाश्त आ गई। और स्मृति पहले से भी तेज हो गई थी। यह एक आश्चर्य था। उनकी दृष्टि बड़ी विशिष्ट थी। आने वाले श्रावको का पूरा परिचय रखते थे। वो आपने सुख से ज्यादा पर सुख की चिन्ता करते! कभी किसी को उपालम्भ नहीं देते। सबका हित एवं उत्तम ही सोचते थे! हर जीव के प्रति सबका उत्तम सुविचार रखते थे। आचार्य बनने के बाद सबका भला सोचना संभव नहीं होता किंतु वे सबका भला सोचते। चाहे कोई उन्हें सम्मान दे या न दे दोनों स्थिति में समभाव रखते थे।उनका मांगलिक का बडा प्रभाव था। आगन्तुक व्यक्ति बहुत होते थे। दिन मे 500-600 बार मंगलिक देते! किन्तु आचार्य श्री नही थकते। उनके सानिध्य में सब सुकून महसूस करता है। जो कोई व्यक्ती जोधपुर जाता तो स्वयं ही उनके चरणों में पहुँच जाता। यहाँ तक कि बड़े बड़े आचार्य भी उनके दर्शन वंदन करने लालायित रहते। तेरापंथ के आचार्य, ज्ञान गच्छ के प्रकाश मुनि एवं बडे बडे दिग्गज आचार्य भी उनके वन्दन को पहुंच जाते।
आचार्य श्री नन्हे बालक की तरह सरल, सुबोध थे। उनके दिल में छल कपट नहीं होता था! वे कभी भी गुप्त बात नहीं करते! कभी किसी साधु संत की विंनती नहीं आती तो भी उनके दिल में क्षोम नहीं होता था आचार्य श्री इतने सहनशील थे कि छोटे भी कुछ बोल दे तो वो उनको वे वापस नहीं बोलते। हर परिस्थिति में प्रसन्न रहते थे। यहाँ तक की रात्रि विश्राम के समय भी कोई मंगलिक मांगते तो भी पुरे आशीर्वाद के साथ मंगलिक सुनाते थे। उनका नाम था “शुभ” शुभ का अर्थ ही शुभ, मंगल होता है! ऐसा महान आचार्य का नाम लेने वाले के जीवन में भी शुभ ही होगा!कार्यक्रम में चुलैमेडु, तिरुवल्लुर, किलपाक आदि अनेक बाजारों से संघ लेकर पधारें। इस अवसर पर रीखबचंद बोहरा, वीजयसींगजी पींचा, भवरलाल ओस्तवाल, धर्मीचंद बोहरा, एवं अनेक गणमान्य लोग उपस्थिति रहें। मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने सभी का स्वागत किया। श्री यस यस जैन ट्रस्ट, रायपुरम के अध्यक्ष पारसमलजी कोठारी, उपाध्यक्ष अशोक खटोड, कोषाध्यक्ष धनराजजी कोठारी, सहमंत्री गौतमचंद खटोड, एवं ज्ञान युवक मण्डल तथा अनेक पदाधिकारिगण व सदस्याओ ने सेवाएं प्रदान की। अंत में सभी को प्रभावना दी गई। यह जानकारी प्रचार प्रसार मंत्री ज्ञानचंद कोठारी ने दी।