रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि जीव अनादिकाल से चारगति 24 दंडक, छः काय, पाँच जाति के अन्दर परिभ्रमण कर रहा है। हर जीव सुख की कामना करते है! जीव सुख की प्राप्ति के लिए क्रिया करता है किंतु अज्ञान अवस्था में सुख की लालसा में कार्य दुःख के करते है। सुख के कार्य करता है तो निश्चय सुख की प्राप्ति होती है। जिन्होंने भगवान की वाणी को सुनकर समझ लिया सुख के लिए प्रयत्न किए तो अव्याबाध को सुख प्राप्त कर लिया। संसारी जीवों के तीन सुख बहुत बड़े है । 1. भोजन 2. परिवार का पालन पोशन 3. धन । भोजन सुख देने वाला नहीं, उसका मात्र शरीर से निर्वाह के लिए है। भोजन धर्म में सहयोगी है। यदि भोजन में सुख होता तो भगवान को उपवास की जररूत नहीं पड़ती। और न ही तप का उपदेश देते । किंतु अज्ञानी जीव भोजन में ही सुख मानता है। जब तक भ.महावीर के कथन का अनुसरण करते है वो ही सचे अनुयायी है! आज का युग 100-150 व्यंजन भोज में रखा जाता है। भगवान कहते है द्रव्य की मर्यादा करों किंतु आप क्या कर रहे हैं। अधिक द्रव्य होने से झुठा अधिक छोड़ते है। कर्मबंध होता है। जीव की विराधना होती है।
आज भादवा सुदी एकम के दिन शुभचन्द्रजी म सा का संथारा रायपुर में सीजा। 2003 में उन्हें पैरालीसीस अटेक हुआ और स्मरण शक्ती भी क्षीण हो गई! इलाज कराया गया। सेवा की। 2003 से 2015 तक उन्हें वेदना रही। वो विहार में समर्थ न होने से जोधपुर में ठाणापती हो गये। इतनी वेदना होने के बावजूद भी वो फूल की भाँति खिले रहते और मांगलिक सुनाते। जिससे श्रोता मुग्ध हो जाते थे। वे दुसरो की सुख साता पूछते किंतु अपनी वेदना कभी किसी से नहीं कही। वे नाम से शुभ थे तो कर्म से भी शुभ थे। उनके दर्शन ही मंगलकारी शुभकारी थे ! उनका पास हर कोई चाहे वह श्वेताम्बर हो या दिगम्बर चाहे मुसलमान हो कोई भी उनके पास आता धर्म सुनता और सहज ही व्रत प्रत्याख्यान ग्रहण करता।
ऐसे महान शुभचन्द्र जी मरासा के 2015 में पथरी हो गई! दांत भी साथ नहीं दे रहे थे। सिर्फ छाछ रोटी ही ग्रहण कर पाते ! उन्हे अहमदाबाद इलाज के लिए ले जाया गया । अपने जीवन काल में तीन वर्ष पूर्व ही आचार्य पद को वोसिरा दिया और आचार्य पद पार्श्वचन्द्र जी मरासा जो अमरावती में विराजमान थे उन्हें समचार पहुँचाया गया की आप आज से आचार्य पद पर है। किंतु पार्शवचंद्र म.सा ने भी शुभ आचार्य के जीवित रहते आचार्य पद की चादर नहीं ओढी । ऐसे महान शुभचन्द्र जी आचार्य का आज भादवा सुदी एकम के दिन स्मृति दिवस है। मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने सभी का स्वागत किया। सीध्द भन्साली, श्रेयान्श सुराणा, पदमसींग चौधरी, मधु बोहरा ने आचार्य जी की महिमा पर गीत प्रस्तुत किया ।
ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि आचार्य शुभचंद्र जी सर्वसंप्रदाय व समुदाय के लोगों के बीच विशेष श्रद्धा एवं अनन्य आस्था के केंद्र थे। आचार्य का जीवन सरलता, सादगी और संयम का त्रिवेणी संगम था। अपने नाम के अनुसार ही उनका आचरण, चिंतन, मनन, वाणी, व्यवहार शुभमय था। वे हर पल स्वाध्याय एवं अनुप्रेक्षा में रत रहते हुए शुभ भावों में रमण करते थे। वे भले ही एक संप्रदाय के आचार्य थे, परंतु संपूर्ण जैन समाज में अग्रण्य स्थान रखते हुए अपनी उदारता, स्नेह वात्सल्य, नम्रता, सहजता से सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। उनके व्यक्तित्व में ऐसा चुम्बकीय आकर्षण था कि जो व्यक्तित्व एक बार उनके सान्निध्य को प्राप्त कर लेता वह हमेशा के लिए उनका परम भक्त बन जाता था। उनके सदाचरण के प्रभाव से बाल, युवा, वृद्ध सभी प्रभावित थे। प्रसन्नता की महक उनके मुख मंडल पर सदा प्रसारित रहती थी। महिपाल चोरड़िया ने आचार्य जी के जीवन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर बोहरा परिवार की ओर से सभी को प्रभावना दी गई।