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आचार्य शुभचन्द्रजी मरासा की जन्म जयंती तप त्याग‌ और दया दिवस के रूप में मनाई गई

आचार्य शुभचन्द्रजी मरासा की जन्म जयंती तप त्याग‌ और दया दिवस के रूप में मनाई गई

नार्थ टाउन में आचार्य शुभचन्द्रजी मरासा की जन्म जयंती तप त्याग‌ और दया दिवस के रूप में मनाई गई।

श्री एस एस जैन संघ नार्थ टाउन के तत्वावधान में पुज्य गुरुदेव जयतिलक मुनिजी म सा के पावन सानिध्य में आचार्य सम्राट शुभचन्द्रजी मरासा की जन्म जयंती आज दिनांक 29 जुलाई शनिवार को तप त्याग‌ और दीक्षा दिवस के रूप में मनाई गई।

सर्वप्रथम अध्यक्ष अशोक कोठारी ने सभी का स्वागत किया। तत्पश्चात महिला मण्डल द्वारा शुभचन्द्रजी मरासा के बारे में गीत प्रस्तुत किया। जयमल श्रावक संघ के अध्यक्ष पारसमल गादिया ने आचार्य प्रवर के जीवन पर प्रकाश डाला। महिला मण्डल सचिव ममता कोठारी ने शुभचन्द्रजी पर भजन गाया। कार्यकारिणी सदस्य ज्ञानचंद कोठारी ने आचार्य शुभचंद्र जी के जीवन पर संबोधित करते हुए कहा कि वे सर्वसंप्रदाय व समुदाय के लोगों के बीच विशेष श्रद्धा एवं अनन्य आस्था के केंद्र थे। आचार्य का जीवन सरलता, सादगी और संयम का त्रिवेणी संगम था। अपने नाम के अनुसार ही उनका आचरण, चिंतन, मनन, वाणी, व्यवहार शुभमय था। वे हर पल स्वाध्याय एवं अनुप्रेक्षा में रत रहते हुए शुभ भावों में रमण करते थे।

वे भले ही एक संप्रदाय के आचार्य थे, परंतु संपूर्ण जैन समाज में अग्रण्य स्थान रखते हुए अपनी उदारता, स्नेह वात्सल्य, नम्रता, सहजता से सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। उनके व्यक्तित्व में ऐसा चुम्बकीय आकर्षण था कि जो व्यक्तित्व एक बार उनके सान्निध्य को प्राप्त कर लेता वह हमेशा के लिए उनका परम भक्त बन जाता था। उनके सदाचरण के प्रभाव से बाल, युवा, वृद्ध सभी प्रभावित थे। प्रसन्नता की महक उनके मुख मंडल पर सदा प्रसारित रहती थी।

गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि स्व और पर के उदार के लिए पुण्यवाणी आज भी प्राणी मात्र के कल्याण, नाम सुनने मात्र से जन जन के मन मे उल्लास, जैसे मयुर के सुनने से वैसे ही आचार्य सम्राट शुभचन्द्रजी मा.सा. की वाणी। वाणी में 4 घंटे बैठने पर भी उठने की इच्छा नहीं। उनके सानिध्य में बैठने पर उठने की इच्छा नहीं । क्योंकि उनके पास वात्सल्य बरसता था यदि एक बार दर्शन कर लेते तो बार बार दर्शन करने का सकंल्प कर लेते।

ऐसा उनका आकर्षण लगा रहता। बड़े आचार्य, उपाध्याय के मन में भी दर्शन करने की लालसा रहती थी। जो भी जोधपूर पर कदम रखता थे तो उनके दर्शन की इच्छा हो जाती। ऐसे भी उनकी पुण्यवाणी हर पल याद करना याने प्रबल पुण्यवाणी। शरीर में अस्वस्थता होते हुए भी शरीर में प्रमाद नहीं और संसारी बातें नहीं करते। प्रेरणा और ज्ञान चर्चा की बातें करते। उनके अतिशय पुण्यवाणी लालसा होती थी।

कोई व्यक्ति वहाँ बैठता था तो उनके मांगलिक सुनने के लालायीत होते। विश्राम का नाम नहीं था। गोचरी छोडकर भी मंगल पाठ सुना देते थे। कितनी भी सर्दी, गर्मी जुकाम हो तब भी मांगलिक दिए बिना नहीं रहते। रात के 11, 12 बजे भी प्रमाद नहीं। वो महान विभूति थे शरीर सूर्य के समान चमकता था। उनके लिए लोग मोहित हो जाते।

कही परायापन नहीं लगता । वाणी के अंदर रेकारा नहीं, सम्मान के साथ आदर के साथ संबोधित करते थे। कभी उपालम्ब, ताने नहीं देते थे। वो समता की मूर्ति, 22 परिषह को सहन करने की समता थी। इच्छा से रहित कभी किसी चीज की इच्छा नहीं। कंचन कामिनी नही कोई अभिलाषा नहीं । साधना-शील महापुरुष थे। उनके कोई पद की भी कामना नहीं । अहंकार बिल्कुल नही, सबके साथ एक समान किसी के साथ कोई राग नही, किसी से कोई द्वेष नहीं। गुरुभाई सभी के साथ एक व्यवहार उनके अंदर वीतरागता झलकती थी।

उन्होंने जीतमल जी, रावतमल जी म सा की भी खूब सेवा की, सेवा में भी तत्पर और उनकी वाणी में मधुरता आकर्षण विशेषता थी। जैसा नाम वैसा गुण था अनेक स्थानों से भक्त उनके दर्शन के लिए लालायीत थे। और अंतिम समय भी उनके दर्शन करके आश्चर्य चकित हुए। दो दिन का संथारा आया। छोटे से छोटे क्षेत्र और अंतिम संथारा रायपुर में हुआ छोटे से गांव मे भी लोगों को किसी भी प्रकार की कमी नहीं हुई। हिन्दू तो क्या, जैन तो क्या, सभी आकर बैठते थे और कहते थे ये हमारे गुरु है। बिना प्रलोबन के तक के सभी के आंखों में आसू आ गये और अंतिम संस्कार करने के बाद तक जब तक अंतिम संस्कार हुआ उनके पीछे सूर्य भी वापस लौटकर आ गया सब आश्चर्य चकित किसी जीव का अतिशय पुण्यवाणी होती है तभी ऐसा दृश्य देखने को मिलता है।

उनकी दीक्षा हर्षोलास – 1956 में विक्रम संवत 2013 में हुई।

आज भी उनकी जंयती सादगी पूर्व हर साल मनाया जाती है ऐसे महापुरुष का आज जन्म दिवस मना रहे है। इस अवसर पर बोहरा परिवार की ओर से सभी को प्रभावना दी गई। सचिव ललित बेताला ने बताया कि आज के जन्म जयंती के उपलक्ष्य में अनेक श्रावक श्राविकाओं ने 11 सामायिक करके दया के पच्छखान लिए।

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