नार्थ टाउन में ए यम के यम स्थानक में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि धर्म जीवन का एक मूल है धर्म के बिना जीवन, जीवन नहीं है। धर्म जीवन का अनिवार्य अंग है। धर्म से ही जीवन सुन्दर, पवित्र बनता है। धर्म जीवन की एक महत्वपूर्ण साधना है जो जीव धर्म को जीवन में अपना कर आचरण करता है अपना जीवन संयमित करता है वो जीव गृहस्थ में भी सिद्ध शिला का अनुभव कर सकता है।
मात्र मनुष्य ही धर्म का आचरण कर सकता तिर्यंच आदि जीव नहीं । इसलिए केवल मानव ही केवलज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति कर सकता है। धर्म को जाने जानने वाला अपने कर्मो के उदय में आने पर उन्हें समभाव से सहन करता है। इससे उसका दुख घटता है और सुख में निरन्तर वृद्धि आती है। धर्म -ध्यान करने से दुःख नही आता है। धर्म ध्यान करते हुए भी यदि दुःख आ जाये तो पूर्व भव के कर्म उदय है। तीर्थकंर ने भी धर्म-ध्यान से ही शाश्वत सुख की प्राप्ति की है। धर्म – ध्यान जीवन में जीतना मजबूत होगा उतना आगे का जीवन सुखदायी बनेगा । धर्म को प्रसन्नता के साथ आनंद के साथ अपने जीवन में धारण करें जिससे आपका जीवन मंगलकारी कल्याणकारी बनेगा।
सांतवे व्रत को धारण कर जीव अल्पआरम्भी अल्प परिग्रही बन सकता है। छः महीने की तपस्या के बाद भी आत्मा को सुख की अनुभूति होना यदि सिद्ध शीला की अवस्था है। मोक्ष के अभिलाषी जीव संसार में रहते है परन्तु संसार में उनमे नहीं बसता इसलिए उनके निकाचित कर्मो का बन्ध नही होता। इसलिए जिनेश्वर प्रभु ने गृहस्थ के लिए देशविरति धर्म का निरूपण कर उन्हे धर्म से जोड़ दिया।
ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि दिनांक 24 अक्टूबर मंगलवार को श्री यस यस जैन संघ नार्थ टाउन के तत्वावधान में आचार्य भुधरजी म सा की जन्म जयंती मौन व सामायिक तेले के साथ मनाई जाएगी।