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आचार्य भुधरजी म सा की जन्म जयंती नार्थ टाउन में मौन व सामायिक के साथ मनाई गई

आचार्य भुधरजी म सा की जन्म जयंती नार्थ टाउन में मौन व सामायिक के साथ मनाई गई

श्री यस यस जैन संघ नार्थ टाउन के तत्वावधान में दिनांक 24 अक्टूबर मंगलवार को क्षमा श्रमण आचार्य भुधरजी म सा की जन्म जयंती गुरुदेव जयतिलक मुनिजी के पावन सानिध्य में मौन व सामायिक के साथ मनाई गई।

सर्वप्रथम महिला मण्डल ने भुधरजी पर गीत प्रस्तुत किया। संघ के वरिष्ठ श्रावक बंशीलाल डोसी ने भुधरजी के जीवन पर प्रकाश डाला। महिला मण्डल की मंत्री ममता कोठारी ने स्तवन गया। स्वीटी चोरड़िया व बबीता बैद ने नाटक पेश किया। पेरंबुर से पधारी प्रेमलता मेहता ने बहुत ही सुन्दर गीत गया। ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए बताया कि ऐसे महान आचार्य के थोड़े से गुण भी अगर हम धारण कर लेते हैं तो जीवन को सफल बना सकते हैं।

तत्पश्चात गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि जिनशासन में एक-से-बढ़कर एक महापुरुषों ने जन्म लिया, ऐसे ही सोजत में ओसवाल कुल में भुधर का जन्म हुआ, वे हाकिम के पद पर सुशोभित थे। डाकू भी उनके नाम मात्र से पूरे क्षेत्र में जाते नहीं थे। जब एक दिन भुधर कंटालिया गये तो डाकुओं ने सोजत पर हमला कर दिया।

वे वापस कंटालिया से सोजत आये। अकेले भुधर 84 डाकू के साथ लड़ने लगे। डाकु भी डर कर भागने लगे। भुधर जी में ऐसी वीरता और भुजाओं में बल था । डाकूओं ने कटार निकाली और भूधरजी पर वार किया किन्तु कटार उनको नहीं लगकर उनके पालतू ऊंटनी को लग गयी। लेकिन ऊंटनी ने अपने स्वामी को नीचे नहीं गिराया, तीन चार किलोमीटर तक चलती रही और फिर मरण को प्राप्त हुई। यह देखकर भुधर की रुह काँप गयी। वो रूदन करने लगे। उनकी आत्मा अशांत हो गयी। वो बार बार चिन्तन करने लगे कि ऊँटनी की आत्मा को शांति हो जायेगी। कैसे शांति मिलेगी।

लेकिन जब पुण्यवाणी बढ़ती है तब ऐसे महापुरुष का सानिध्य मिल जाता है धन्नाजी महाराज का सानिध्य मिल गया। उन्होंने सारा प्रसंग सुनाया। तब धन्नाजी ने कहा पहले तू शांत हो। जा फिर ऊँटनी की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना‌। उन्होंने भूधर को पूरे विस्तार से धर्म बता कर दीक्षा लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने संयम अंगीकार किया और सभी दुःखो से मुक्त हो गये। 65 वर्ष की उम्र में संयम अंगीकार किया। 33 साल तक संयम का पालन किया। संयम पर्याय में उन्होंने 5-5 की तपस्या की। गुरु के समक्ष ज्ञान-ध्यान सीखा। जहाँ भी गये वहाँ धर्म में प्रभावना की। आचार्य स्वपर का कल्याण करने वाले होते है ऐसे महापुरुषों का जितना भी गुणगान करे वो कम है ऐसी प्रेरणा लेनी चाहिए जिससे आत्मा का कल्याण हो सके।

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