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आचार्य तुलसी के चतुर्मास स्थल से महातपस्वी महाश्रमण का मंगल पाथेय

आचार्य तुलसी के चतुर्मास स्थल से महातपस्वी महाश्रमण का मंगल पाथेय

कुमारा पार्क, बेंगलुरु (कर्नाटक): नित नए इतिहास का सृजन करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ बुधवार को प्रातः गांधीनगर से मंगल प्रस्थान किया। जन-जन को अपने दर्शन और मंगल आशीष से लाभान्वित करते हुए लगभग चार किलोमीटर का विहार कर कुमारा पार्क में स्थित गिड़िया परिवार के निवास स्थान में पधारे। अपने घर में अपने आराध्य को साक्षात् विराजमान देख गिड़िया परिवार पूर्णतया आह्लादित नजर आ रहा था।

आज आचार्यश्री का मंगल प्रवचन कार्यक्रम कुमारा पार्क में स्थित वल्लम निकेतन आश्रम में समायोजित था। यह आश्रम आचार्य बिनोवा भावे के पूरे देश में स्थापित दह आश्रमों में से एक है। यह स्थान तेरापंथ की दृष्टि से भी ऐतिहासिक है। क्योंकि आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व जब तेरापंथ के नवमाधिशास्ता, गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी दक्षिण भारत में पधारे तो बेंगलुरु के इसी वल्लभ निकेतन आश्रम में चतुर्मास किया था और यहां लोगों को अणुव्रत की बात बताई थी। इस बात को लेकर सभी जानने वाले श्रद्धालुओं का उत्साह अपने चरम था।

क्योंकि पचास वर्षों बाद इतिहास स्वयं को दोहराने जा रहा था। इस प्रकार आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने कीर्तिमानों की कड़ी में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ने जा रहे थे। प्रवास स्थल से लगभग साढे तीन सौ मीटर दूर स्थित आचार्यश्री उक्त आश्रम में पधारे। आचार्यश्री के पदार्पण पश्चात् सर्वप्रथम महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने पुराने इतिहास का वर्णन किया और श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। 

आचार्यश्री ने अपने गुरु के चतुर्मास स्थल से आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दो शब्द हैं-भोग और योग है। दोनों एक-दूसरे के विपरित हैं। आदमी अपने जीवन में पदार्थों का भोग करता है, विषयों का भोग करता है और उसमें आसक्त हो जाता है। आसक्ति से युक्त आत्मा पाप कर्मों से बंध जाती है। जीवन में पदार्थों का भोग करना होता है, किन्तु आदमी भोग करने के साथ पदार्थों के प्रति आसक्त हो जाता है। भोग पर योग का अंकुश होना चाहिए। आदमी को भोग और योग में संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को भोग में आसक्ति से बचने का प्रयास करना चाहिए।

पांच ज्ञानेन्द्रियां भोग का साधन हैं तो ये पांच ज्ञानेन्द्रियां ज्ञान प्राप्ति का साधन भी बनती हैं। आचार्यश्री ने आचार्य तुलसी के उन स्मृतियों को याद करते हुए कहा कि जैसे इस स्थान के विषय में बताया गया कि यहां गुरुदेव तुलसी का चतुर्मास प्रवास और प्रवचन हुआ था। तो आज हमारा परम पूज्य गुरुदेव के चतुर्मास भूमि में आना हो गया। आचार्यश्री ने गुरुदेव तुलसी की स्मृति में आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा रचित गीत का आंशिक संगान भी किया। इस मौके पर आचार्यश्री ने स्थानीय लोगों को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा भी प्रदान की। 

आचार्यश्री के आगमन में महासभा के उपाध्यक्ष श्री कन्हैयालाल गिड़िया, श्री जुगराज सोलंकी, स्थानकवासी समाज की ओर से श्री शांतिलाल पोकरणा, कर्नाटक के माइनारिटी कमिश्नर श्री जी.बी. बाबाजी, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य श्री के. महेन्द्र जैन, वल्लभ निकेतन आश्रम के मानद सचिव श्री सिद्धार्थ शर्मा, चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री दीपचंद नाहर, गांधी आश्रम के अध्यक्ष श्री वुडेपी कृष्णा ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। महिला मंडल, कुमारा पार्क और शेषाद्रिपुरम की श्राविकाएं, श्रावक गण आदि ने अपने-अपने गीतों के माध्यम से आचार्यश्री के चरणों की अभिवन्दना की। मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री उस कक्ष में भी पधारे, जहां आचार्य तुलसी ने अपने चतुर्मासकाल का प्रवास किया था। 

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