किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर की निश्रा में चातुर्मास समापन समारोह आयोजित हुआ। इस मौके पर किलपाॅक श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ के अध्यक्ष नरेन्द्र साकरिया के नेतृत्व में ट्रस्ट मंडल के पदाधिकारियों ने आचार्य भगवंत के प्रति भावुकतापूर्ण कृतज्ञता प्रकट की।
साकरिया ने कहा आचार्य भगवंत ने चातुर्मास में शरीर व आत्मा के बारे में जो विश्लेषण कर हमें समझाया वह हम कभी विस्मृत नहीं कर पाएंगे। चातुर्मास में ज्ञान की जो गंगा आचार्य भगवंत ने बहाई वह अद्भुत, अलौकिक व अविस्मरणीय है। आचार्य भगवंत के 70 साधु साध्वी के परिवार में केवल एक आवाज होती है। हर संस्था को इससे सीख लेनी चाहिए। चातुर्मास की उपलब्धियां असीम थी।
उन्होंने चातुर्मास के सहयोगियों का आभार प्रकट किया। मीना साकरिया ने साध्वी मंडल के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। संघ के सह सचिव राकेश जैन, प्रवीण शाह, राजेन्द्र कामदार व शिखर कोचर ने भी अपने भाव प्रकट किए। समारोह में महिलाओं ने कृतज्ञता गीत प्रस्तुत किए।
आचार्यश्री ने कहा चातुर्मास जीवन परिवर्तन का पर्व है। हमें चार महीने का सिंहावलोकन यानी पीछे देखते हुए आगे बढना है। चातुर्मास की तीन चीजों का अवलोकन करना है समय का अर्पण, दोषों का तर्पण और आत्मा को दर्पण। समय का अर्पण यानी प्रवचन श्रवण, आराधना, वैयावच्च, संघ के कार्यों में कितना समय निकाला आदि। पुण्य, पाप, आत्मा के स्वरूप आदि का ज्ञान कितना मिला और जीवन में रहे दोष, कषायों की अल्पता, मन्दता कितनी हुई, इनका आत्मनिरीक्षण करना है।
उन्होंने कहा जिनवाणी, शास्त्र, ग्रंथ एक दर्पण है जो हमें आत्मा के दर्शन कराते हैं। हमें आत्मा के गुण, दोषों का चिंतन करना है। प्रवचन श्रवण यानी सुनना, चिंतन मनन, समझना व साकार करना।
उन्होंने चातुर्मास में हुए अनुष्ठान्नों का जिक्र कर संघ की अनुमोदना की। उन्होंने कहा जिनालय प्रतिष्ठा सम्यक दर्शन की प्राप्ति व स्थिरता का बड़ा आलम्बन है। चातुर्मास में संघ ने वैयावच्च, मुमुक्षुओं की भक्ति, साधर्मिक भक्ति भली भांति की।
इस चातुर्मास के जो बीज पड़े हैं भविष्य में होने वाला वृक्ष नीला छम हो जाए जो पूरे संघ को शीतलता दे। बीज हमने डाल दिया है, आगे जो गुरु भगवंत आएंगे वे उसका सींचन करेंगे। उन्होंने कहा संघ की एकता अखंडित रहे। हमारी ओर से किसी का मन दुखा हो तो हम क्षमा याचना करते हैं।