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आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर का  66वां जन्म दिन मनाया

आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर का  66वां जन्म दिन मनाया

किलपाॅक श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ के तत्वावधान में बुधवार को आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर का  66वां जन्म दिन मनाया। इस अवसर पर किलपाॅक संघ के अध्यक्ष नरेन्द्र साकरिया, सचिव नरेन्द्र श्रीश्रीमाल व अन्य पदाधिकारियों ने आचार्य को शुभकामनाएं दी। इस मौके पर किलपाॅक संस्कार वाटिका के बच्चों ने विभिन्न संदेशों के साथ अपने हाथ से बनाए ग्रीटिंग्स कार्ड भेंट किए।

 

बच्चों ने चारित्र धर्म, सरस्वती, आध्यात्मिक ज्ञान, आकाशीय परी, त्रिशला माता, श्रीपाल महाराजा, पुनिया श्रावक, महासती चंदनबाला, जीवदया प्रतिपालक कुमारपाल, मैनासुन्दरी, सामायिक किट, कपर्दि मंत्री, बुद्धि व विद्वता के परिचायक अभयकुमार, पंच महाव्रतधारी जैन साध्वी, जंक फूड के प्रभाव, कंदमूल के प्रभाव, पानी की बूंद, ज्ञान की रक्षा आदि की फैंसी ड्रेस धारण कर संदेश दिए। इस मौके पर विभिन्न संघों से सैकड़ों श्रद्धालु आचार्य को जन्मदिवस की शुभकामना देने पहुंचे।

इस मौके पर आचार्य ने कहा आप जन्म दिवस की बधाई देने पधारे हैं। इस मानव जन्म की सार्थकता के लिए जिनधर्म की शरण स्वीकार करो। धर्म नहीं है तो जीवन नहीं है। महापुरुष कहते हैं जिसके जीवन में धर्म नहीं है, वह मृत समान है।
उन्होंने कहा मेरा यही मंगल आशीर्वाद है कि आप व आपका पूरा परिवार धर्ममय बनें। धर्म के प्रति श्रद्धा भाव रखें। जीवन में धर्म का स्थान सबसे आगे हो। ऐसा नहीं हो कि फुर्सत मिल जाए तो धर्म करेंगे। नित्य क्रम की आराधना के बाद अपनी चर्या शुरू करें। धर्म को बनाने वाले अरिहन्त परमात्मा आपके हृदय में बसे रहे। प्रभु की कृपा प्राप्त करने के लिए उनसे मांगो कि उनकी कृपा हमेशा बनी रहे।
उन्होंने अपने माता पिता को याद किया और कहा कि उनके उपकार को हम कभी भूल नहीं सकते। वे हमें बुराइयों से बचाने का कार्य करते हैं तब  ही उत्तम जीवन तक पहुंच पाए। संस्कारों का रोपण करने वाले गुरु ने जीवन का उद्धार किया, मैं उनसे आशीर्वाद मांगता हूं। मुझे चारित्र जीवन की प्रेरणा देने वाले दोनों बेन महाराज व सबका उपकार याद करता हूं।
उन्होंने कहा मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के लिए महापुरुषों ने अनेक प्रकार के योग बताए हैं। इसमें एक भक्ति योग है। भक्ति नौ प्रकार की होती है श्रवण भक्ति, कीर्तन भक्ति, स्मरण भक्ति, वन्दन, पूजन, अर्चन, दास्य, सख्य भक्ति व आत्मनिवेदन। इनमें आत्मनिवेदन भक्ति की पराकाष्ठा है।
प्रभु के वचनों का श्रवण करके हृदय पुलकित हो जाए, अपूर्व आनंद का अहसास हो जाए वह वास्तविक भक्ति है। श्रेणिक महाराजा की भक्ति इसका अनुपम उदाहरण है। उसके बल पर वे भगवान महावीर के परम श्रावक बने। किलपाॅक में आगामी दीक्षा एवं जिन मंदिर की प्रतिष्ठा के लिए जाजम बिछाने का कार्यक्रम 13 अक्तूबर को होगा।
किलपाॅक श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ के तत्वावधान में बुधवार को आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर का  66वां जन्म दिन मनाया। इस अवसर पर किलपाॅक संघ के अध्यक्ष नरेन्द्र साकरिया, सचिव नरेन्द्र श्रीश्रीमाल व अन्य पदाधिकारियों ने आचार्य को शुभकामनाएं दी। इस मौके पर किलपाॅक संस्कार वाटिका के बच्चों ने विभिन्न संदेशों के साथ अपने हाथ से बनाए ग्रीटिंग्स कार्ड भेंट किए।
बच्चों ने चारित्र धर्म, सरस्वती, आध्यात्मिक ज्ञान, आकाशीय परी, त्रिशला माता, श्रीपाल महाराजा, पुनिया श्रावक, महासती चंदनबाला, जीवदया प्रतिपालक कुमारपाल, मैनासुन्दरी, सामायिक किट, कपर्दि मंत्री, बुद्धि व विद्वता के परिचायक अभयकुमार, पंच महाव्रतधारी जैन साध्वी, जंक फूड के प्रभाव, कंदमूल के प्रभाव, पानी की बूंद, ज्ञान की रक्षा आदि की फैंसी ड्रेस धारण कर संदेश दिए। इस मौके पर विभिन्न संघों से सैकड़ों श्रद्धालु आचार्य को जन्मदिवस की शुभकामना देने पहुंचे।
इस मौके पर आचार्य ने कहा आप जन्म दिवस की बधाई देने पधारे हैं। इस मानव जन्म की सार्थकता के लिए जिनधर्म की शरण स्वीकार करो। धर्म नहीं है तो जीवन नहीं है। महापुरुष कहते हैं जिसके जीवन में धर्म नहीं है, वह मृत समान है। उन्होंने कहा मेरा यही मंगल आशीर्वाद है कि आप व आपका पूरा परिवार धर्ममय बनें। धर्म के प्रति श्रद्धा भाव रखें।
जीवन में धर्म का स्थान सबसे आगे हो। ऐसा नहीं हो कि फुर्सत मिल जाए तो धर्म करेंगे। नित्य क्रम की आराधना के बाद अपनी चर्या शुरू करें। धर्म को बनाने वाले अरिहन्त परमात्मा आपके हृदय में बसे रहे। प्रभु की कृपा प्राप्त करने के लिए उनसे मांगो कि उनकी कृपा हमेशा बनी रहे। उन्होंने अपने माता पिता को याद किया और कहा कि उनके उपकार को हम कभी भूल नहीं सकते।
वे हमें बुराइयों से बचाने का कार्य करते हैं तब  ही उत्तम जीवन तक पहुंच पाए। संस्कारों का रोपण करने वाले गुरु ने जीवन का उद्धार किया, मैं उनसे आशीर्वाद मांगता हूं। मुझे चारित्र जीवन की प्रेरणा देने वाले दोनों बेन महाराज व सबका उपकार याद करता हूं।
उन्होंने कहा मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के लिए महापुरुषों ने अनेक प्रकार के योग बताए हैं। इसमें एक भक्ति योग है। भक्ति नौ प्रकार की होती है श्रवण भक्ति, कीर्तन भक्ति, स्मरण भक्ति, वन्दन, पूजन, अर्चन, दास्य, सख्य भक्ति व आत्मनिवेदन। इनमें आत्मनिवेदन भक्ति की पराकाष्ठा है।
प्रभु के वचनों का श्रवण करके हृदय पुलकित हो जाए, अपूर्व आनंद का अहसास हो जाए वह वास्तविक भक्ति है। श्रेणिक महाराजा की भक्ति इसका अनुपम उदाहरण है। उसके बल पर वे भगवान महावीर के परम श्रावक बने। किलपाॅक में आगामी दीक्षा एवं जिन मंदिर की प्रतिष्ठा के लिए जाजम बिछाने का कार्यक्रम 13 अक्तूबर को होगा।

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