नार्थ टाउन में ए यम के यम स्थानक में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि कहते है कि जैन धर्म मर्यादा का धर्म है। आगम कारों ने संयम बताया है इसलिए जैन धर्म को तिणाणं तारयाणं कहते है । पहले नम्बर में जैन धर्म संसार में बाकी सब धर्म बाद में आते है। जैन धर्म भय से मुक्ति दिलाता है जो संसार में रहता है निर्भयता से रहता है।
जैन धर्म ऐसा धर्म है जो कर्मों को वश में करता है कर्मों को वश कर जैन धर्म कर्म पर विजय प्राप्त कर लेता है। इसका पालक अष्ट कर्मों पर विजय प्राप्त लेता है उसको पता चल जाता है इस धर्म को आसानी से ग्रहण कर सकते है इस धर्म को पालन करने से मुक्ति का मार्ग सहज ही मिल जाता है दूसरे धर्म संसार में भटकाता है जिनेश्वर ने दो प्रकार के धर्म बताये है आगार धर्म और अणगार धर्म ।
जो निरन्तर संसार में रहना वाला है सम्पूर्ण इन्दिय, कषाय को वश मे नहीं कर सकता उसके लिए आगार धर्म बताये है संसार में रहते हुए जितनी जरूरत हो इस धर्म का पालन कर लो। अणुव्रतों को धारण करले छूट देखकर के जितना जरूरत हो रख लो बाकी सब का प्याग कर लो जिस दिन जीव का ज्ञान हो जायेगा वो वह जरूर मोक्ष जा सकेगा। जिस दिन इच्छाओं का कम कर देगा तो संसार सीमित हो जायेगा। पहले व्रत के पाँच अतिचार है। इन अतिचार का पालन करने से व्रत खंडित हो जाता है व्रत खंडित हो जाता है तो पुण्य क्षीण हो जाता है संसार परिभ्रमण बढ़ जाता है अनजान मे व्रत खंडित होने पर प्रतिक्रमण प्रायश्चित कर सकते हैं शुद्धि करण कर सकते है
आचार्य जयमल जी के बारे में संगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। स्तवन प्रतियोगिता में
प्रथम – भीमराज डूंगरवाल
दूसरा- निकिता चोरडिया
तीसरा- विकासजी बैद रहें। उनको संघ की और से ईनाम दिया गया।