राजाजीनगर, बेंगलुरु (कर्नाटक): बेंगलुरु महानगर में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की ज्योति जला रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ शुक्रवार को राजाजीनगर में पधारे।
अपने आराध्य को अपने नगर में पाकर श्रद्धालुओं के आस्था ज्वार मानों हिलोरें लेने लगा। भव्य जुलूस के साथ अपने आराध्य के अभिनन्दन में जुटे श्रद्धालुओं के मुख से मुखरित होते जयघोष उनके आंतरिक उल्लास को उजागर कर रहे थे। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री महाश्रमणजी राजाजीनगर में स्थित बसवेश्वरा एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स के अंतर्गत बने बसवेश्वरा पीयू काॅलेज परिसर में पधारे।
इसके पूर्व आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को प्रातः टी-दासरहल्ली से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री के विहार मार्ग के ऊपर से रिंग रोड गुजर रहा था तो दूसरी ओर महानगरों की शान कही जाने वाली मेट्रो मार्ग भी गुजर रहा था।
इतने रोड और इतने संसाधनों के बावजूद विहार मार्ग पर वाहनों के आवागमन की अधिकता महानगर की व्यस्तता भरी भाग-दौड़ वाली जिन्दगी को दर्शा रही थी। ऐसे में एक महामानव मानवता का संदेश लेकर महानगरों के पथ पर गति कर रहे थे। श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाते हुए आचार्यश्री लगभग पन्द्रह किलोमीटर से ज्यादा का विहार कर राजाजीनगर में पधारे।
बसवेश्वरा पीयू काॅलेज परिसर में बना प्रवचन पंडाल श्रद्धालुओं की उपस्थिति के आगे बौना साबित हो गया। भारी संख्या में लोग प्रवचन पंडाल के बाहर भी उपस्थित थे। उपस्थित श्रद्धालुओं को महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने प्रेरणा प्रदान की। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने समुपस्थित जनमेदिनी को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं।
उनमें एक वृत्ति अहंकार की होती है। किसी को अपने कुल का अहंकार, किसी को अपनी जाति का अहंकार, किसी को अपने रूप का अहंकार, किसी को अपने बल अहंकार, किसी को अपनी विद्या का अहंकार तो किसी को अपने धन-सम्पत्ति का अहंकार होता है। किसी साधु आदि को अपनी तपस्या का अहंकार भी हो सकता है। आदमी को यह सोचना चाहिए कि वह अहंकार क्यों करे। जो भी है, वह भला कितने दिन का है। बल है तो शरीर का बल कब तक रहेगा।
किसी के पास धन है तो वह धन कितने दिन उसके पास रहेगा। किसी का रूप भी भला कितने तक रहेगा। आदमी के पास शक्ति है तो उसे शक्ति का उपयोग किसी को कष्ट, पीड़ा पहुंचाने में नहीं, बल्कि किसी को चित्त समाधि प्रदान करने में, किसी का परोपकार करने में, किसी की पवित्र आध्यात्मिक सेवा में लगाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने बल घमंड नहीं, उसका अच्छा उपयोग करना चाहिए। आदमी को रूप का भला क्या घमंड करना, रूप ज्यादा गुणवत्ता का महत्त्व होता है। आदमी के भीतर की गुणवत्ता उसके रूप से कहीं बढ़कर होती है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में गुणों का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने राजाजीनगरवासियों को पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि यहां के लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति चेतना जागृत हो तो जीवन अच्छा हो सकता है। आचार्यश्री ने राजाजीनगरवासियों को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) भी प्रदान की। स्वागत में क्रम में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री उत्तम गन्ना, मंत्री मदनलाला बोराणा, उपाध्यक्ष श्री विमल पितलिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ कन्या मण्डल व तेरापंथ किशोर मंडल ने अपने-अपने गीतों के माध्यम से पूज्यचरणों में अपनी भावांजलि अर्पित की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी तो ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने भी गीत के माध्यम से पूज्यचरणों की अभिवन्दना की।
आचार्यश्री के साथ विहार में भी साथ चलने वाले राजाजीनगर के विधायक श्री सुरेशकुमार ने कन्नड़ भाषा में अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए स्थानीय तेरापंथ भवन जाने वाले मार्ग को आचार्यश्री महाश्रमणजी मार्ग नाम देने की घोषणा की।
इसके साथ पूर्व महापौर श्रीमती पद्मावती, पार्षद श्रीमती दीपा नागेश व बसवेश्वरा एजुकेशन के अध्यक्ष श्री एस.एस डोड्डान्नवार ने भी अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। नागोड़ा मंडल की सदस्याओं ने गीत का संगान किया। श्री अरविन्द कोठारी व उनकी पत्नी श्रीमती रेनू कोठारी ने सजोड़े आचार्यश्री ने नौ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।