*पूज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी* महारासा तिर्थकर भगवान की पहली वाणी *आचारांग सूत्र* के रूप में हुई, इस में सबसे पहले जीव की चर्चा की गई। आत्मा हे वह माने वह धर्म में आगे बढ़ता है। जीव है तो, संसार है – जीव तत्व है ” 6, *पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय , वनस्पति काय, त्रस काय , यह *धर्म का मूल तत्व है।* हम सब जीव है जीवत्व पर श्रद्धा, समझा, आस्था है वह जीव धर्म करने में समर्थ होता है। *धर्म अपने लिये करता है।* धर्म भेद को समझाया जा सकता है।
*अणगार धर्म*- जो किसी का मालिक नहीं –
लड़ते काय के लिये 3 चीज के लिये *जर जोरु -जमीन* के लिये । धरती अखण्ड कुवारी , वो हसति है कि असंख्य मनुष्य पैदा हुए मैं आज तक कुंवारी हुँ । चक्रवर्ती चले गये , संसार जब आँख खुली तब तक ।
🔰आपका चिंतन घर बनाने में *पूज्य वीर रत्न विजय जी महारासा* का चिंतन मंदिर स्थान बनाये, वचन पुण्याई का उपयोग समाज के लिये किया। मनुष्य सारी जिंदगी धन इक्ट्ठा करने में लगा है। साथ में क्या ले जाता है! खाता क्या है? दो रोटी!
आजकल 90% ध्यान मोबाईल में 10 % ध्यान खाने में। रस ले सकते हो ?वे लोग जो मजदुरी करते हैं गांव के पास रहते है। शांति से रस लेकर आराम से खाते है
आप किसके आधार पर जी रहे हो? *नौकर* के आधार पर ! तुम्हारा सारा जीवन *पराधीन* हो गया। मेरी माँ कहती सब काम सिख, बर्तन मांजना, घट्टी पीसना, कपड़े धोने भी सिखाया, पापड़ कुटते थे। पुरी सिलाई सीखी 12- वर्ष की उम्र में। *स्वाधीन जीवन* हो गया। ज्यो ज्यो पैसा बढ़ता है *जीवन पराधीन* होता जाता है। जो धन बड़ा पराधीन हुआ, सब यही रहने वाला है। जो नहीं था उसके लिये लड़ते रहे जिंदगी पूरी हो गई , जमीन धन किसके लिये चाहिए? इंसान *मिले हुए* का उपयोग नहीं करता दुसरे के लिये इकट्ठा करता है। में किसके लिये कर रहा हूँ! वह समय वापस आने वाला नहीं।
✳️ *द्रष्टान्त*- राजा कोनिक राजा श्रेणिक, पिता पुत्र… सबसे बड़ा पुत्र अभय कुमार – कोनीक छोटा था, योग्य हुआ, लालसा बडी राज्य की ! सेकड़ो भाई पिता राज्य किस को दे देंगे! चिंतन चला और पहुँचा की ..राज्य ले लेना। यह हाल आज भी है बाप से बेटा ले लेता है बेटा मामा बाप के धन पर मजा लेता है,कर्म तुम बांध रहे हो बेटा मजा ले रहा है कितने कर्म बांधते चले जा रहे हो? इतने कर्म इकट्ठे कर रहे हो किसके लिये? कोणीक ने *सेनापति, कोषाध्यक्ष दीवान* तीन व्यक्ति को अपनी तरफ मिलाया । पिता राजा श्रेणिक को *धन, संपत्ति, सत्ता* के लिये जेल में डाल दिया।
आदमी *पद पैसा, प्रतिष्ठा, पुत्र* के लिए लड़ता है, उससे होता क्या है?
इसी चक्कर में पड़ रहे हो। *पद* के ओर *अहं* का झगड़ा ! साधु का कुछ नहीं दो के लिये हम लड़ रहे है और परमात्मा को भुल गये। सारा चिंतन उसी में चल रहा है। *हमें धर्म करना है कि धर्म में जीना है।* तुम जहाँ हो वहाँ धर्म मय जीवन जी सकते हो , आप भी सम्मानीय हो । *नीशित सूत्र -* में नियम है दंड विधान है।
साधु अगर किसी श्रावक या साधु को फरूस (कठोर शब्द) बोले तो उसको प्रायश्चित दिया है। पद्धत्ति विधान है अर्थात *किसी का अपमान, अवहेलना न करे जो करता है उसके लिये प्रायश्चित है।* भेदभाव नहीं करना। *मोह* हे मतलब भेदभाव है।
मनमुटाव कि बजाय प्रेम से अलग हो। कभी भी होना तो है।
*संबंध जरूरी की धन ?* संबंध जरूरी है *भेद बुद्धि* विवाद की जड़ है। संसार में भेद बुद्धि विनाश ओर *अध्यात्म* में विकास की जड़ है। आध्यात्म में भेद बुद्धि विकास करती है। देह आत्म बुद्धि – भेदज्ञान, *शरीर अलग है आत्मा अलग है* जिसने समझ लिया है वह विकास कर सकता है। संसार में भेद बुद्धि मतलब विनाश की ओर ले जाती है। *परिग्रह साप है।* *आसीविष* (तत्काल असर करता है), वाला है।
धन आसीविष, यह बुद्धि को विकृत करता है। कितना भी इक्कट्ठा कर लो ! कितने को याद करते है?पहले 4कमरे में 10 लोग रहते थे अब 10 कमरों में 4 रहते है। *परिग्रह बढ़ गया परिवार घट गया।*
*श्रावक को कैसे जीना?*
इसको सीखना, जिनशाशन हमे जीना, मरना सिखाता है, *आध्यत्म* तब फलता है जब जीवन मे आता है,जिसमे नैतिकता नही , उसके जीवन मे धर्म नही, नीति नियम हो तो अध्यात्म चलता है।
जागो किसके लिये कर रहे हो?
सारा प्रपंच कर रहे हो?
सारा काम किसके लिए कर रहे हो ? *उसको भोगेगा कोंन?* हम किसके लिए जी रहे है ?सारा चिंतन धन , परिवार के लिये।##
तुम्हारे व्यवहार से पता चलता है के तुम जेन हो कि नही!
क्रिया में धर्म नही, धर्म मे क्रिया है, जो धर्म जियेगा वह वैसी क्रिया करेगा , जीना अलग -क्रिया अलग
**श्री सौभग्य-सुगुरू-अष्टक* डॉ ललित प्रभा जी महारासा……..
*आराध्य देव! सुगुणं तव चिन्तयामि ।* *पादौ त्वदीय मम चित्त समर्पयामि ।* *अध्यात्मवृत्ति सहितं ललितं प्रधानम् ।* *सौभाग्य सद्गुरुवरं शिवदं स्मरामि ॥७॥*
गुरुदेव का ऐसा जीवन था, वे मेरे आराध्य है, *सुगुण* का चिंतन करता हु क्योकि मुझे अपना जीवन गुणों से भरना है,आराध्य के समान पूजनीय है,जहां *समर्पण* है वो मेरे देव है।
🙏मनोहर लाल भटेवरा ,अध्यक्ष