कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ जैन भवन के पाणन प्रांगण में साध्वी सुधाकंवर के सानिध्य में साध्वी मृदुभाषी साधना ने उत्तराध्ययन सूत्र फरमाया!
साध्वी सुयशाश्री ने कहा कि भगवान महावीर अपनी साधना में लीन थे तभी एक ग्वाला अपनी गाय के साथ उधर आता है और परमात्मा को गाय की निगरानी के निर्देश देकर चला जाता है! वापसी में जब गाय नही मिलती और रात भर सर्दी मे ढूंढ़ते ढूंढ़ते थक जाने से ग्वाला आगबबूला हो जाता है और मान लेता है कि यह तो साधु के वेश में चोर है! उधर परमात्मा के वियोग से दुखी परिवार उस रात सो न सके और नन्दीवर्धन प्रातः शीघ्र घोड़े पर बैठकर परमात्मा को खोजने निकलते हैं। आगबबूले ग्वाले का परमात्मा पर हाथ उठाना और नन्दीवर्धन का वहां पहुंचना एक संयोग था! सच का पता चलते ही लज्जित ग्वाला उधर से चला जाता है! परमात्मा वहां से विहार कर देते हैं और और अगले गांव में, जिसमें एक ब्राह्मण को परमात्मा का सपना आता है, उसी गांव में पहुंच जाते हैं और वहां पर उनका पहला पारणा खीर से होता है, “अहोदानम अहोदानम” की उद्घोषणा आकाश से होती है!
नियम:-अप्रीति के यहां दाना पानी नहीं, ज्यादा से ज्यादा ध्यान और मौन मे लीन, पारणा सिर्फ हाथों में ही करना (बर्तन में नही), और जिसके नियम नहीं वहां पारणा नहीं करना!विहार करके उस गांव में पहुंच जाते हैं जहां के मंदिर में शूल पानी यक्ष का आधिपत्य एवं ताण्डव रहता है! लोगों के और पुजारी के समझाने के बावजूद भगवान महावीर उस मंदिर में प्रवेश करते हैं! यक्ष के अटहास, विशालकाय हाथी के रुप में सूंड से लपेट कर फेंकने के बाद भी परमात्मा विचलित नहीं होते, तब हताश और परेशान यक्ष उनके चरणों में नतमस्तक होकर उस गांव को छोड़कर चले जाता है और उस गांव का नाम फिर से वर्धमान रख दिया जाता है!
पराक्रम से किसी भी दुर्जन को जीता जा सकता है लेकिन दुर्जन को सज्जन बनाना सिर्फ तीर्थंकर ही कर सकते हैं! अब परमात्मा की आखिरी नींद में 10 स्वप्न आते हैं, जिसमें अनादि काल से आ रहे मोहनीय कर्म, अनेकांतवाद, दो प्रकार आगार एवं अणगार धर्म, साधु साध्वी श्रावक श्राविका, अपनी भुजाओं से महासागर को पार करना, सूर्य के समान समस्त उजाला और अंत में सुमेरु पर्वत पर विराजमान! अगले गांव में भगवान का प्रवेश को, वहां की प्रजा बहुत सुखदाई महसूस करती है!
लेकिन वहां के ज्योतिषियों को और उल्टी-सीधी माया बता कर अपनी जीविका चलाने वाले लोगों को अच्छा नहीं लगता! लोगों के लाख समझाने के बाद भी परमात्मा उस जंगल की तरफ प्रवेश कर देते हैं जहां अत्यधिक विषैला चंड कौशिक सर्प विध्यमान रहता है! जो कभी सुगंधित और हरियाली से भरा उपवन था अब मात्र एक जरजराया हुआ जंगल था! मनुष्य की गंध आते हैं चण्ड कौशिक सर्प, जिसके आंखों से देखने मात्र से किसी की भी मौत हो सकती है, बाहर आता है और परमात्मा के सानिध्य से जाति स्मरण ज्ञान हो जाता है! चण्ड कौशिक प्रायश्चित करता है और मृत्यु के पश्चात देवलोक पहुंच जाता है!
जैन धर्म में इतनी उत्तम व्यवस्था है कि, अपने अंतिम समय में भी अपनी आलोचना करके विराधक भी आराधक बन सकता है, परमात्मा को अपने जीवन यात्रा के उतार-चढ़ाव निंदा चुगली झूठ बुराई से कुछ फरक नहीं पड़ता! वे तो अपने भीतर करुणा, ममता, अनुकंपा, शीतलता को अपनाकर अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर हो जाते हैं! आज धर्म सभा में सिरकली संघ के पदाधिकारीगण साध्वी मंडल के अगला (आगामी) चातुर्मास 2023 के लिए विनंती रखी और साध्वी मंडल ने फरमाया की आगे समय आने पर सही जवाब देने का आश्वासन दिया! धर्म सभा का संचालन संघ के मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया!