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अहिंसा तो हमारे जीवन में होनी ही चाहिए: साध्वी आनन्द प्रभा

अहिंसा तो हमारे जीवन में होनी ही चाहिए: साध्वी आनन्द प्रभा

आमेट के महावीर भवन मे वीरपत्ता की पावन भूमि पर चातुर्मास हेतु विराजित साध्वी तपाचार्य जयमाला मा. सा. आदि ठाणा-6 के सानिध्य मे साध्वी आनन्द प्रभा ने कहा जैन दर्शन में अहिंसा का सर्वोत्तम स्थान है। प्रकृति में सब जीवों का विशेष महत्व है। जैन दर्शन सब जीवों की रक्षा करने व हिंसा को त्याग करने का उपदेश देता है। अहिंसा का व्यापक अर्थ है: किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई हानि न पहुंचाना।अहिंसा हमारे व्रतों में मूल है और हमारे आचरण का प्राण तत्त्व है, अहिंसा तो हमारे जीवन में होनी ही चाहिए। यथार्थ में, सत्य आदि जितने व्रत हैं, वे सब अहिंसा की रक्षा के लिए ही हैं। अहिंसा को पूरी तरह आत्मसात करके चलना चाहिए और अहिंसा को आत्मसात करने के लिए हमें अहिंसा के स्वरूप को ठीक तरीके से समझना चाहिए।

साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा

धम्मो मंगलमुद्दिट्ठं अहिंसा संजमो तवो।

देवा वि तस्स पणमंति जस्स धम्मे सया मणो।।

संसार में समस्त प्राणियों के लिए धर्म मंगल स्वरूप है ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है। वह धर्म अहिंसा, संयम और तपरूप भी है, जो व्यक्ति अपने मन में उस धर्म को धारण करते हैं उसे देवता भी प्रणाम करते हैं। मंगल शब्द की व्याख्या करते हुए आचार्यों ने कहा है- मं-मलम् गालयति इति मंगलम् अर्थात् मल-पापों का जो नाश करे वह मंगल है और दूसरी प्रकार से मंगं-सुखं लाति इति मंगलम् अर्थात् जो सुख की प्राप्ति करावे उसे मंगल कहते हैं।

सभी कार्यों के प्रारंभ में मंगलाचरण इसी उद्देश्य से किया जाता है ताकि बिना किसी विघ्न बाधा के उसे निर्विघ्न सम्पन्न किया जा सके एवं यह हेतु भी होता है कि मेरा शुभ कार्य मेरे और समस्त प्राणियों के लिए सुखकारी होवे। प्रत्येक पूजा-पाठ के प्रारंभ में भी आप मंगलाष्टक में ‘‘कुर्वन्तु मे मंगलम्’’ इत्यादि मंगलपाठ पढ़कर अपने और दूसरों के मंगल की कामना करते हैं। इसी प्रकार का मंगल धर्म में निहित होता है। भव्यात्माओं! धर्म एक मिश्री के टुकड़े की भाँति है। जैसे मिश्री को आप चाहे स्वरूचि से खाएँ अथवा कोई जबरदस्ती खिला देवे किन्तु मुँह में जाने के बाद वह मीठी ही लगती है कभी कडुवी नहीं लगती उसी प्रकार से धर्म को चाहे स्वरुचि से पालें अथवा गुरु प्रेरणा से, वह तो सदैव अचिन्त्य फल को प्राप्त कराता है। वास्तव में तो धर्म आत्मा का स्वभाव ही है।

मिडिया प्रभारी प्रकाश चंद्र बड़ोला एवं मुकेश सिरोया ने बताया कि जयमाला चातुर्मास समिति के कोषाध्यक्ष पवन मेहता की धर्मपत्नी मिना मेहता ने गुरु माता जयमाला मा. सा. से 9 के उपवास के प्रत्याख़्यान लिए उनका स्वागत 5 के उपवास लेकर ममता संचेती ने किया एवं महिला मंडल द्वारा भी स्वागत अभिनंदन और श्री संघ द्वारा भी स्वागत अभिनंदन किया गया ।

इस अवसर पर पवन मेहता, हर्षित मेहता, दिलीप सिरोया, महावीर कोठारी, पारस बाबेल, दिनेश सरणोत, सुरेश दक, राहुल दक, राजेन्द्र डाँगी, सुरेश डाँगी, मनोहरलाल शर्मा, कन्हैयालाल जैन, ललित शर्मा, प्रकाश हिरण, कैलाश हिरण, चंदन सिंह राठौड़, नरेश संचेती, मदनलाल सैन, उदयसिंह पंवार, अनिल मुणोत, प्रकाश सरणोत, चंदनमल बापना, सुआलाल कोठारी आदि श्रावक उपस्थित थे । इस धर्म सभा का संचालन ललित डाँगी ने किया ।

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