जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में श्रावक के 12 वर्तों का शिविर गतिमान है। इस अवसर पर मुनि ने कहा अहिंसा कायरता नहीं वीरता है। जहां अहिंसा है , वही धर्म है । हर धर्म की आधारशिला अहिंसा पर ही टिकी हुई है ।
अहिंसा को परम धर्म कहा गया है । अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए प्रयत्नशील इंसान यदि दूसरों के प्राण छीनने से बड़ा अधर्म कोई और नहीं हो सकता।
अहिंसा ही वह अमोघ शस्त्र है जिससे सामने वाले को आसानी से जीता जा सकता है । अहिंसा में वह शक्ति है जो आतंकवाद की जड़ को समूल उखाड़ सकती है। कायर व्यक्ति कभी अहिंसा का पालन नहीं कर सकता है। अहिंसा के सिद्धांत को जन-जन तक पहुंचाना वर्तमान युग की नितांत आवश्यकता है।
श्रावक के पहले व्रत का वर्णन करते हुए मुनि ने कहा किसी भी निरपराधी प्राणी को जानबूझकर योजना बनाकर क्रूरतापूर्वक नहीं मारना चाहिए। केवल कायिक हिंसा ही नहीं अपितु मानसिक एवं वाचिक हिंसा से भी बचना चाहिए। जिस तरह मनुष्य को प्राण प्रिय होते हैं उसी प्रकार सभी जीवो को अपने प्राण प्रिय होते हैं ।
आजीविका के लिए, भोजन, व्यापार आदि में कर्तव्य रूप में एक श्रावक जो भी कार्य करता है , उसमें विवेक रखता है और भावों में पश्चाताप होने के कारण वह हल्के कर्म का बंध करता है ।
आज के युग में चारों ओर हिंसा का जो तांडव मचा हुआ है उसका एकमात्र समाधान प्रथम व्रत है । श्रावक के रग-रग में अनुकंपा , दयालुता, करुणा होती है इसलिए वह कभी भी संकल्प पूर्वक योजना बनाकर हिंसा नहीं करता है और ना ही करवाता है ।
पहले व्रत में स्वयं के शरीर की , सगे संबंधी की, देश की रक्षा एवं धर्म की रक्षा के वीरता से प्रत्युत्तर देने का आगार रखते हुए किसी भी जीव की संकल्प पूर्वक हिंसा का त्याग करवाया जाता है। धर्म सभा में उपस्थित लगभग 200 श्रद्धालुओं ने श्रावक के पहले व्रत के प्रत्याख्यान अंगीकार किए। शकुंतला मेहता के मासखमण की तपस्या के अनुमोदनार्थ संघ द्वारा उनका सम्मान किया गया।