चेन्नई. जो दुर्गति में गिरती हुई आत्मा को बचाए वही धर्म है। जो अहिंसा, करुणा, दया से युक्त है वही धर्म है। आज के युग में हर व्यक्ति सफल और लोकप्रिय होना चाहता है। लोकप्रियता दो प्रकार से होती है कुख्यात और विख्यात। प्रसिद्धि भी दो प्रकार की होती है स्थायी और दीर्घकालीन। स्थायी प्रसिद्धि के लिए स्वभाव उदार होना चाहिए एवं मुख पर प्रसन्नता व मुस्कान होनी चाहिए।
ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा संसार में प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों के अनुसार ही सुख और दुख भोगता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सुकाल में भी दुष्काल का दुख भोगते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो अकाल में भी सभी तरह से संपन्न होते हैं। दुष्काल के दुख के ताप का अनुभव नहीं हो पाता है।
उन्होंने कहा यह शरीर धर्म साधना के लिए प्राप्त हुआ है। पानी जिस प्रकार मछली के लिए प्राण है, वैसे ही धर्म मनुष्य का प्राण है। समय, शक्ति और समझ ये तीनों प्राण धर्माराधना के लिए जरूरी है। यह धर्म शाश्वत है।
साध्वी सुप्रतिभा ने कहा सामायिक समभाव की साधना है। भगवान महावीर ने भी समत्व साधना, आरधना पर बल दिया है। साधु-संतों का आजीवन सामायिक का संकल्प होता है। श्रावकों को भी प्रतिदिन एक सामायिक का नियम होना जरूरी है।