चेन्नई (तमिलनाडु): पर्यावरण प्रदूषित न हो, ऐसा आदमी को अपनी ओर से प्रयास करना चाहिए। आदमी अपनी ओर से प्रयास करे कि मेरे द्वारा पर्यावरण के प्रदूषण अथवा उसके संतुलन में कोई बाधा न बने। इसके लिए आदमी को अपने भीतर अहिंसा और संयम की चेतना को जागृत करने का प्रयास करने से संभव हो सकता है। जब आदमी के भीतर अहिंसा और संयम की चेतना का जागरण हो जाएगा तो आदमी पर्यावरण को अपनी ओर से प्रदूषित होने से बचा सकता है। पानी, बिजली के प्रयोग में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी प्राकृतिक वस्तुओं का अनावश्यक दोहन करने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
हरे-भरे वृक्षों को काटने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जितना संयमी बन सकेगा, अहिंसक बन सकेगा पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में आगे बढ़ सकता है। उक्त पावन प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत पर्यावरण दिवस पर शनिवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की।
इसके पूर्व आचार्यश्री ने आगमाधारित अपने पावन प्रवचन में मानव जीवन को सापेक्ष बताते हुए कहा आदमी के जीवन में परस्पर सहयोग की अपेक्षा होती है। जीवन सापेक्ष होता है। उसमें किसी न किसी का सहयोग लेना होता है। बिना सहयोग के जीवन मुश्किल हो सकता है, किन्तु आदमी को यह सोचना चाहिए कि हम अपनी ओर किसी को कितना सहयोग करें और हमें दूसरों के सहयोग की कम अपेक्षा हो। तत्त्वार्थ सूत्र में जैन दर्शन की अच्छी व्याख्या प्राप्त हो सकती है।

पारिवारिक जीवन में तुच्छ स्वार्थ हावी नहीं होना चाहिए। व्यक्तिगत स्वार्थ के परिवार के हितों का त्याग नहीं होना चाहिए, बल्कि पारिवारिक हित के निजी स्वार्थों का त्याग करने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में व्यक्तिगत स्वार्थ प्रबल होते हैं तो पारिवारिक कलह बढ़ सकता है। इसलिए परिवार को अथवा को संस्था व संगठन अथवा कोई समाज या कोई राष्ट्र हो, कहीं भी व्यक्तिगत स्वार्थ अच्छा नहीं होता है।
परिवार के लिए आदमी को व्यक्तिगत हित को गौण कर देना चाहिएं गांव के हित के लिए परिवार के हितों का त्याग कर देने का प्रयास करना चाहिए। राज्य के हित के लिए गांव का हित और राष्ट्रहित के राज्यहित का परित्याग कर देने का प्रयास करना चाहिए अर्थात् अर्थात् अधिक की सुरक्षा के लिए कम के स्वार्थ का परित्याग कर देने का प्रयास हो तो जीवन शांतिमय हो सकता है।
प्रमुखता संस्था/संगठन की होनी चाहिए। व्यक्तिगत हित हावी होने से संस्था का कुछ समय बाद अवसान भी हो सकता है। पद लोलुपता नहीं, कार्यकर्ता बनकर, स्वयं के हितों का त्याग कर संगठन/संस्था के हितों का प्रयास करना चाहिए। कोई व्यक्ति बड़ा नहीं संथा, संगठन अथवा राष्ट्र बड़ा होता है। तेरापंथ समाज में अनेक संस्थाएं हैं। उनमें एक मुख्य केंद्रीय संस्था है अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद। इसके साथ युवा और किशोर जुड़े हुए हैं।

युवावस्था में आदमी उत्पथ में भी जा सकता है। इस संगठन के माध्यम से युवा मानों सत्पथगामी हो सकते हैं। यहां तो आज के युवा भी सामायिक, बारह व्रत आदि अनेक आध्यात्मिक कार्यों में गति-प्रगति कर रहे हैं। युवाओं में धार्मिक, आध्यात्मिक उत्साह अच्छा है। व्यसनों से दूर रहते हुए, अनपेक्षित दिखावे से दूर रहकर युवा अपने, विचार और आचरण को अच्छा बनाने का प्रयास हो युवक परिषद में अच्छी स्फुरणा दिखाई दे रही है।
आचार्यश्री ने अमृवाणी संस्था को भी पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि अमृतवाणी भी परम पूज्य आचार्य तुलसी के समय से गुरुओं की वाणी को टेलीविजन के माध्यम से कितने-कितने लोगों तक पहुंचाने का कार्य करती है। लोग घर बैठे भी साक्षात् देखते हैं और भी कितने-कितने कार्यों से जुड़ा हुआ है। इसके लोग भी अच्छा विकास करें और जिन्हें भी दायित्व मिले अच्छा कार्य करने का प्रयास करें।
आचार्यश्री की मंगलवाणी के पश्चात् मुख्यमुनिश्री ने युवाओं को देश का भविष्य बताते हुए कहा कि तेरापंथ युवक परिषद एक संगठनात्मक शक्ति है। युवाओं की इस संगठनात्मक शक्ति का सदुपयोग हो तो अच्छा विकास हो सकता है। युवाओं को प्रयत्नपूर्वक अपने चारित्र की रक्षा का प्रयास करना चाहिए। मुख्यमुनिश्री ने ‘अब जागो अरे वीरों…’ का संगान भी किया।
इसके उपरान्त अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री विमल कटारिया, महामंत्री श्री संदीप कोठारी, अमृतवाणी के अध्यक्ष श्री सुखराज सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। अभातेयुप प्रबन्ध मंडल और तेरापंथ युवक परिषद-चेन्नई के सदस्यों ने गीत के माध्यम से श्रीचरणों में अपनी प्रणति अर्पित की। वहीं आचार्यश्री की मंगल प्रेरणा के पश्चात् सैंकड़ों-सैंकड़ों युवाओं ने एक साथ सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) स्वीकार कर कल्याण की दिशा में आगे कदम बढ़ाए। इस दौरान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज भी एक मासखमण और दो अठाई की तपस्याओं का भी प्रत्याख्यान हुआ और तपस्वियों को आचार्यश्री द्वारा पावन आशीष भी प्राप्त हुआ।