माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में फ्यूरेख और आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित *“विश्व शांति प्रार्थना“* समारोह में विभिन्न धर्मों से आये हुए धर्म गुरूओं, अनुयायीयों को संबोधित करते हुए विश्व शांति के पुरोधा पुरुष आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि आज के इस समारोह में विभिन्न धर्मों के, विभिन्न व्यक्तित्व पहुंचे हैं| भारत एक ऐसा देश हैं, जहां कितने-कितने धर्म, सम्प्रदाय हैं, कितने संत या धर्मों से जुड़े हुए लोग हैं| *भारत के पास धर्मगुरु संपदा भी है और भारत के पास धर्म ग्रन्थ संपदा भी हैं|*
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि धर्मगुरु अपने अपने अनुयायीयों को अहिंसा का संस्कार बताते रहे, ईमानदारी की बात बताते रहे| नशा मुक्ति शराब, सिगरेट, बीड़ी, गुटका, खैनी आदि नशीले पदार्थों से लोग बचे रहे|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि हम लोग जैन धर्म भगवान महावीर की परम्परा में हैं, आचार्य भिक्षु के सम्प्रदाय में है, गुरूदेव तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञजी हमारे गुरूदेव थे, हम उनके शिष्य रहे हैं| गुरूदेव तुलसी ने अणुव्रत की बात कही थी और वे समय आज से पच्चास वर्ष पूर्व इसी चेन्नई में चातुर्मास किया था|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि *अणुव्रत की भी एक आत्मा हैं, अहिंसा|* आचार्य महाप्रज्ञजी ने अहिंसा यात्रा के माध्यम से *अहिंसा, नैतिकता के मूल्यों की, अहिंसक चेतना के जागरण की बात बताई थी|* हम लोग भी अभी अहिंसा यात्रा के नाम से यात्रा कर रहे हैं| हम इसमें तीन बातों का प्रचार कर रहे हैं – सदभावना यानि *घर्म, सम्प्रदाय, जाति, भाषा आदि को लेकर दंगा, फसाद, मार काट हिंसा नहीं, सबमें सदभावना रहे|* दूसरी है नैतिकता, *आदमी जो भी काम करे, उसमें ईमानदारी रखने का प्रयत्न रखे, अपने कार्य में बेईमानी न करे, प्रामाणिकता हो* और तीसरा सूत्र हैं नशामुक्ति , *नशीले पदार्थों से आदमी बचे|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि मैरा मानना है कि आदमी में सदभावना रहे, नैतिकता रहे, नशामुक्ति रहे, तो फिर यह शांति की बात हो सकती हैं| शांति वैसे हमारे भीतर में हैं, हम उसे कितना ऊपर उठा सके, बाहर निकाल सके| अगर वो अहिंसा आदि की साधना से शांति ऊपर आ जाये तो हमारा जीवन शांतिमय बन सकता हैं|
आचार्य श्री ने *विशेष पाथेय प्रदान* करते हुए कहा कि भगवान, शांति, आनन्द हमारे अन्दर हैं| हम अहिंसा, संयम, तपस्या की साधना करे, नैतिकता, नशामुक्ति के मार्ग पर चलें, अहिंसा पथ पर चले, तो शांति तो तैयार खड़ी है आने के लिए, उभरने के लिए| विश्व शांति के आज इस अवसर पर विभिन्न महानुभावों का समागमन हुआ है, बहुत अच्छी बात है, इतने महानुभाव यहां पहुंचे हैं, पधारे हैं, कितने धर्मों से जुड़े हुए लोग हैं, हम सब लोग भी अच्छा काम करते रहे, मंगलकामना|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि विश्व शांति के लिए प्रार्थना करें मंगल कामना करें शांति रहे, संपूर्ण शांति रहें| कभी-कभी प्राकर्तिक आपदा होती हैं, यह बाढ़ ,सूखा आदि आदि इससे भी कठिनाईयाँ पैदा हो जाती हैं, दक्षिण भारत में भी कुछ कठिनाई पैदा हो गई थी, कितने मनुष्यों को कष्ट भोगना पड़ा होगा, काल कालकल्वित भी हो जाते हैं| कालकल्वित हो सुके उनकी आत्मा में भी शांति रहें| जो विद्यमान है, उनमें भी शांति रहे| सब प्राणी शांति को प्राप्त करे, कल्याण को प्राप्त करे, कल्याणमय बने रहे|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि विश्व शांति के दो अर्थ हो सकते हैं| क्योंकि विश्व के दो अर्थ होते हैं, एक है संसार, जगत, दुनिया, तो संसार में शांति रहे| दूसरा अर्थ है समस्त, वह भी एक विश्व का अर्थ हैं और विश्व शांति यानी संपूर्ण शांति, आधी-अधूरी शांति नहीं, संपूर्ण शांति रहे|
आचार्य श्री आगे फरमाया की शांति किसमें रहे? शांति मनुष्यों रहे और भी प्राणियों में रहे, वनस्पति जैसे स्थावर जीवों में भी शांति रहनी चाहिए| शांति का एक प्रमुख आधार हैं अहिंसा|* अगर आदमी, आदमी में अहिंसा की भावना होती है, तो शांति रह सकती हैं| जहां हिंसा है, आतंक है, चिंता है, वहां अशांति को रहने का, पनपने का मौका मिलता हैं|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि अशांति का घर हैं हिंसा और शांति का घर है अहिंसा|*अगर विश्व शांति रखनी है तो अहिंसा के पथ पर चलना आवश्यक होता हैं| आदमी, आदमी को डराता हैं, आदमी, आदमी से डरता हैं| एक दूसरे से विद्वेष, हिंसा, युद्ध की बात और जब-जब युद्ध के बादल मंडराते हैं, एक अशांति की स्थिति भी पैदा होती हैं| हर राष्ट्र, हर राष्ट्र के प्रति मैत्री की भावना रखे| जैन धर्म में कहा गया *”मैत्ति में सव्व भूएषू”* सब प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, मित्रता है, विशुद्ध प्रेम हैं, *”वैरम् मज्झ ण केणई”* किसी के साथ मैरा वैर नहीं है, दुश्मनी नहीं है| यह मैत्री की भावना आदमी, आदमी के मन में रहे| हर राष्ट्रीय के विचारों, नीतियों में मैत्री की भावना रहे| हमारी कार्य शैली में अहिंसा रहे| विदेश नीति मैं भी मैत्री की भावना रहे| समाज नीति मैं भी अहिंसा, भाईचारा रहे| परिवार की नीति में भी अहिंसा रहे और व्यापारिक नीति मैं भी अहिंसा रहे कि मिलावट आदि न हो, जो खरीदने वालों के लिए कठिनाई पैदा करें| ग्राहक दुकानदार के प्रति ईमानदार हो, दुकानदार ग्राहक के प्रति ईमानदार हो तो व्यापारिक अहिंसा नीति हो जाती हैं| हमारे जीवन व्यवहार के साथ, जीवन शैली के साथ अहिंसा नत्थी हो जानी चाहिए, अभिन्न बन जानी चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया की जैन धर्म में चौबीस परम महापुरुष बताए गए हैं| इस काल खंड के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर है और जैन धर्म भगवान महावीर के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है| हमें जो जैन शास्त्र अभी जो प्राप्त हो रहे है, उनमें अहिंसा की काफी बातें बताई गई है और अहिंसा तो विभिन्न धर्म ग्रंथों में भी निर्दिष्ट हो सकती हैं| अहिंसा एक ऐसा तत्व हैं, जिसको हर धर्म या संप्रदाय मानता हैं| *अहिंसा एक पीयूष हैं|* हम अहिंसा पीयूष का पान करें| अहिंसा माता है, भगवती है, हम अहिंसा माता की संतान बनी रहे और अहिंसा माता की सेवा करते रहे|
इससे पूर्व ठाणं सूत्र के छठे स्थान के बारहवें श्लोक का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि हमारी सृष्टि जीव और अजीवों के भरी पड़ी हैं| जीव जगत का एक विभाग हैं – वनस्पतिकाय| जैन धर्म में बताया गया हैं कि खनीज मिट्टी सजीव होती हैं, हो सकती हैं| पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति भी अपने आप में एक प्राणी हैं, जीव है| आदमी, पशु आदि तो अपने आप में जीव हैं ही|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि यह जो वनस्पति कायात्मक पेड. पौधे, हरियाली, फल, फूल आदि जगत है, इसके छ: प्रकार हैं- “अग्रबीज, मूलबीज, परवबीज, स्कन्धबीज, बीजरूह और समूर्च्छिम|” वनस्पतिकाय में *”प्याज है, लहसूण है, उसके थोड़े से अंश में अनंत आत्माएँ, अनंत जीव होते हैं,”* ऐसा जैन ग्रन्थों में बताया गया हैं|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि एक शरीर में एक ही जीव हो, वह प्रत्येक वनस्पतिकाय हैं, जैसे गेहूँ, बाजरी आदि आदि और एक शरीर में ही अनंत जीव हो, लहसूण, प्याज, शकरकन्द, गाजर आदि आदि जमीकन्द जो चीजे है, जो जमीन में पैदा होती हैं|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि यह वनस्पतिकाय का विशाल जगत है| इसके प्रति ध्यान देने योग्य बात है कि उनमें भी मनुष्य की तरह जीव होते हैं| जैसे *बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता हैं, उसी तरह पौधा भी धीरे-धीरे बड़ा होता हैं|* उससे इसकी सजीवता स्वत: प्रमाणिक है और वैज्ञानिक जगत से भी प्रामाणिक एवं हमारे विवेक से भी प्रमाणिक होती हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जैसे आदमी जीव है, वृक्ष भी कितना बड़ा है, भले एकेन्द्रिय प्राणी हैं, हम उसे अनावश्यक कांटे नहीं और भी अनेक रूपों से हम वनस्पति की हिंसा से बचे| *धूब (घास) जिस पर हम पैरों से चलते हैं, तो उसको भी कष्ट होता हैं| तो हम वनस्पति की जितनी हो सके, हिंसा से बचने का प्रयास करें,* तो अहिंसा की साधना हो सकती हैं, हो जाती हैं|
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि *वृक्ष को कल्पतरू के समान बताये गये हैं|* साधुओं के लिए विधान हैं कि और कोई स्थान नहीं मिले, तो पेड़ के नीचे रह जाओ, वहीं प्रवास करलो| पेड़ के नीचे तपस्वी साधु – सन्यासी साधना कर लेते हैं| साधना करते-करते विशेष ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं|
गुरू नानक कालेज से ज्ञानी श्री सतपाल सिंह, श्री क्षेत्र अरिहंतगिरी जैन मठ के भण्डारक चिंतामणि डॉ स्वस्ति श्री धवलक्रिती स्वामी, श्री सच्चिथानथं स्वामीगल, श्री रामाकृष्ण मठ, मैल्लापुर के स्वामी अभावरका नंदा महाराज, डॉ गुनसेकरण सैमुअल, इस्लाम धर्म से मौलाना अब्दुल मजीथ साहिब, प्रजापिता ब्रहकुमारी से बहन बी के बीनाजी, माधवनंदा दासा ने विश्व शांति के लिए प्रार्थना करते हुए अपने विचार व्यक्त किये कि व्यक्ति व्यक्ति के मन में शांति के लिए जरूरी है, अहिंसा को अपनाए, जीवन में सरलता रहे, सभी एक दूसरे के पूरक बन कर, सहनशीलता का विकास करे तो विश्व शांति स्वत: स्थापित हो सकती हैं| आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति से उपाध्यक्ष श्री प्रकाशचन्द मुथा, श्री अरविन्द कुमार सेठिया ने अपने विचार रखे| कार्यक्रम के संयोजक VDS श्री गौतम सेठिया, फ्यूरेख के अध्यक्ष श्री अब्दुल सामद ने सभी का स्वागत किया| VDS श्री अरविंद कुमार सेठिया ने सभी धर्म गुरुओं का परिचय दिया। धन्यवाद ज्ञापन फ्यूरेख के सम्मेलन समन्वयक श्री PTL शंकर ने दिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति