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ज्ञान वाणी

अहंकार से बड़ा दुनिया में कोई शत्रु नहीं-आचार्य धर्मेन्द्र

कोलकाता. भक्ति-प्रेम में आडम्बर और प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। अहंकार से बड़ा दुनिया में कोई शत्रु नहीं और ईश्वर प्रमाण से नहीं, बल्कि भक्ति से प्राप्त होते हैं। सत्संग भवन में बुधवार से शुरू संगीतमय रामकथा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य धर्मेंद्र ने यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में विसंगतियों के कारण समाज में संवेदना की कमी हो गई है जबकि मानवता विलुप्त।

उन्होंने श्रद्धालुओं को मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जीवनी से प्रेरणा लेने के साथ कभी खुद को अकेला महसूस न होने की सीख दी। उन्होंने कहा कि आज महज दिखावे, आडंबर और झूठे प्रदर्शन के नाम पर करोड़ों-करोड़ों खर्च हो रहे, लेकिन मानव सेवा कार्यों में धन का कोई सदुपयोग नहीं हो रहा। सत्संग भवन, मालापाड़ा में २ से 10 जनवरी तक चलने वाली रामकथा के आयोजक शंकरलाल गुप्ता, निर्मल कुमार, मधुसूदन, अरुण गुप्ता, समाजसेवी पंडित लक्ष्मीकान्त तिवारी, रामलाल तिवारी आदि ने व्यास पीठ का पूजन किया।

भारत की भूमि को भगवान की लीला भूमि बताते हुए उन्होंने कहा कि भक्तवत्सल, करुणामय भगवान का स्मरण ही मंगलाचरण है। मन, वचन और कर्म से भगवान के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कारों का विलुप्त होना जीवन में विकारों को जन्म देता है।

कुतर्क की कोई सीमा नहीं
बजरंगबली को लेकर हाल ही कुछ राजनेताओं की ओर से दिए गए आपत्तिजनक बयान की चर्चा करते हुए धर्मेंद्र ने बिना नाम लिए कहा कि इन नेताओं की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। कुतर्क की कोई सीमा नहीं होती। उन्होंने कहा कि जो मनु की संतान है वही मानव है। धर्म प्राप्त नहीं, बल्कि धारण किया जाता है।

रामकथा जीवन जीने का सिद्धांत और मानवता की आचार संहिता है। राम कथा श्रवण कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम और सीता के जीवन से प्रेरणा लेने से मानव जीवन सार्थक होगा। …..पायो जी मैने राम रतन धन पायो और राम भक्ति के धन से जग को धन्य करो, रघुवर अवध बिहारी आन बसो मेरे मन में…. सहित अन्य भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे।

धर्मेन्द्र ने कहा कि आज समाज में विवाह जैसे पवित्र संस्कार में दहेज, तलाक, महिला उत्पीडऩ जैसी घटनाएं संस्कारों के अभाव के कारण बढ़ रही हैं, आज धन-जायदाद की लालच में रिश्ते दरक रहे, बेटे अपने पिताओं की हत्या कर रहे हैं। इस पर उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा-बोया बीज बबूल का तो आम कहां से होए? उन्होंने श्रद्धालुओं को प्रभु स्मरण, भक्ति भाव से पूजन करने की प्रेरणा दी।

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