*निरहंकारिता, विनय पूर्ण जीवन जीने की दी प्रबल प्रेरणा
*दक्षिणांचल कन्या कार्यशाला का द्वितीय दिवस
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि गोत्र कर्म के दो प्रकार है – उच्च गोत्र और नीच गोत्र|
जैन धर्म के कर्मवाद के वर्गित आठ कर्मों में सातवां कर्म है गोत्र कर्म| उच्च गोत्र कर्म का बंधन किन कारणों से होता है ? वैसे तो कर्म बंधन का कर्ता और भोगता जीव स्वयं ही है, जैसा कर्म बांधता हैं, वैसा ही फल भोगना हैं| ऐसा नहीं है कि किया तो बुरा कर्म और फल मिलेगा अच्छा, जैसा किया उसी के अनुसार फल मिलेगा|
कर्म सत्य होता है| अहंकार करने से नीच गोत्र का बंधन होता है| *मद के आठ प्रकार-जाति, कुल, ज्ञान, रूप, ऐश्वर्य, लाभ, धन, तपस्या इनका मद यानी अहंकार करने से नीच गोत्र का बंधन होता है|
आचार्य श्री महाश्रमण ने आगे कहा कि अहंकार को त्याग, निरहंकारिता के भाव को पुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए। अभिमान सूरापान के समान होता है, प्रतिष्ठा सूकरीविष्टा के समान होती है! थोड़ा ज्ञान प्राप्त करते ही अपने आपको ज्ञानी मान लेता है, अहंकार जाग जाता है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि ज्ञान के साथ विनय का विकास होना चाहिए| कहा भी गया है “विद्या विनयेन शोभते” विनय से विद्या सुशोभित होती है| व्यक्ति जब हाथी की तरह मद करने लग जाता है, कि में तो ज्ञानी बन गया, लेकिन जब कभी ज्ञानीजन के संपर्क में आता है तब पता चलता है, कि मैं कितना अज्ञानी हूँ, कहा पहाड़ जैसा ज्ञान और कहा मेरा राई जितना ज्ञान|
महान विद्वानों के ज्ञान को देखा तो जाना की मैं तो अज्ञ हूँ, मूर्ख हूँ|
आचार्य श्री ने घटना के माध्यम से बताया कि एक बार देवी ने मंदिर में घोषणा की कि गांव का रहने वाला सुकरात ज्ञानी है| सुनकर लोगों के मन में कुतूहल पैदा हो गया, सुकरात के पास पहुंचे और देवी द्वारा की गई घोषणा के बारे में जानकारी दी| सुकरात ने बोला कि मैं कहां ज्ञानी हूं, मैं तो अज्ञानी हूँ| लोग देवी के पास पहुंचे और सुकरात की बात बताई| देवी ने कहा कि जो अपने अज्ञान को पहचान लेता हैं, वहीं ज्ञानी कहलाता है|
हमें विद्वता का अहंकार नहीं करना चाहिए, ज्ञान के साथ विनय भाव का विकास करना चाहिए| *धन बल, शक्ति बल का भी अहंकार नहीं करना चाहिए| धन है तो उसका उपयोग अच्छे कार्यों में, शक्ति का बल है, तो उसका भी उपयोग बढ़िया कार्यों में करना चाहिए| स्वास्थ्य का भी मद नहीं करें, कितना हष्ट-पुष्ट हूँ, जाती का, कुल का, रूप का, सौन्दर्य का अहंकार नहीं करना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि गुरुदेव तुलसी की आंख, कान, मुख का सौन्दर्य बहुत ही मन भावन था| *रूप का मूल्य तो है ही, पर गुणवत्ता का मूल्य महत्वपूर्ण होता है|* तो हमें गुणवत्ता का अधिक से अधिक विकास करना चाहिए! जैसे रूप में स्वर्ण का घड़ा मिट्टी के घड़े से ज्यादा सुंदर है पर गर्मी में मिट्टी के घड़े के पानी से प्यास बुझती हैं, इस गुणवत्ता में मिट्टी के घड़े का मूल्य अधिक होता है| तो हमें रूप से ज्यादा गुणवत्ता को अधिक मूल्य देना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि तपस्या का भी घमंड नहीं करना चाहिए| तपस्या हर किसी से नहीं होती है, करने वाले साधुवाद के पात्र हैं, पर घमंड नहीं करना चाहिए| सता, धन का भी घमंड, दुरूपयोग नहीं करना चाहिए, मोह-मूर्च्छा, आसक्ति को त्याग कर सद्कार्यों में उनका उपयोग करना चाहिए| *शास्त्रकार ने कहा है की अहंकार नीच गोत्र का बंधन करवाता है, निरहंकारिता, विनय भाव उच्च गोत्र रहा का बंधन करवाता है|* कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया|
*दक्षिणांचल कन्या कार्यशाला का द्वितीय दिवस*
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में चेन्नई तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आयोजित दक्षिणांचल कन्या कार्यशाला के द्वितीय दिवस पर मातृ ह्रदया साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कन्याओं को आध्यात्मिकता से परिपूर्ण जीवन जीने की प्रबल प्रेरणा दी|
मुख्य नियोजिका साध्वीश्री विश्रुतविभाजी ने कन्याओं को संबोधित करते हुए कहा – सबसे बड़ी विडम्बना हम दूसरो को देखते हैं, जानते हैं, पर अपने आप को नहीं देखते, गूगल इन्फोर्मेशन दे सकता है पर अपने आपको नहीं बताता (Who am I), मैं कौन हूँ? आज भौतिकता का युग है।
डिग्री बड़ी, पर कोमनसेन्स कम हुआ, घर बड़े, पर परिवार के सदस्य कम हुए। शिक्षा के साथ आध्यात्मिक ज्ञान भी जरूरी है। लक्ष्य निर्धारित करे तो ऐसे करे कि, मेरी पहचान हमेशा के लिए कैसे बने? पहचान खुद को बनानी है, लक्ष्य खुद को निर्धारित करना है। अभातेमम की आध्यात्मिक पर्यवेक्षिका साध्वीश्री कल्पलताजी ने संभागियों को संबोधित करते हुए फरमाया पहचान कैसी होती है? जन्म से एवं कृतत्व से पहचान बने। अच्छी माँ के रूप में, अच्छी बेटी के रूप में पहचान बने।
अभातेमम अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा की अध्यक्षता में आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन प्रातः महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया का भी विशेष वक्तव्य हुआ। मंगलाचरण सेलम कन्या मंडल द्वारा किया गया। संचालन विशाखापट्टनम कन्या मंडल के द्वारा किया गया।