जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने आदि नाथ के भक्ति स्वरूप को वन्दना करते हुए कहा कि तीर्थंकर ऋषभ देव भगवान ने हमें धर्म का सही स्वरूप समझाया! श्रावक धर्म साधु धर्म दो प्रकार के मार्ग बतलाए जिस मार्ग पर चल कर साधना सम्पन्न की जाती है! ज्ञान मार्ग क्रिया मार्ग मे कठोरता का अनुभव होता है किन्तु भक्ति मार्ग सीधा साधा सरल मार्ग है जिसमें कोई शर्त क़ानून नहीं होते किन्तु हृदय का समर्पण जरुरी है बिन हृदय समर्पण हमारा भक्ति मार्ग फलिभूत नहीं होता भक्ति मार्ग हेतू अपना अहं का विसर्जन करना पड़ता है! मानव मन का यह अहंकार जीवन विकास मे सबसे बड़ा अवरोधक होता है!एक बार शिष्य ने अपने गुरु से पूछा नरक मे जाने का मुख्य कारण क्या है? गुरु ने सहज मे पूछा यह प्रशन करने वाला कौन है! शिष्य अकड़ कर बोला मैं मैं मैं पूछ रहा हूं आपसे, गुरु ने कहा यह मैं ही नरक जाने का मुख्य कारण है! भक्ति मे मे आचार्य मानतुंग कहते है आपका ज्ञान सागरवत है मैं तो एक बूंद समान हूं!आप का दिव्य ज्ञान सूर्य की भांति है मैं तो नाम मात्र का जुगनू हूं जो रात मे टिम टीमाता रहता है!फिर भी बसंत ऋतू मे आम मंजरी को देख जैसे कोयल मीठी वाणी से लोगों का मन मोह लेती है मैं भी आपकी भक्ति मे मोहित बन गया हूं अब बिना भक्ति किए रहना मेरे लिए असम्भव है!
प्रभो राम ने शबरी के बेर, कृष्ण ने सुदामा के चावल, महावीर ने चंदना के बाकुले ग्रहण किए इसी तरह मेरे भी भक्ति के दो बोल आप स्वीकार करो! सभा मे वर्तमान आचार्य ध्यान योगी डाक्टर शिव मुनि जी महाराज का 81वा जन्मोउत्स्व बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया इसी पंजाब प्रान्त के मलोट शहर मे सन 1942 मे जन्मे सन 1972 मे संयम धारण कर आप आज जैन समाज के सर्वोतम पद आचार्य पद पर आसीन है! हज़ारों संत सतीजन व लाखों श्रावक श्राविका गण आपके दिशा निर्देश मे धर्म आराधना साधना कर रहे है जय जय कारों के साथ आप के श्री चरणों मे सामूहिक वन्दनाएं समर्पित की गई संघ के महामंत्री उमेश जैन द्वारा बाहर से आये समाज सेवियों का हार्दिक स्वागत किया गया एवं आगामी सूचनाएं दी गई! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भक्तामर जी का विशद विवेचन प्रदान किया गया साधना की विधियां प्रदान की गई लाभार्थी परिवार द्वारा सभी को सम्मानित किया गया