साध्वी रमणीक कुंवर जी के निर्देशन में आचार्यर् विजय धर्मसूरि जी की 101 वी पुण्यतिथि पर हुई गुणानुवाद सभा
Sagevaani.com @शिवपुरी ब्यूरो। जैन दर्शन में जिन 18 पापों की चर्चा की गईर् है उनमें क्रोध भी एक पाप है। क्रोध की उत्पत्ति अहंकार से होती है और अहंकार को समाप्त किए बिना क्रोध से बचाव संभव नहीं है। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कमला भवन में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए।
धर्मसभा में साध्वी वंदना श्री जी ने श्रावक के 21 गुणों में से शारीरिक स्वास्थ्य और सौम्यता पर विस्तार से प्रकाश डाला। धर्मसभा में शिवपुरी में समाधि लेने वाले प्रसिद्ध जैनाचार्य विजय धर्मसूरीजी की 101 वीं पुण्यतिथि मनाई गईर् और इस अवसर पर गुणानुवाद सभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी और साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरू के आशीर्वाद से आचार्य जी ने अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाया। प्रारंभ में धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने गुरूवर हमारे हृदय में विराजो, गुरूवर हमारे हृदय में विराजो यही प्रार्थना है, यही प्रार्थना है भजन का गायन कर गुरू महिमा पर प्रकाश डाला। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने उदबोधन में पाप क्या है इसकी जानकारी देते हुए कहा कि जैन दर्शन में 18 पाप बताए गए हैं जिनमें से पांच वे नम्बर का पाप क्रोध है।
उन्होंने बताया कि गुस्सा अहंकार के कारण आता है जब भी हमारी प्रतिष्ठा और अहंकार पर चोट लगती है तो गुस्सा आ जाता है, लेकिन गुस्से से पल भर में ही दुनिया तवाह हो जाती है। गुस्से पर नियंत्रण पाना है तो सबसे पहले अहंकार से मुक्ति आवश्यक है क्योंकि अहंकारी गुस्से का जनक है। उन्होंने परिग्रह को भी पाप की संज्ञा दी और कहा कि हमें अपनी आवश्यकतायें सीमित करना चाहिए। कितनी जमीन, कितने मकान, कितना सोना चांदी आदि हमें चाहिए यह निर्णय कर शेष संपदा से अपने आपको मुक्त कर लेना चाहिए इससे आप पाप से बच सकते हैं। धर्मसभा में निमाड़, दिल्ली, गुड़गांव और सवाई माधौपुर से अनेक जैनधर्मावलम्वि विदुषी साध्वीगणों के दर्शन वंदन और मांगलिक सुनने के लिए पधारे जिनका जैन श्री संघ ने स्वागत और अभिनंदन किया।
आचार्य विजयधर्मसूरी जी ने शिवपुरी का गौरव बढ़ाया
आचार्य विजयधर्मसूरी जी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित गुणानुदवाद सभा में गुरूणी मैया रमणीक कुंवर जी महाराज ने अपने उदबोधन में कहा कि आचार्य विजयधर्मर्सूरी जी ने जो ख्याति अर्जित की वह गुरू कृपा के कारण संभव हुई।
उनके जीवन में वदलाव गुरू आशीर्वाद से आया। उन्होंने शिवपुरी में समाधि लेकर यहां की भूमि को पवित्र किया है। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि जब आचार्य विजय धर्मर्सूरी जी जब सांसारिक जीवन में थे तो उनके जीवन में अनेक व्यसन थे। लेकिन जब वह गुरू के नजदीक आए और गुरू के श्रीमुख से उन्होंने जिनवाणी सुनी तो उनका पूरा जीवन वदल गया। शिवपुरी में उनकी प्रेरणा से स्थापित गुरूकुल में अनेक विद्वानों ने शिक्षा और जैन धर्म के संस्कार प्राप्त किए है। वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे और देश तथा विदेश में उनकी ख्याति थी। आचार्य जी की पुण्य तिथि के अवसर पर जैन धर्मावलम्बियों ने एकासना व्रत्त कर उनके प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की।