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ज्ञान वाणी

अहंकार के मूल को समझें और इसे नष्ट करें: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

अहंकार के मूल को समझें और इसे नष्ट करें: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. शनिवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिकल लाईफ सत्र में बताया कि जन्म-जन्म के संस्कारों के कारण ही व्यक्ति की अच्छी या बुरी धारणाएं बनती है, बार-बार के जन्मों के पाप कर्मों का निर्घातन करना और फिर उसे निकालना। यदि अपने अहंकार, माया, लोभ, हिंसा और मोह को सपोर्ट न मिले तो उसे निकाला जा सकता है। कर्म चिंगारी है और इसे सपोर्ट मिलना बारूद है, इसे निष्क्रिय करने की व्यवस्था को बनाना कि वे पनप ही नहीं पाएं, इसे ही कर्मों का निर्घातक कहलाता है। परमात्मा कहते हैं कि वह पाप दृष्टि के कारण ही नकारात्मक चिंतन करता है। जिन कर्मों के कारण से नकारात्मक विचार मन में आते हैं उसके कारण को मिटाया जाए तो वह सकारात्मक बन सकता है।

इसके लिए परमात्मा ने कहा है कि काया में रहते हुए भी काया पर अधिकार को छोडऩा है, कायोत्सर्ग करना है। कायोत्सर्ग का अर्थ है अपनी काया से दूर हो जाना। कायोत्सर्ग का पहला सूत्र है- अपने अन्दर की कमजोरी को बाहर निकाल देना, दूसरा- अपने शरीर की बीमारी को दूर करना, तीसरा- बाहरी माहौल से दूर होना, चौथा- अपने अन्तरमन के कांटे या जो बातें आपको बार-बार परेशान करती रहती है उन्हें निकाल देना और पांचवां- किसी से कुछ भी अपेक्षाएं नहीं रखना। जब भी कायोत्सर्ग करें इन पांच बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।

यदि हमें अध्यात्म की यात्रा करनी है तो जो हमें मिला है उस पर हमें ध्यान देना चाहिए न कि जो हमने किसी को दिया है उस पर। कायोत्सर्ग और भी कई उद्देश्यों जैसे- ज्ञानार्जन, सेवा, संकट दूर करना आदिद के लिए भी किया जाता है, लेकिन जिसके लिए कर रहे हैं वह लक्ष्य हमें ध्यान में रहना चाहिए। इसके माध्यम से सभी प्रयोजन पूरे किए जा सकते हैं। परमात्मा कहते हैं कि स्वाध्याय के बाद कायोत्सर्ग करें।

मुनि तीर्थेशऋषि ने कहा कि हमें यह दृढ़ नियम लेना चाहिए कि मेरे जीवन में कैसा भी व्यक्ति आ जाए मैं सभी से अच्छाईयों को ही ग्रहण करूंगा, किसी की बुराईयों पर ध्यान नहीं दंूगा। मैं ऐसा जीवन जीऊंगा कि किसी को भी तकलीफ न हो। परमात्मा कहते हैं कि यदि आपको किसी से बचना है तो उसे मारना या तकलीफ नहीं देना बल्कि उस पर ध्यान न दें और उससे रिश्ता न रखें तो वह स्वत: ही आपसे दूर होता जाएगा। कई व्यक्ति अपने जीवन में पाप न करने का प्रण लेते लेकर संवर करते हैं लेकिन यदि वे इसके साथ धर्म नहीं करेंगे तो प्रतिज्ञा सफल नहीं होगी और पाप का आगमन कभी न कभी हो जाएगा इसलिए पाप कर्मों को छोड़ते हुए हमें अपने धर्म के कार्यों को बढ़ाते जाना चाहिए। हम एक अशुद्ध सांस छोड़ते हैं तो हमें जीवित रहने के लिए पुन: शुद्ध वायु को सांस से ग्रहण करना ही होता है। जो व्यक्ति यह जान जाए, उसका धर्म स्वयं के साथ दूसरों के लिए भी लाभकारी बन जाएगा। धर्म का संबल न हो तो पाप को ज्यादा समय तक रोक नहीं सकते। प्रण करें कि धर्म करेंगे, करवाएंगे और अनुमोदना भी करेंगे।

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज ने कहा कि आचारांग में अहंकार के दो रूप बताए गए हैं- एक स्वयं को दीन-हीन और पतित समझना और दूसरा अपने को सर्वश्रेष्ठ मानना। परमात्मा कहते हैं कि जो लोग ऊंचे स्थान पर होते हैं उनके मन में सामान्य जीवन जीने की लालसा रहती है और जो लोग सामान्य होते हैं उनमें बड़ा बनने की चाह की मनोस्थिति रहती है।

जिसे किसी का टोकना बुरा लगे वह व्यक्ति स्वयं बुरा बन जाता है और जिसे किसी का टोकना अच्छा लगने लगे वह व्यक्ति अच्छा व्यक्ति बन जाता है। आपकी भावनाओं जैसा ही आपका चरित्र बनता जाता है। परमात्मा कहते हैं कि यह जीव असंख्य बार उच्च-निम्न गौत्र में जन्मा है, इसने उच्च गौत्र का सुख भी झेला है और सुख भी लिया है, इसी प्रकार निम्न गौत्र के दु:ख भी लेने हैं और सुख भी लिए हैं। इस जीव के भाव बदलते रहते हैं, यह अनन्त बार सबकुछ प्राप्त कर चुका है इसे तू या याद कर, अभी जो जीवन मिला है उसे अनुभव कर, तुम्हारी आत्मा में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है, आत्मा तो वही रहती है। तू किसी की अभिलाषा मत कर, ऊंच-नीच सब बाहरी संसार का खेल है, जिससे प्रेम करते हो वही तुम्हें दुत्कारता है, यह शरीर नश्वर है। यह जिसकी समझ में आ जाए वह व्यक्ति कभी भी अहंकारी नहीं बन सकता। परमात्मा कहते हैं कि इस अहंकार के मूल को समझें और इसे नष्ट करें। यह आत्मा अनेक बार नरक, स्वर्ग, पशु, मानव सभी योनियों में भटकता रहा है। तुम किसी एक में आसक्ति मत करो। कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहां तुम्हारा जन्म न हुआ हो। जो सिद्ध बन गए हैं उनके साथ प्रत्येक जीव का रिश्ता अठ््ठारह तरह से रहा है, कभी मां, बाप, भाई, बहिन, बेटा, बेटी, भाई, बहिन इत्यादि अनेकों रिश्तों से आप उनके साथ भी जुड़े रहे हैं। वे तो इन सबसे मुक्त हो गए हैं और यह जीव अभी भी भटक रहा है, इस प्रकार स्वयं की आत्मा को जो जान लेता है उसका गुस्सा, उन्माद और अहंकार समाप्त हो जाता है।

यदि कोई आपके बिना कुछ किए गुस्सा करता है तो समझ लें कि पूर्वजन्म का कर्जा उतर रहा है। कर्म क्षय तो ध्यान से हो जाते हैं लेकिन रिश्ततों का कर्ज तो भुगतना ही पड़ता है। भगवान महावीर को भी अपने त्रिपुष्ट वासुदेव के भव की प्रियतमा जो उनकी साधना के ११वें वर्ष में कटपुतना व्यंतरी बनी थी के उपसर्ग सहकर चुकाना पड़ा था और उन्हें परम अवधिज्ञान हुआ। यदि कर्ज चुकता है तो खुश होकर चुकाना चाहिए कि आपका बोझ हल्का हो रहा है।

आचारांग कहता है कि प्रशंसा से बड़़ा कोई जहर नहीं है, इससे व्यक्ति गफलत में जाता है और अहंकार बढ़ता जाता है। अहंकारी व्यक्ति स्वयं का ही नुकसान करता है, इससे बचें। निन्दा से व्यक्ति जागरूक बनता है। हमेशा दूसरों की प्रशंसा करें और स्वयं की प्रशंसा से बचें।

श्रेणिक चरित्र में बताया श्रेणिक का बेटा वारिसेन जो श्मशान में कायोत्सर्ग करते हुए तप कर रहे हैं और एक चोर अपनी अदृश्य विद्या से वणिक का हार चुराता है और उनके चरणों में डाल देता है। लोग देखते हैं कि इस मुनि ने चोरी की है और श्रेणिक राजा को पता चलता है और वह उसे दंड देने का आदेश देता है। राजकर्मचारी उनके गले में जहरीला सर्प डाल देते हैं और सांप उनके गले में फूलों का हार की तरह बन जाता है, उन्हें क्षति नहीं पहुंचाता है। चोर यह सब देखकर अपना अपराध स्वीकारता है। श्रेणिक को पता चलता है तो वह उन्हें लेने आता है लेकिन वारिसेन कहता है कि यह संसार ऐसा ही है जो अपने सगे बेटे के साथ भी न्याय नहीं करता है। इससे कोई लेना-देना नहीं है।

वारिसेन एक बार अपने मित्र के घर गए वहां उन्होंने अपने मित्र को भी दीक्षा लेने के लिए कहा लेकिन उसका मन नहीं था फिर भी मित्र का मन रखने के लिए दीक्षा ले ली फिर भी उसका मन संयम में नहीं लगा। वारिसेन उसे सत्य ज्ञात कराने के लिए बेसमय महल में लेकर जाता है और उसकी मां चेलना उनके लिए राजकुमार और संन्यासी दोनों ही तरह बैठने की व्यवस्था करती है।

आनन्द तीर्थ महिला मंडल, पूना द्वारा गुरु भगवंत के प्रति बनाए गायन को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में पूना, जोधपुर और बेंगलोर आदि स्थानों से श्रावक-श्राविकाएं गुरु दर्शन को उपस्थित हुए। 8 से 10 अक्टूबर को कर्मा के शिविर का आयोजन रखा गया है।

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