जय जितेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 28 जुलाई सोमवार, परम पूज्य सुधाकंवर जी मसा के मुखारविंद से:-आलोचना करने वाला शल्यों से रहित होता है। शल्य तीन प्रकार के होते हैं – माया शल्य निदान शल्य एवं मिथ्या दर्शन शल्य। शल्य यानी शूल, कांटा। यह तीनों शूल जब तक आत्मा में, हृदय में चुभे रहेंगे तब तक मोक्ष की यात्रा संभव नहीं है। यह शल्य अनंत संसार को बढ़ाने वाले हैं। माया प्रथम शल्य है। माया अर्थात छल कपट। जहां पर दुराव छिपाव या कपट होता है वह आत्मा मिथ्या दृष्टि कहलाती है। और जहां हृदय में सरलता होती है वह आत्मा सम्यक दृष्टि कहलाती है। सरलता में ही धर्म का निवास है। जहां पर मन वचन काया की एकता साधती है वही सच्चा धर्मात्मा है। जिसकी कथनी करनी एक समान होती है वही मोक्ष का अधिकारी होता है।
सुयशा श्रीजी महाराज साहब के मुखारविंद से:-हम अक्सर मुश्किल के समय में एक दूसरे को Be Positive कहते हैं। लेकिन जब वही मुश्किलें हमारी जिंदगी में आती है तब हम अपने आप को सकारात्मक रखने में असफल हो जाते हैं। हम कहते तो हैं कि मनुष्य को सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए परंतु अपनी जिंदगी में हम सकारात्मकता अपना नहीं पाते क्योंकि सकारात्मक होने के लिए नकारात्मकता से दूर होना पड़ता है और हमें नहीं पता कि नकारात्मकता की जड़ कहां है। परमात्मा फरमाते हैं कि नकारात्मकता के कारण हैं – अहंकार एवं असंतोष। असंतोषी व्यक्ति को कितना भी मिल जाने पर भी वह खुश नहीं रह सकता एवं अहंकारी व्यक्ति इस पूरी दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहता है जो कि संभव नहीं है और परिणाम स्वरूप व्यक्ति नकारात्मक बन जाता है। इसीलिए अगर हमें अपने जीवन में सकारात्मकता का अभ्यास करना है तो हमें अपनी जिंदगी में से अहंकार और असंतोष की मात्रा कम करनी होगी।
आज की धर्म सभा में श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 25 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 17 उपवास, एवं श्रीमती प्रकाश बाई लालवानी ने 16 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए एवं जैन भवन में महिला शिविर बहुत ही उल्लास पूर्वक गतिमान है।