आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ह्रदयोद्गार
आचार्य श्री महाश्रमणजी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्रीमान् सुरेशचन्द गोयलजी और टेक्नोलॉजी के माध्यम से इस कार्यक्रम में जुड़े हुए सभी महानुभाव, सभी साथी।
यह हम सभी का सौभाग्य है कि *संत प्रवर आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की जन्म शताब्दी के पवित्र अवसर पर हम सब एक साथ जुड़े।* उनकी कृपा, उनके आशीर्वाद को, आप भी, मैं भी और हम सभी अनुभव कर रहे हैं। संत प्रवर आचार्य श्री महाप्रज्ञजी उनको आज नमन करते हुए, उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए, मैं आप सभी को भी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ।
मैं आचार्य श्री महाश्रमणजी को भी विशेष रूप से नमन करता हूँ, उन का धन्यवाद करता हूँ। *कोरोना की परिस्थिति के बीच में भी, उन्होंने इस कार्यक्रम को टेक्नोलॉजी के जरिए इतने प्रभावी ढंग से आयोजित किया हैं।*
*आचार्य श्री का विशेष स्नेह और आशीर्वाद का सौभाग्य, निरंतर मिलता रहा*
साथियों, आप मे से अनेक जन ऐसे हैं जिन्हें आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के सत्संग और साक्षात्कार, दोनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं और उस समय आपने उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव जरूर किया होगा।
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि *मुझे, मेरे जीवन में यह अवसर, आचार्य श्री का विशेष स्नेह और आशीर्वाद का सौभाग्य, निरंतर मिलता रहा।* मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूँ, मुझे याद है जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मैं कार्य संभालता था, उसी कालखंड में आचार्यजी का गुजरात आना हुआ था।
मुझे उस समय उनकी अहिंसा यात्रा में, मानवता की सेवा के अभियान में, शामिल होने का अवसर भी मिला था। मैंने तब आचार्य प्रवर के सामने कहा था कि *मैं चाहता हूं यह तेरापंथ, मेरा पंथ बन जाए। आचार्य श्री के स्नेह से यह तेरापंथ भी, मेरा पंथ बन गया और मैं भी आचार्य श्री का बन गया।*
♦ *मैं और मेरा छोड़ो तो सब तुम्हारा ही होगा*
साथियों, मैंने हमेशा उन के सान्निध्य में यह अनुभव किया कि उनके जैसे युग ऋषि के जीवन में अपने लिए कुछ नहीं होता हैं। उनका जीवन, उनका विचार, उनका चिंतन, सब कुछ सिर्फ और सिर्फ समाज के लिए, मानवता के लिए ही होता है।
आचार्य महाप्रज्ञजी बार बार यह कहते भी थे – मैं और मेरा छोड़ो तो सब तुम्हारा ही होगा। उनका यह मंत्र, उनका यह दर्शन, उनके जीवन में स्पष्ट दिखाई भी देता था। हम सब ने देखा है, उनके जीवन में उनका अपना कुछ नहीं था।
लेकिन हर कोई उनका अपना था। *उनके जीवन में परिग्रह किसी भी वस्तु का नहीं था, लेकिन प्रेम हर व्यक्ति के लिए था, जीव मात्र के लिए था।*
♦ *जो साहित्य रचना की, जो ज्ञान परोसा है, वह अतुलनीय हैं*
साथियों, दुनिया में जीवन जीने का दर्शन तो आसानी से मिल जाता हैं। आज तो गूगल गुरु को पूछोगे, तो भी मिल जाएगा। लेकिन इस तरह का जीवन जीने वाला, आसानी से नहीं मिलता।
*जीवन को इस स्थिति तक ले जाने के लिए तपना पड़ता है, अपने आप को तपाना पड़ता है, समाज और समाज की सेवा के लिए खपना पड़ता हैं, तिल-तिल जलना पड़ता है।* और यह कोई साधारण बात नहीं हैं। पर *असाधारण व्यक्तित्व ही, असाधारण को चरितार्थ करता हैं।*
तभी तो राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकरजी कहा करते थे आचार्य महाप्रज्ञजी आधुनिक युग के विवेकानंद है। इसी तरह दिगंबर परंपरा के महान संत आचार्य विद्यानंदजी महाप्रज्ञजी की तुलना जब करते थे, तो कहते थे कि डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णनजी उनकी याद दिलाते हैं, उनकी बराबरी से सोचते थे।
आचार्य महाप्रज्ञजी ने जो साहित्य रचना की, जो ज्ञान परोसा है, वह अद्भुतनीय हैं। हमारे श्रद्धेय *अटल विहारी वाजपेयीजी* वे खुद भी साहित्य और ज्ञान के इतने बड़े पारखी थे।
वो अक्सर कहते थे कि मैं आचार्य महाप्रज्ञजी के साहित्य का, उनके साहित्य की गहराई का, उनके ज्ञान और शब्दों का, बहुत बड़ा प्रेमी हूँ। *वाणी की सौम्यता, मंत्रमुग्ध करने वाली आवाज, शब्दों के चयन का संतुलन,* यह त्रिवेणी ईश्वरीय वरदान के बिना संभव नहीं होती है और यह वरदान उन्हें प्राप्त था।
♦ *“द फैमिली एंड द नेशनल” – पुस्तक को जरूर पढ़ें*
साथियों, आपभी आचार्य श्री के साहित्य को पढ़ेंगे। हम उनकी बातों को याद करेंगे, तो आपको भी अनुभव होगा। कितने ही महापुरुषों की छवी उनके भीतर थी, उनका ज्ञान कितना व्यापक था।
उन्होंने जितनी गहराई से अध्यात्म पर लिखा हैं। *उतना ही व्यापक विजन उन्होंने फिलोसोफी, पॉलिटिक्स, सायकोलॉजी और इकोनामीक्स जैसे अनेक विषयों पर दिया।* इन विषयों पर महाप्रज्ञजी ने संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, इंग्लिश में *300 से ज्यादा किताबें लिखी है* और आपको उनकी वो पुस्तक तो याद होगी ही और नहीं है तो याद कर लेना चाहिए और *मैं तो रेकेमेंट करता हूँ,* उसे बार-बार पढ़ना चाहिए *“द फैमिली एंड द नेशनल।”*
यह किताब आचार्य महाप्रज्ञजी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलामजी के साथ मिलकर लिखी थी। एक परिवार सुखी परिवार कैसे बने? एक सुखी परिवार एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कैसे कर सकता है? इसका विजन, इन दोनों महापुरुषों ने इस किताब में दिया है।
♦ *जो कुछ भी जीवन में है वह समाज को दे दो*
मुझे वो दिन भी याद है जब मुख्यमंत्री कार्यकाल में, डॉ अब्दुल कलामजी गुजरात आए थे, तब मैं भी उनके साथ आचार्य प्रवर के दर्शन के लिए गया था और मुझे एक साथ दोनों महापुरुषों के सान्निध्य का सौभाग्य मिला।
दोनों की एक साथ उपस्थिति में, मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया कि *हमारे यहां एक ऋषि किस तरह वैज्ञानिक दृष्टि रखता है और एक वैज्ञानिक किस तरह से ऋषि प्रेमी हो सकता हैं।*
महाप्रज्ञ जी के बारे में डॉक्टर कलाम कहते थे, उनके जीवन का एक ही उद्देश्य है – वॉक, एकवायर एण्ड गीव (WALK, AQIRE & GIVE) यानी कि सतत् यात्रा करो, भ्रमण करो, परिव्राजक ज्ञान अर्जित करो और जो कुछ भी जीवन में है वह समाज को दे दो।
साथियों, महाप्रज्ञजी ने अपने जीवन में हजारों किलोमीटर की यात्रा और पदयात्रा की। अपने अंतिम समय में भी वो अहिंसा यात्रा पर ही थे। वे कहते थे *आत्मा मेरा ईश्वर है, त्याग मेरी प्रार्थना है, मैत्री मेरी भक्ति है, संयम मेरी शक्ति है और अहिंसा मेरा धर्म है।*
इस जीवन शैली को उन्होंने खुद भी जिया और लाखों करोड़ों लोगों को भी सिखाया। योग के माध्यम से लाखों-करोड़ों लोगों को उन्होंने *डिप्रेशन फ्रि लाइफ* की कला सिखाई। यह भी एक सुखद संयोग है कि 1 दिन बाद ही *अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस* भी है।
हमारे लिए यह भी एक अवसर होगा, कि *हम सब सुखी परिवार और समृद्ध राष्ट्र, जो महाप्रज्ञ जी के सपनों को साकार करने में, हम सब मिलकर के योगदान दें।* उनके विचारों को घर-घर तक, समाज के हर तबके तक पहुचाये।
♦ *संत प्रवर आचार्य महाप्रज्ञजी के जीवन संदेश को नई पिढ़ी तक पहुंचाते रहे*
साथियों, आचार्य महाप्रज्ञजी ने हम सबको एक और मंत्र दिया था। उनका यह मंत्र था – *स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज, स्वस्थ अर्थव्यवस्था।* आज की परिस्थिति में उनका मंत्र हम सबके लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। *आज देश इसी मंत्र के साथ “आत्मनिर्भर भारत” के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा हैं।*
मुझे विश्वास है जिस समाज और राष्ट्र का आदर्श, हमारे ऋषि, संत आत्माओं ने हमारे सामने रखा है, हमारा देश जल्द ही उस संकल्प को सिद्ध करेगा। आप सब उस सपने को साकार करेंगे। आप सभी स्वस्थ रहें सकुशल रहें।
संत प्रवर आचार्य महाप्रज्ञजी के जीवन संदेश को नई पिढ़ी तक पहुंचाते रहे, इन्हीं शुभकामनाओ के साथ आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद और आचार्य श्री महाश्रमणजी के श्रीचरणों में प्रणाम, धन्यवाद!
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा की आयोजना में प्रधानमंत्रीजी आचार्य महाप्रज्ञजी जन्म शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम में श्रद्धा, अहोभाव, सूक्ष्मतम जानकारी, मुलाकातों की सजीव व्याख्या, भविष्य के सफल भारत के सूत्र के साथ अपने उदगार व्यक्त किये।
इस *ऑनलाइन* कार्यकम का *प्रसारण पारस* चनेल पर डेढ़ घंटे चला। इस कार्यक्रम में *राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति* के प्राप्त संदेशों का भी वाचन हुआ।
आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने आराध्य की आराधना में भावपुष्प अर्पित किये।अनूप जलोटा, दिलेर मेहंदी व कविता कृष्णमूर्ति*ने संगायन से उनके प्रति नमन प्रस्तुत किया। श्री कुमार विश्वास ने कार्यक्रम का शानदार संचालन किया।
स्वरूप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई