*ठाणं सुत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री ने कहा “मनुष्य ही मोक्ष पद का अधिकारी”*
*अहिंसा यात्रा वाहिनी एवं युवा वाहिनी बस का लोकार्पण*
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए जैनाचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि आज 15 अगस्त का दिन है|
भारत के लिए एक गौरव का दिन होता है| यह स्वतंत्रता की प्राप्ति का प्रसंग है|गुरुदेव तुलसी ने हमें एक महनीय संदेश दिया था असली आजादी अपनाओ! यह आजादी मिलना भी देश के लिए बड़ी उपलब्धि हैं| पर हम असली आजादी की ओर अग्रसर बनें और असली आजादी मिले|
आचार्य श्री ने कहा कि इस आजादी का भी महत्व है देश के लिए| भारत गुणात्मकता की दृष्टि से आगे बढ़े और नैतिक मूल्यों का प्रतिष्ठापन हो| भले राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले लोग हो, भले समाज में रहने वाले, काम करने वाले लोग हो, किसी भी क्षेत्र में काम करें, व्यापार करें, नौकरी करें, भक्ति करें, *वहां नैतिकता, इमानदारी रहे|
यानी बेईमानी से मुक्ति मिले, चोरी से मुक्ति मिले, जारी से मुक्ति मिले, झूठ से मुक्ति मिले और अध्यात्म की भाषा में हमें कषायों से मुक्ति मिले|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि यह हमें स्वतंत्रता मिले कि हम आत्मा के स्व तंत्र स्वरुप को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़े|इस रूप में भी एक आध्यात्मिक संदर्भों का स्वातंत्र्यिय प्राप्त करने का प्रयास हो, अभिदर्शनीय हैं|
आचार्य श्री ने कहा कि भारत कमियों से मुक्त बने| भारत एक अच्छा देश है जहां संत है, धार्मिक ग्रंथ है|
यह भारत देश और अच्छा देश बने, विकास करें और 15 अगस्त का दिन और अच्छा अध्यात्मिक धार्मिक विकास करने की भी प्रेरणा देने वाला बने, यह काम्य हैं|
*मनुष्य ही मोक्ष पद का अधिकारी*
आचार्य श्री ने गुरूवार को ठाणं के दूसरे स्थान का विवेचन करते हुए कहा कि आयुष्य कर्म के दो प्रकार-अध्यायुष्य, भवायुश्य| दूसरे शब्दों में प्रथम है कायस्थिति, दूसरा है स्वस्थिति|
जीव का एक ही काय में जन्म-मरण करना कायस्थिति यानी मनुष्य मरकर पुनः मनुष्य के भव में बार बार जन्म -मरण, ऐसे सात आठ बार लगातार कर सकता है, यह है कायस्थिति| इसी प्रकार वनस्पति का जीव मरकर बार-बार वनस्पति में जन्म-मरण करना, कायस्थिति कहलाती है|
देवता और नारकीय जीव मरकर वापिस देव या नारक नहीं बन सकते हैं, इसलिए उनकी भवायुष्य का ही बंध होता है| देवता मरकर वापिस देवता नहीं बन सकता है, वह मनुष्य या तिर्यंच योनि में ही जन्म ले सकता हैं|
नारकीय जीव भी मरकर वापिस नरक में उत्पन्न नहीं हो सकता है, वह मनुष्य या तिर्यंच में ही उत्पन्न हो सकेगा| मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो मरकर चारों ही गतियों में जा सकता है, चारों गतियों में नहीं गया तो वह पांचवीं गति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि मनुष्य ही अच्छी धर्म साधना करके मोक्ष पद के भी प्राप्त कर सकता है|
जीव हिंसक वृति, बुरे कर्म करके सातवी नरक तक जा सकता है| वनस्पति का जीव अनन्त काल तक उसी योनि में जन्म मरण करता है| तो हमें इस मनुष्य भव का पूरा लाभ उठाकर परम पद, मोक्ष पद को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए|
*अहिंसा यात्रा वाहिनी एवं युवा वाहिनी बस का लोकार्पण*
अहिंसा यात्रा में आने वाले यात्रियों की सुगमता के लिए सर्वसुविधाओं से युक्त दो वोल्वो बसों का आचार्य श्री महाश्रमण के मंगल पाठ के साथ लोकार्पण किया गया|
श्री देवराज मूलचन्द चैरिटेबल ट्रस्ट, बंगलूर के सौजन्य से अहिंसा यात्रा वाहिनी तेरापंथी महासभा को एवं तेरापंथ युवक परिषद् चेन्नई के सौजन्य से युवा वाहिनी बस अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् को सुपुर्द की गई| इस अवसर पर सौजन्य परिवार के साथ महासभा अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला एवं पदाधिकारी, अभातेयुप सहमंत्री रमेश डागा, चातुर्मास व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़ के साथ गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित रहे|
महासभा अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला ने चेन्नई चातुर्मास के पश्चात अहिंसा यात्रा प्रबंधन समिति के संयोजकीय दायित्व निर्वहन हेतु महासभा न्यासी श्री ज्ञानचन्द आंचलिया की नियुक्ति की|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*