कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा बरस रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी गौतम स्वामी से पृच्छा करने पर फरमा रहे थे कि सुबाहु कुमार को जो रिद्धि-सिद्धि मिली है।
वह पूर्व भव में सुमुख गाथा पति ने तपस्वी संत सुदत्त अणगार को सुपात्र दान देकर अनंत पुण्य का संचय कर लिया। शुभ कर्म का बंध और अशुभ कर्मो का क्षय होने से हर जन्म में सुख ही सुखों की प्राप्ति होने वाली है। गौतम स्वामी ने प्रभु से पूछा कि हे भगवान क्या सुबाहु कुमार आपके पास दीक्षा ग्रहण करेंगे , प्रभु ने कहा – हाँ गौतम – ये कालान्तर में दीक्षा ग्रहण करेगा कुछ समय के पश्चात प्रभु ने हस्तिशिर्ष नगर से विहार करके जनपद में विहार करने लगे।
सुबाहु कुमार ने भगवान से जो 12 व्रत ग्रहण किये उनका अच्छे से ( निर अतिसार पूर्वक पालन करने लगे ) साथ ही जीवाजीव आदि का ज्ञान भी बढ़ाते जाते थे महीने में 10 पौषध व्रत करते थे। उभय काल प्रतिक्रमण करते थे और भी जप-तप करते हुए राज्य की जवाबदारी भी निभा रहे थे। राज्य भर का सारा काम राजा ने युवराज को संभला दिया था देश की जनता की समस्याओं का समाधान करते हुवे भी धर्म की आराधना साधना बराबर कर रहे थे।
आज हम देखते हैं लोगों के पास टाइम नहीं है जबकि हमें तो एक परिवार व एक दुकान की है जवाबदारी है। एक बार सुबाहु कुमार पौषध करने के लिये पौषध शाला में जाते हैं और स्थानक को पुंजते हैं औघे से और लघु नीत बड़ी नीत की जगह का प्रतिलेखन करते हैं अर्थात उस स्थान पर कहीं जीवो की उत्पति तो नहीं है। हम धर्म करते हैं कर्मों की निर्जरा के लिये न कि कर्म बंधन के लिये तो हमें बहुत सावधानी , अर्थात विवेक का पूरा पूरा ध्यान रखना चाहिये।
जिससे हमारी आत्मा निर्मल और पवित्र बन करके जल्दी आत्म कल्याण कर सके। सुबाहुकुमार ने स्थान को देखने के पश्चात शय्या संथारा का प्रतिलेखन ( पलेवणा ) किया वस्त्रों का प्रतिलेखन किया धर्मशास्त्र हमारे लिये सर्च लाइट है अर्थात ज्ञान का प्रकाश है किरण है। सूरज की रोशनी की तरह आत्मा में ज्ञान का प्रकाश होने से आत्मा का कल्याण होता है।