किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा क्रोध अविवेक के कारण उत्पन्न होता है। सब प्रकार के विवेक से जीवन में सम्यक दर्शन की प्राप्ति हो सकती है। परिवार में औचित्य पालन के संस्कार मिल सकेंगे। उन्होंने कहा हमें यह आत्म निरीक्षण करना चाहिए कि अविवेक कहां से व कैसे पैदा हुआ है।
सिद्धर्षि गणि ने उपमिति ग्रंथ में वेश्वानर नामक क्रोधी के शरीर का दृष्टांत देकर क्रोध के कारणों का सूक्ष्मता से विवेचन किया। उन्होंने बताया कि वेश्वानर के वैर और कलह रुपी दो पैर है जिसकी बुनियाद पर वह खड़ा है और उस कारण उसे क्रोध उत्पन्न होता है। वेश्वानर की जांघ स्थूल है, इस कारण से वह ईर्ष्या व असूया यानी पूर्वाग्रह से ग्रसित है।
उन्होंने कहा उपग्रह को अंतरिक्ष में छोड़ना आसान है लेकिन पूर्वाग्रह को छोड़ना कठिन है। जब पूर्वाग्रह छूट जाता है तब वास्तविकता का पता चलता है लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है, फिर पश्चाताप के सिवाय कुछ नहीं बचता। वेश्वानर की कमर भी उन्नत है, वह एक तरफ से फूली हुई है। जिसके प्रति क्रोध है उसकी चुगली करेगा, यह वेश्वानर का स्वभाव है। वेश्वानल का मुख विषम है। उसकी बात इसके पास करेगा, इसकी बात यहां वहां।
वेश्वानर का मस्तक त्रिकोणीय है, क्रोध के कारण उसका आचरण अनार्य यानी अनुचित है। जिसके प्रति हृदय में क्रोध है, उसकी कोई बात चाहे वह गुप्त है वह मन में नहीं रख पाता, उसकी बात दूसरों में फैला देता है। वेश्ववानर का पेट बेडोल है, आगे से लम्बा है, उसके पेट में कोई बात नहीं पचती। उसकी छाती में जलन रहती ही है। उसके हाथ छोटे बड़े है जिनका नाम मात्सल्य व खार है।
क्रोध के कारण वे अपने मकसद के पीछे पड़े ही रहेंगे। दूसरों के अच्छे कार्य कैसे बिगाड़ना, सकारात्मक भाव नहीं रखना, उसे मात्सर्य भाव कहते हैं। खुद भी न करना और दूसरों को भी न करने देना इसी माया प्रपंच में पड़े रहेंगे। वेश्वानर की गर्दन लम्बी व वक्र है। यह क्रूरता रुपी गर्दन है। उन्होंने कहा जब क्रोध उत्पन्न होता है तो उसका जल्दी से उपशम करना चाहिए वरना वह क्रूरता का रूप ले लेता है।
वेश्वानल की नासिका चिपटी है। इस कारण क्रोधी व्यक्ति का स्वभाव तामसी व चिड़चिड़ा होता है। वेश्वानर की एक आंख गोल है जो रौद्र रुप दर्शाती है व दूसरी लाल है जो क्रूरता की द्योतक है। उसके दो कान कठोर प्रकृति के है। उन्होंने कहा क्रोधी व्यक्ति कठोर स्वभाव का होता है, उसको कुछ भी करने में संकोच नहीं होता।
उसके दांत असभ्य व तुच्छ भाषा के कारण होठ से बाहर निकले रहते हैं। अन्दर के क्रोध की ज्वाला के कारण उसके बाल पीले होते हैं। उन्होंने कहा गर्मी के कारण बालों का रंग बदल जाता है। किलपाॅक संघ के तत्वावधान में आज वर्धमान तप का पाया की शुरुआत हुईं। आचार्य ने सबसे इसमें अवश्य जुड़ने की प्रेरणा दी।