साराम, विल्लुपुरम (तमिलनाडु): जन-जन को आध्यात्मिक प्रेरणा देकर सत्पथ दिखाने वाले, लोगों को मानवीय मूल्यों की महत्ता को बताने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को अपनी धवल सेना के साथ विल्लुपुरम जिले साराम गांव पहुंचे। आचार्यश्री ने गांव स्थित गवर्नमेंट हायर सेकेण्ड्री स्कूल में उपस्थित श्रद्धालुओं को अल्प के लिए अधिक को न छोड़ने की पावन प्रेरणा प्रदान की।
शुक्रवार को आचार्यश्री ओंगुर गांव से मंगल प्रस्थान किया। ओंगुरवासियों को आचार्यश्री पावन आशीष प्रदान करते हुए पुनः राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 45 पर पधारे। आज सूर्य की किरणें लोगों को काफी परेशान कर रही थीं। दिसम्बर महीने में उत्तर भारत में जहां सर्दी का माहौल रहता है, वहीं तमिलनाडु की गर्मी लोगों को परेशान कर रही थी। आचार्यश्री का शरीर भी पसीने से तरबतर हो रहा था, किन्तु जनकल्याण के आचार्यश्री निरंतर गतिमान थे। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 45 पर आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर साराम गांव स्थित गवर्नमेंट हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे। स्कूल के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
स्कूल परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं और विद्यार्थियों को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि थोड़े लाभ के लिए बहुत को छोड़ देना मूर्खता होती है। अल्प के लिए बहुत को छोड़ने का इच्छुक विचार मूढ़ कहा जा सकता है। इसके लिए आचार्यश्री ने कई कथानकों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते हुए कहा कि अल्प के लिए बहुत का त्याग कर देना समझदारी नहीं बल्कि मूर्खता होती है।
साधु के पास शीलव्रत होता है और यदि वह उसे छोड़ गृहस्थ जीवन में जाने चाहे तो वह अत्यधिक लाभ प्रदान करने वाले शीलव्रत को थोड़े से भौतिक सुख के लिए त्यागता है तो यह उसकी विचार-मूढ़ता हो सकती है। गृहस्थ को भी थोड़े के लिए बहुत को भी नहीं छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ को ईमानदारी जैसे बड़े गुण को छोड़कर झूठ आदि का सहारा लेने से बचने का प्रयास करना चाहिए। कभी-कभी आदमी थोड़े लाभ के लिए बड़ी सम्पत्ति खो देता है। आदमी को ऐसा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
सौभाग्य से प्राप्त इस मानव जीवन में यदि किसी के पास महाव्रतों की अकूत संपदा प्राप्त हो जाती है और कोई इस अकूत संपदा को छोड़ वापस भोग की ओर जाने का विचार भी करे तो यह उसकी विचार-मूढ़ता होती है। आदमी को अल्प के लिए बहुत को नहीं गंवाना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित बच्चों ने आचार्यश्री के समक्ष करबद्ध वन्दना की तो आचार्यश्री ने भी दोनों हाथों से विद्यार्थियों पर आशीषवृष्टि की।