Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

अर्थ और काम कथा का रस जीवन में न हो: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

अर्थ और काम कथा का रस जीवन में न हो: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा अनादि काल से हमारे जीवन में पड़े अर्थ और काम रस को तोडऩे का सबसे सरल उपाय है प्रभु की प्रीति। जीवन में धर्मकथा की कल्पना जरूरी है। अर्थ और काम कथा के कारण धर्माराधना में विघ्न पड़ता है। जैसी कथा करेंगे वैसी ही जिंदगी बनेगी।

अर्थ और काम कथा का रस हमारे जीवन में नहीं होना चाहिए। यह आसान नहीं है परन्तु असंभव भी नहीं है। हमें स्वाध्याय के लिए कुछ समय निकालकर प्रभु की भक्ति से जुडऩा चाहिए।

उन्होंने कहा प्रभु की वास्तविक भक्त वही है जिसे अर्थ और काम कथा में नहीं बल्कि प्रभु की प्रीति में रस है, प्रभु के जीवन चारित्र सुनने में आनंद आए। महापुरुष भी यही कहते हैं कि विषयों की आसक्ति को दूर करना है तो प्रभु से प्रीति लगानी पड़ेगी।

यदि प्रभु के स्वरूप में मग्नता आएगी तब हमारे हृदय में विकार पैदा नहीं होंगे। भूतकाल में प्रभु से प्रीति के कारण ही यह मनुष्य जन्म हमें मिला है।

उन्होंने कहा चैत्यवंदन करना प्रभु के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति करना है। चैत्यवंदन करते हुए मन में हर्ष की धारा निकलनी चाहिए। प्रभु आपके साथ प्रीति करने के लिए तैयार है चाहे आप विद्वान हैं या अज्ञानी, गरीब हैं या धनवान।

इसके लिए मन और बुद्धि ये दो चीज प्रभु को सौंपनी पड़ेगी। विपत्ति के समय में आपका विस्मरण न हो जाए यह प्रार्थना प्रभु से करनी चाहिए, न कि विपत्ति को दूर करने की प्रार्थना।

सबसे ज्यादा कसौटी की परीक्षा प्रभु के भक्तों की होती है लेकिन जब आत्म स्वरूप का बोध हो जाएगा तो ऐसी प्रीति लाना मुश्किल नहीं होगी।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar