चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि तीर्थंकर प्रभु ने स्वयं साधना की, सिद्धी प्राप्ति की और जो आनन्द और शांति मिली उसे प्रकट किया। सभी द्रव्य, वस्तु का अपना-अपना स्वभाव होता है जो उससे हटता नहीं है।
शरीर जड़, आत्मा चेतन और कर्म जड़ है। स्वभाव, द्रव्य, तत्व अलग है फिर भी ये अनादीकाल से दूध में पानी की तरह अभिन्नरूप से साथ हैं। खाना, पीना, बोलना, सोना सब कार्य जड़ करता है आत्मा नहीं, पर उसे आत्मा का सहारा चाहिए। गाड़़ी और ड्राइवर के संयोग से इसे समझ सकते हैं। चाहे राजा, सेठ या गरीब सबके साथ में कर्म रहते हैं। कर्मों के उदयकाल में अन्तर में समभाव रखना है।
ज्ञानी कर्म काटता है हंसकर और अज्ञानी कर्म बांधता है रोकर। आवश्यक सूत्र में प्रभु ने कहा है जो उन्मार्ग में जा रहा है उसे सन्मार्ग में लाओ। भगवान कहते हैं जो कर्म बांधे हैं, भुगतने ही पड़ेंगे। नौ पुण्यों में नवां पुण्य नमस्कार है, नवकार साधना और नवपद पाठ कर रहे हैं तो पुण्यकर्म उपार्जन व कर्म निर्जरित होते हैं। सद्गुरु द्वारा साधना, तप करें तो निकाचित कर्म भी कटते हैं। कर्म उदय में निमित्त के साथ आते हैं।
उन्होंने कहा कि अरिहंत प्रभु पर आस्था, विश्वास, श्रद्धा से सभी ग्रह बाधाएं और कर्मों का उदय शांत होता है और शक्ति मिलती है। छह काय जीवों की विराधना और किसी भी द्रव्य का अनावश्यक दोहन न करें। कर्मों उदय के समय में चिंतन करें, भेद विज्ञान जान लें कि कर्म शरीर को उदय में आए हैं आत्मा को नहीं और समभाव रखेंगे तो कर्म आसानी से निर्जरित हो जाएंगे और सहन करने की शक्ति मिलेगी।
श्रद्धा, विश्वास, भक्ति से प्रभ ुचरणों में पहुंचकर हत्यारा अर्जुनमाली भी सिद्ध बन गया। चिंतन करें कि हिंसा करके, सावध को अपनाकर कभी शांति नहीं मिलेगी। नवरात्रि में देव माता को तो पूजते हैं लेकिन घर में जो माताएं साक्षात उपस्थित हैं उनका पहले ध्यान रखना है।
साध्वी नीलेशप्रभा ने कहा कि जो पापों से भयभीत रहता है उसे किसी का भी भय नहीं होता। पाप जीवन को कलंकित करता है। जिस कृत्य को करने से आत्मा बंधती है, मन उदासीन और बोझिल होता है वह पाप है। जिस मनुष्य के जीवन में धर्म धारी पल आता है तो समझना कि वह पाप कार्यों से निबद्ध है।
मनुष्य पाप करने में समय नहीं लगता, उसका फल भोगने में समय लगता है। मनुष्य पुण्य करने में संकोच करता है पर उसका फल चाहता है और पाप छोड़ता नहीं बदले में फल नहीं चाहता।
महर्षि वेदव्यास ने कहा है कि मानव पुण्य कार्यों को नहीं करना चाहता और फल को चाहता है तथा पाप को यत्नपूर्वक करता है बदले में पुण्य चाहता है। जब तक पाप नहीं छोडेंगे तब तक पुण्य प्राप्ति नहीं होगी। मनुष्य जिस अनुपात में पुण्य-पाप करेगा उसी अनुपात में फल मिलेगा। सभी को भगवान के द्वार पर एक दिन उपस्थित होना पड़ेगा।
जो जैसा कार्य करेगा, वहां पर भी वैसी ही फल प्राप्ति होनेवाली है। भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। एक छोटा-सा छिद्र नाव डुबाता है, छोटी चिंगारी संपूर्ण मकान जला देती है, विष की एक बंूद प्राण हर लेती है। एक पाप भी नरक में ले जा सकता है। दोषी को मिटाने के लिए हथियार चाहिए। रोग को मिटानेवाला उपचार चाहिए। संसार की बिगड़ती हुई दशा का उद्धार करने के लिए पापी को नहीं पाप को मिटानेवाला अवतार चाहिए।
साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने वीरस्तुति पुच्छीशुणं सम्पुट जप साधना सामूहिक रूप से करवाई। धर्मसभा में शिविरार्थियों सहित अनेकों श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।
5 अक्टूबर से नवपद ओली प्रारम्भ तथा पुच्छिशुणं प्रतियोगिता आयोजित होगी, 8 अक्टूबर से उत्तराध्ययन सूत्र आराधना की शुरुआत होगी।