द्विशताब्दी निर्माण दिवस पर अर्पित किये श्रद्धा सुमन
समता साधना की ऊँचाई पर पहुंचाने वाला सौपान है। समता की साधना जीवन के विकास का महत्वपूर्ण सूत्र है। जितने भी महापुरुष हुए उन्होंने समता की साधना की। समता की कसौटी के द्वारा ही वे महान कहलाये। ऐसे ही एक महापुरुष हुए आचार्य भारमलजी। उपरोक्त विचार तेरापंथ धर्मसंघ के द्वितीय आचार्य भारमलजी के द्विशताब्दी निर्माण दिवस पर धर्मपरिषद् में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मुनि अर्हतकुमार ने कहें।
मुनिश्री ने आगे कहा कि आचार्य भारमलजी अद्वितीय आचार्य थे, उनकी आचार्य श्री भिक्षु के प्रति समर्पण, विनय एवं निष्ठा विलक्षण थी। वे बहुत निर्भिक वृति के थे। जिसका साँप द्वारा पैरों में आँटे दिये जाने के बाद भी मन में भय नही, यह भाव था कि मेरे हिलने से साँप को कष्ट होगा। संसारपक्षीय पिताजी किसनोजी द्वारा जबरदस्ती ले जाने पर अन्नपाणी का त्याग, उनका गुरु भिक्षु के प्रिति का दर्शन था। वे स्वाध्याय प्रेमी थे, रोज खड़े-खड़े तीन घंटे आगम स्वाध्याय करना उनकी स्वाध्याय प्रियता को दर्शाता है। आज उनका दौ सौ वाँ महाप्रयाण दिवस है। उनके महाप्रयाण दिवस पर हमें ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़कर पच्चीस बोल आदि सीखने का प्रयास करना चाहिए।
मुनि श्री भरतकुमार के कहा तीन प्रकार के जीव होते हैं – असंयमी, संयमासंयमी और संयमी। संयमी जीव महापुरुष होते हैं। जैन शासन तेरापंथ के अद्वितीय आचार्य श्री भारमलजी हुए। आचार्य श्री भिक्षु के दिल पर साधना, सादगी एवं संयम का महत्वपूर्ण असर हुआ, उन्हें अपना पट्टधर बना दिया। आचार व संस्कार जीवन की अमूल्य धरोहर है, यह साधना हमारा भी अंश बने, हमारा मोक्ष वंश में रहे। मुनिश्री जयदीप कुमार ने सुमुधुर गीत का संगान कर सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया। आचार्य श्री भारमलजी के जीवन गाथा का वर्णन किया। उपासक शौभागमल सांड ने भी आचार्यश्री भारमलजी के प्रति अपने भाव रखें । मुनिश्री अपना आगामी मर्यादा महोत्सव विल्लुपुरम में करेंगे।
स्वरुप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई