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ज्ञान वाणी

अमृतमय जिनवाणी: वीरेन्द्र मुनिजी

अमृतमय जिनवाणी: वीरेन्द्र मुनिजी

एस .एस . जैन संघ ऊटी के जैन स्थानक में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म सा के प्रपौत्र शिष्य एवं तरुण तपस्वी श्री विमलमुनिजी म सा के सुशिष्य वीरेन्द्रमुनिजी महाराज ने आज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि दानों में दान अभय दान व सभी धर्मों में वचनों में सत्य वचन श्रेष्ठ है।

वैसे ही सभी तपस्या में ब्रह्मचर्य व्रत श्रेष्ठ है वैसे ही संसार में सभी मनुष्यों में भगवान महावीर श्रेष्ठ थे मुनिश्री ने सत्य वचन पर बोलते हुवे कहा कि ईमानदारी से व्यापार धंधा करने पर कठिनाई तो आती है पर एक बार पैठ जमने पर फिर कोई तकलीफ नहीं है परंतु आज के समय में सभी और असत्य का ही बोलबाला जहां देखो वहां असत्य ही असत्य नजर आता है।

ब्रह्मचर्य पर बोलते हुए कहा कि सभी तपश्चर्या में एकासना आयंबिल उपवास बेला तेला आदि जो भी तपस्या छोटी बड़ी जो भी तप है उनमे ब्रह्मचर्य ही सर्वश्रेष्ठ है मुनिश्री ने कहा की धर्म को जीवन में उतारने से ही मुक्ति मिल सकती जब तक आचरण में नहीं लाएंगे तब तक जीवन का उत्थान नहीं हो सकता आत्मा का उत्थान करना है तो चार कषायों को कम करना होगा क्रोध मान माया लोभ इन चारों पर जिन आत्माओ ने विजय पाई वे आत्माये अजर अमर हो गई बाहुबली ने मान ( अहं ) को छोड़ा तो केवल ज्ञान प्राप्त किया सिद्धि पाने के लिये कहीं जंगलों में तीर्थो में गिरी कंदराओं में जाने की आवश्यकता नहीं है।

नाटक करते हुए इलायची कुमार श्रृंगार सजते सजते भरत चक्रवर्ती संवतसरी को आहार करते हुए कुरगडक मुनि आदि को केवल ज्ञान हो गया इसलिये जीवन में धर्म को उतारिये।

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