Share This Post

ज्ञान वाणी

अमृतमय जिनवाणी: वीरेन्द्र मुनिजी

अमृतमय जिनवाणी: वीरेन्द्र मुनिजी

एस .एस . जैन संघ ऊटी के जैन स्थानक में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म सा के प्रपौत्र शिष्य एवं तरुण तपस्वी श्री विमलमुनिजी म सा के सुशिष्य वीरेन्द्रमुनिजी महाराज ने आज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वीर स्तुति में आर्य सुधर्मा स्वामी फरमा रहे हैं कि प्रभु महावीर स्वामी को अनेक उपमाएं देते हुए कहा – दानों में दान अभयदान सर्वश्रेष्ठ दान है।

भगवान ने छोटे से जीवो से लगाकर बड़े जीवो को भी जीने का अधिकार है हम त्रस जीवों की रक्षा करते हैं परंतु करुणा सिंधु भगवान ने कहा है स्थावर जीव पृथ्वी पानी अग्नि हवा वनस्पति आदि स्थावर जीव कहलाते हैं इनका उपयोग विवेक के साथ करें जिससे बिना कारण इनको सताना ठीक नहीं है हवा पानी अग्नि आदि की जरूरत हो उतना ही उपयोग करने से दो लाभ होता है।

पंखे कूलर आदि जरूरत पर चलाने से बिल कम आयेगा व वायु काय के जीवों को साता मिलेगी जिससे हमारे कर्मो का बंधन नहीं होगा। अग्नि भी जरूरत जितना ही उपयोग करने से गैस कम जलेगा तो खर्चा बचेगा कर्मों के बंधन से बचेंगे इसी प्रकार पानी का उपयोग विवेक के साथ करें जिससे व्यर्थ पानी का अपव्यय नहीं हो और हमारे कर्मों के बंधन नहीं होंगे। इसी प्रकार हम हर कार्य करने में विवेक रखेंगे तो हमारी आत्मा कर्मों के बंधन से मुक्त होगी जिससे जल्दी ही आत्मा को मुक्ति मिल सकेगी।

इस प्रकार से हम सहज में ही जीवो को अभयदान दे सकते हैं छोटे-छोटे जीवो को बचाएंगे तो बड़े जीवों को भी बचाने का मार्ग प्रस्तत हो जाएगा।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar