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ज्ञान वाणी

अमृतमय जिनवाणी की वर्षा : वीरेन्द्र मुनि

अमृतमय जिनवाणी की वर्षा : वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में आज राष्ट्रसंत लोकमान्य शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म सा की श्रद्धांजलि सभा मे विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि नाडोल में भैरू पुरी मोती बाई के यहां पर जन्मे बालक का नाम रूप पूरी रखा था।

बाल्यवस्था में उनके मन में अलग ही तरंगे हिलोरे ले रही थी वैष्णव समाज के धर्मगुरु का उनके यहां आना जाना रहता था। उन्हें पसंद आ गये ले आये अपने आश्रम में परंतु वहां रहते हुवे भी मन में शांति नहीं थी।

उनका मन आत्मा तो कुछ अलग ही खोज में लगी थी अतः वापस घर आगये आश्रम का प्रलोभन भी उन्हें अपने विचारों से डिगा नहीं सका।

उन्हीं दिनों में पूज्य श्री संतोकचंदजी म सा के शिष्य पूज्य श्री कविवर्य शांत मूर्ति श्री मोतीलालजी म सा का प्रवचन चल रहा था।

लोगों से सुनकर पहुंच गये फिर तो ऐसी लगन लगी साथ हो लिये और विक्रम संवत 1999 माह सुदी 13 को जोधपुर में दीक्षा लेली। गुरु के समीप रहते हुवे ज्ञान ध्यान सिख रहे थे परंतु गुरु म सा का वियोग होने पर श्रमण सूर्य मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म सा के पास रहते हुवे शिक्षा ग्रहण की।

मिश्री गुरु ने सभी तरह के ज्ञान में प्रवीण बना दिया था आशु कवि थे यहां तक पत्र का उत्तर भी दोहे या चौपाई कविता में देते थे उनके पास सभी संप्रदाय के लोग आते थे।

उनका समाधान हर समस्या का करते थे दुखियों के दुख को दूर करने का मार्ग बताते थे।

3000 के करीब पृष्ठ लिखे है मेरे गुरुदेव विमलमुनिजी म सा, उपाध्याय मूलचंदजी म सा, उपाध्याय श्री केवलमुनिजी म सा, अशोक मुनि जी म सा, महेंद्र मुनिजी म सा कमल आदि आपस में गहरे मित्र थे।

छोटे-मोटे संत सती की देख रेख पर ध्यान देते थे ऐसे बहु प्रतिभा के धनी रूपमुनिजी म सा यथा नाम तथा गुण नाम में ही रजत चांदी व रूप को साकार करने वाले जिनके दर्शन करने की हर एक के दिल में ललक रहती थी पर पीड़ा को समझने वाले अपनी पीड़ा को भुला देते थे।

अंतिम समय तक भी उनका आत्मा बल मजबूत था ऐसे मुनिश्री को श्रद्धांजलि देने के लिये मेरे पास शब्द नहीं इसलिये वीर प्रभु से यही प्रार्थना करते हैं कि आपकी आत्मा अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करें।

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