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अमूत मूनि का कल्प चातुर्मास प्रवेश हूआ सम्पन्न

अमूत मूनि का कल्प चातुर्मास प्रवेश हूआ सम्पन्न

चार महीने धर्म से जूडने का समय -चातूर्मास

गुरूवार अलवर पेट स्थित श्री उच्चब राज गौतम चंद ललवानी हाउस में उपपर्वतक अमूत मूनि अखिलेश मूनि,वरूण मूनि कल्प चातुर्मासार्थ प्रवेश श्री मरूधर केसरी रूप-सुकन अमूत चातुर्मास समिति के तत्वावधान में सम्पन्न हुआ। इससे पूर्व आध्यात्मिक प्रवेश शोभा यात्रा कोऑपरेटिव कॉलोनी से तीर्थंकरों एवं गुरु भगवंतो के जयकारे लगाते हूए निकलकर विभिन्न बाजारों से होती हुई लालवानी हाउस पहुंची। जैन कॉन्फ्रेंस युवा शाखा, महिला शाखा, अलवार पेट ,मइलापूर ,टी नगर आदी श्री संघो शोभायात्रा में विशेष रूप से उपस्थित रहे। तत्पश्चात शोभा यात्रा धर्म सभा में परिवर्तित हुई ।

अखिलेश मुनि ने सर्वप्रथम मंगलाचरण किया, एवम शांतिनाथ प्रभु , गुरु मरुधर केसरी आदि पर स्तवन का कर शुभारंभ किया लालवानी परिवार की बहू एवं बेटियों ने स्वागत गीत गाया । अतिथी स्वागत भाषण के माध्यम से श्री आनंद मल छल्लाणी ने अवसर पर पधारे सभी अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन करते हुए समय-समय पर पधार कर लाभ लेने की अपील की। इस अवसर उपप्रवर्तक अमृत मुनि जी महाराज ने चातुर्मासिक पर्व के शुभ अवसर पर कहा कि चातुर्मास के चार महीने तक धर्म गुरु हमे धर्म से बांध कर रखते है इस निमित से हम सब संसार की पंचायतियों से काफी दूर रहते है जिससे शांति बनी रहती है । साथ ही अनेक प्रकार की मन्त्रों की साधना से पूरे विश्व में शुद्ध वातावरण का आभा मण्डल प्रस्फुटित होता है । चहुं ओर शांति का साम्राज्य छा जाता है । व्यक्ति जितना चातुर्मास में जुड़ा रहेगा वो उतना ही पाप क्रियाओं से निवृत होता रहेगा । चातुर्मास में बहने वाली धर्म वाणी से व्यक्ति तत्व के अनेक गूढ़ रहस्यों का ज्ञान कर सकता है । सन्त अगर ज्ञानी है तो निश्चित रुप से हमारे सौभाग्य खिल जाता है । जिसने कभी सन्त के दर्शन नही किये यदा कदा किसी ना किसी निमित से उसे ये लाभ मिल जाता है और उसका भाग्य भी संवर जाता है ।

डॉ वरुण मुनि ने गुरु पूर्णिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु का हमारे जीवन में बहुत बड़ी भूमिका होती है, जब गुरु हमारे साथ रहते हैं उनका आशीर्वाद हमारे ऊपर होता है तो बिगड़े काम भी बन जाते हैं बस हमारी आस्था गुरु के प्रति अटूट अडिग अटल होनी चाहिए। गुरु को तीसरा शिक्षक भी कहा जाता है, प्रथम शिक्षक माता जो बच्चों को संस्कार देती है और दूसरा शिक्षक पिता जो बालक को अपने पैरों पर खड़े होने की शिक्षा देता है पर गुरु इन दोनों शिक्षकों से ऊपर है, गुरु माता द्वारा दिए संस्कार का विस्तारीकरण करते हैं और पिता के शिक्षा द्वारा जीवन की कठिनाईयों से निपटने के जूनून हौसला विश्वास देते हैं और अंतिम गुरु की शिक्षा यह होती है कि गुरु हमारे गृहस्थ जीवन से ऊपर उठाकर संयम त्याग वैराग्य आत्मा ध्यान आदि में उद्यत कराकर उसके परभव का उत्थान करते हैं।

इस अवसर पर अनेक महानुभाव ने जीव दया एवं अन्य सामाजिक कार्यों में दान राशि घोषित की। मुख्य अतिथि श्री अगर चंद सा चोरड़िया विर्धाचलय, सुरेश छल्लानी बेंगलुरु,जय चंद कटारिया, जवरीमल लाल जी कटारिया निर्मल गेलडा, महेंद्र सकलेचा आरकोणम , महावीर कटारिया का स्वागत चातुर्मास समिति द्वारा किया गया।इस अवसर पर जयंतीलाल छल्लाणी, ताराचंद दुगड़ पदम चंद कांकरिया, मिठालाल पगारिया, राजेन्द्र बौहरा, संपतराज सिंघवी, उत्तम चंद गोठी आदी विभिन्न बाजारों से गणमान्य उपस्थित रहे।

कमल ललित आंनद ललवानी, दिनेश भलगट, आनंद गादीया,एच महावीर भंडारी,जेपी ललवानी आनंद बालेच्चा,विमल खाबिया, गौतम दूगड़ आदी कार्यकर्ता का सहयोग सराहनीय रहा। कार्यक्रम का संचालन सी महावीर चंद भंडारी ने कीया ।

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